Anand Kumar
जब बात किसी म्यूचुअल फ़ंड में निवेश की होती है, तब अपना पोर्टफ़ोलियो बनाने लिए एक एक्सपर्ट की मदद की ज़रूरत पड़ती. ये एक्सपर्ट है, फ़ंड मैनेजर और मदद से मतलब है फ़ंड ख़रीदने का फ़ैसला, उसे ख़रीदने का समय, और निवेश बेचने के वक़्त को लेकर मदद पाना. ठीक वैसे ही जैसे क़ानूनी मामलों के लिए वकील होते हैं, इन्कम टैक्स रिटर्न के लिए चार्टेड अकाउंटेंट होते हैं, मकान बनाने के लिए आर्किटेक्ट और ठीक इसी तरह आपके फ़ंड निवेश के लिए फ़ंड मैनेजर होते हैं जो अपनी सेवाओं के लिए आपसे फ़ीस लेते हैं. मगर इसमें एक छोटा सा फ़र्क़ है; ये फ़ंड मैनेजर अपनी सर्विस निवेशकों के बहुत बड़े ग्रुप को देते हैं.
आप जैसे कई लोग इक्विटी में निवेश करना चाहते हैं, मगर इसे करने लिए उन्हें एक अनुभवी व्यक्ति की ज़रूरत होती है, जो उनके लिए ये काम कर सके.
मान लीजिए, ऐसे 1000 लोग हैं और इनमें से हर व्यक्ति ₹10,000 निवेश करना चाहता है. फ़ंड मैनेजर इकठ्ठा किए गए इस ₹1 करोड़ (10,000*1,000) का निवेश करता है और अपनी रिसर्च टीम के चुने स्टॉक्स से पोर्टफ़ोलियो बनाता है. इस एक करोड़ की रक़म को फ़ंड का एसेट अंडर मैनेजमेंट (AUM) कहा जाता है.
इसके बढ़ने और घटने की दो वजह होती हैं:
(i) नए निवेश/ निवेशकों द्वारा धन निकालना, या
(ii) फ़ंड के निवेश किए स्टॉक की मार्केट वैल्यू में बदलाव होना
जब आप अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी और काम में व्यस्त रहते हैं, तो प्रोफ़ेशनल फ़ंड मैनेजर के तौर पर आपको अपने निवेश की देखरेख के लिए मदद मिलती है. भारत में तीन दशकों से म्यूचुअल फ़ंड मौजूद हैं, और इन्होंने आसानी से ऊंचे रिटर्न दे कर अपनी उपयोगिता साबित कर दी है.
हो सकता है इस प्वाइंट पर, आपके मन में म्यूचुअल फ़ंड को लेकर बहुत से सवाल उमड़ रहे हों. आइए इन्हें एक-एक कर समझते हैं.
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म्यूचुअल फ़ंड की ABC
म्यूचुअल फ़ंड क्या हैं और ये कैसे काम करते हैं?
- तो, म्यूचुअल फ़ंड जमा किए धन को एक साथ निवेश करने का तरीक़ा हैं. जब आप बैंक के फ़िक्स डिपॉज़िट में निवेश करते हैं, तो बैंक FD का सर्टिफ़िकेट जारी करता है, जो आपको FD की मेच्योरिटी पर धन पाने का हक़दार बनाता है. म्यूचुअल फ़ंड में, आप अपना धन एक म्यूचुअल फ़ंड स्कीम में निवेश करते हैं, और उसके बदले, आपको उस स्कीम की यूनिट्स अलॉट की जाती हैं, जिससे उस फ़ंड के AUM में आपके हिस्से का स्वामित्व तय होता है.
- आपको मिलने वाली हर यूनिट का दाम जिससे तय होता है, उसे NAV (नेट एसेट वैल्यू) कहते हैं. समय के साथ, जैसे-जैसे ये NAV बढ़ता है, आपके निवेश की वैल्यू भी बढ़ती जाती है. आपको हर रोज़, दिन के आख़िर में अपनी यूनिट्स का NAV मिल जाता है, जिससे आप अपने निवेश की सही वैल्यू जान सकते हैं. इतना ही नहीं, हर महीने के आख़िर में, आप ये भी देख सकते हैं कि आपके फ़ंड मैनेजर ने आपका धन कहां-कहां निवेश किया है. इस लिहाज़ से, ये पूरी तरह से पारदर्शी निवेश का तरीक़ा है.
