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क्या आपको निवेश से पहले म्यूचुअल फ़ंड (AUM) का साइज़ देखना चाहिए?

आइए समझते हैं कि एसेट अंडर मैनेजमेंट (AUM) क्या है और क्या म्यूचुअल फ़ंड निवेश से पहले आपको देखना चाहिए कि फ़ंड कितना बड़ा है

क्या आपको निवेश से पहले म्यूचुअल फ़ंड (AUM) का साइज़ देखना चाहिए?

एसेट अंडर मैनेजमेंट या AUM किसी म्यूचुअल फ़ंड में निवेश की कुल मार्केट वैल्यू होती है। सरल शब्दों में, ये फ़ंड मैनेजर द्वारा मैनेज किया जाने वाला पैसा है। इसमें शामिल होता है - इक्विटी की मार्केट वैल्यू, बॉन्ड, कैश और स्कीम के दूसरे निवेश, जो देनदारियों (liabilities) के लिए एडजस्ट किए गए हों। AUM इसे दो तरह से बढ़