- म्यूचुअल फ़ंड यूनिट्स में मेच्योरिटी की कोई तारीख़ नहीं होती, मगर आप अपने निवेश की मौजूदा क़ीमत, उस समय के NAV के आधार पर तुरंत जान सकते हैं. मिसाल के तौर पर, अगर आपने किसी म्यूचुअल फ़ंड स्कीम में ₹10,000 तब निवेश किए जब उसका NAV ₹25 था, तो आपको 400 यूनिट्स मिली होंगी. अब पांच साल बाद आपने अपना धन निकालने का फ़ैसला किया. तब तक, NAV बढ़ कर ₹40 हो गया. आप अब अपनी यूनिट्स को रिडीम करने की अर्ज़ी दे सकते हैं, और ₹16,000 (400*40) की रक़म आपके बैंक अकाउंट में 3-5 दिनों के भीतर ही आ जाएगी.
- इस तरह से, प्रति यूनिट मिलने वाला फ़ायदा उस अंतर का है, जो NAV को ख़रीदने और बेचने का होता है. तो निवेशक के नज़रिए से, NAV के प्रतिशत का बदलाव ही सबसे महत्वपूर्ण है, यूनिट्स का नंबर नहीं.
कुल मिला कर, यही इस सवाल का जवाब है कि म्यूचुअल फ़ंड क्या होते हैं और कैसे काम करते हैं.
म्यूचुअल फ़ंड कौन चलाता है?
म्यूचुअल फ़ंड्स को म्यूचुअल फ़ंड हाउस चलाते हैं, इन्हें एसेट मैनेजमेंट कंपनी (AMC) कहते हैं. म्यूचुअल फ़ंड का रजिस्ट्रेशन सेबी (सेक्योरिटीज़ एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ़ इंडिया) रेग्युलेट करती है. हर कोई AMC नहीं शुरु कर सकता. इसके लिए काफ़ी रेग्युलेशन हैं, जैसे कि AMC शुरु करने के लिए कम-से-कम ₹50 करोड़ का कैपिटल चाहिए. इसके अलावा दूसरी सभी ज़रूरतें जब पूरी हो जाती हैं, तब सेबी एप्लीकेशन देने वाले (AMC) को रजिस्ट्रेशन सर्टिफ़िकेट और स्वीकृति देती है.
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क्या म्यूचुअल फ़ंड सुरक्षित होते हैं?
- हां, अपने स्वरूप में ये सुरक्षित होते हैं. सेबी, म्यूचुअल फ़ंड इंडस्ट्री को काफ़ी कड़ाई से रेग्युलेट करती है, ठीक वैसे ही जैसे RBI बैंकों को रेग्युलेट करता है. इसके साथ-साथ क़ानून में ये प्रावधान है कि म्यूचुअल फ़ंड्स को समय-समय पर काफ़ी डिटेल डेटा रिलीज़ करना होता है, जो उनके ऑपरेशन और निवेश को लेकर होता है. ये एक अच्छी तरह से रेग्युलेट किया जाने वाला प्रॉडक्ट है, जिससे AMC बनाने वाले, जिन्हें लोग अपना धन निवेश करने के लिए देते हैं, कहीं भाग न जाएं.
- इसके साथ-साथ ये कहना भी ज़रूरी है कि सुरक्षा की इस गारंटी को आप रिटर्न पाने की गारंटी न समझें. किसी म्यूचुअल फ़ंड में निवेश का आपका फ़ैसला अगर ग़लत हुआ तो आपको घाटा भी हो सकता है. पर आपको इसकी ज़्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए. क्योंकि ये सच है कि इक्विटी में रिटर्न की गांरटी नहीं होती और इनमें रोज़-रोज़ तेज़ उतार-चढ़ाव आते हैं, मगर पांच साल या उससे ज़्यादा के समय में ये रिस्क बहुत कम हो जाता है. पिछले पांच साल में (नवंबर 15, 2021 तक), सबसे ख़राब डाईवर्सिफ़ाइड इक्विटी फ़ंड ने भी 10-11% की सालाना दर से रिटर्न दिए. तो आप देख सकते हैं, अगर आपने कुछ ग़लत फ़ैसले भी लिए होते, तब भी आपको फ़िक्स्ड-इनकम निवेश से कहीं बेहतर रिटर्न, म्यूचुअल फ़ंड में मिले होते.
निवेश के लिए न्यूनतम रक़म?
ज़्यादातर फ़ंड्स में, ₹500-1,000 की छोटी रक़म से भी निवेश शुरू किया जा सकता है. अगर आप ख़ुद से स्टॉक्स ख़रीदेंगे तो इतनी रक़म में, किसी अच्छी कंपनी का एक शेयर भी नहीं ले पाएंगे. वहीं, म्यूचुअल फ़ंड्स में 25-30 स्टॉक्स के डाईवर्सिफ़ाईड पोर्टफ़ोलियो के फ़ायदे बहुत छोटी सी रक़म से पाए जा सकते हैं.
क्या अपना पैसा कभी भी निकाला जा सकता है?
दूसरे निवेश विकल्पों के उलट, म्यूचुअल फ़ंड के निवेश काफ़ी ज़्यादा 'लिक्विड' होते हैं. लिक्विड' का मतलब है, निवेश को बिना किसी देरी के आप जब चाहें निकाल सकें. आप म्यूचुअल फ़ंड से कोई भी रक़म आसानी से निकाल सकते हैं. ये निकाला गया पैसा सीधे आपके बैंक अंकाउंट में ट्रांसफ़र हो जाता है और इसमें तीन दिन से ज़्यादा नहीं लगते. मगर हां, जब आप लंबी-अवधि के लिए बचत और निवेश कर रहे हैं तो जल्दी-जल्दी धन निकालने का कोई इरादा तो नहीं होता, मगर ज़रूरत पड़ ही जाए, तो आपके पास धन निकालने का विकल्प हमेशा मौजूद रहता है.
इसका ख़र्च क्या होता है?
निवेशक हर साल अपने निवेश का कुछ प्रतिशत म्यूचुअल फ़ंड मैनेज करने के लिए देते हैं. इसे 'एक्सपेंस रेशियो' कहा जाता है. इसमें फ़ंड मैनेजमेंट की फ़ीस, एजेंट का कमीशन, बेचने और प्रमोशन का ख़र्च, और फ़ंड के दूसरे ख़र्चों की फ़ीस भी शामिल होती है. आसान शब्दों में कहें, तो अगर फ़ंड 12 प्रतिशत के बराबर रिटर्न पाता है और उसके एक्सपेंस का रेशियो 2 प्रतिशत है, तो एक निवेशक के तौर पर, आपको 10 प्रतिशत रिटर्न मिलेगा. सेबी ने एक्सपेंस रेशियो की ऊपरी सीमा 2.25 प्रतिशत तय कर दी है. इस सीमा के भीतर कोई भी फ़ंड अपना एक्सपेंस रेशियो चार्ज कर सकता है.
हर ज़रूरत के लिए एक म्यूचुअल फ़ंड
म्यूचुअल फ़ंड्स हर तरह के रिटर्न की संभावनाओं, रिस्क के स्तर और हर तरह की समय सीमा के साथ आते हैं, जो आपकी ज़रूरतों के मुताबिक़ हो. आप किसी भी तरह का निवेश चाहें, आपको अपनी ज़रूरत के मुताबिक़ फ़ंड मिल ही जाएगा.
म्यूचुअल फ़ंड्स की दुनिया को आसानी से समझने के लिए, आइए एक कपड़े के स्टोर का उदाहरण लेते हैं.
इक्विटी फ़ंड इक्विटी शेयरों में निवेश करते हैं. डेट फ़ंड्स, बॉन्ड्स (बॉन्ड्स किसी कंपनी या सरकार द्वारा जारी किए जाते हैं और तयशुदा ब्याज और प्रिंसिपल की एक तय तारीख़ पर वापसी के वादे के साथ होते हैं) जैसे फ़िक्स्ड इनकम सिक्योरिटीज़ में निवेश करते हैं. हाइब्रिड फ़ंड्स इक्विटी और डेट दोनों में निवेश करते हैं.
इससे पहले कि आप सही फ़ंड के चुनाव को लेकर उलझन में पड़ें, हम आपके लिए इस उलझन को सुलझा देते हैं. निवेश की शुरुआत करने वालों को, हर कैटेगरी के म्यूचुअल फ़ंड पर ध्यान देने की ज़रूरत नहीं है. आख़िर आपने स्कूल की अपनी पहली ही क्लास में हर चीज़ नहीं पढ़ ली थी, बल्कि साल-दर-साल सिलसिलेवार तरीक़े से 12वीं कक्षा तक सभी विषयों को समझा. निवेश भी ऐसा ही है. आपको सरल विषय से शुरुआत करने की ज़रूरत है, बाक़ी की बातें धीरे-धीरे ख़ुद ही समझ आने लगेंगी. इस कोर्स का अगला सेक्शन म्यूचुअल फ़ंड्स की मदद से इक्विटी निवेश पर फ़ोकस करेगा.
पार्ट-5 में म्यूचुअल फ़ंड चुनने की बात
अगर आपको लगता है कि आप इक्विटी म्यूचुअल फ़ंड्स की शुरुआत को लेकर, और ढेर सारी AMCs में से किसी एक के चुनाव को लेकर कुछ समझ नहीं पा रहे हैं, तो चिंता मत करें. म्यूचुअल फ़ंड की सीरीज़ के पार्ट-5 में हम और आप इसी विषय पर बात करेंगे.
इस सीरीज के दूसरे भाग-
1. आपको अमीर बना सकता है निवेश!
2. निवेश शुरू करने का सही समय!
3. वैल्थ पाने का रास्ता
5. पहले म्यूचुअल फंड का प्लान
6. प्लान पर अमल करें
7. अगला कदम: निवेश को ट्रैक करें
8. निवेश से पहले कर लें ये काम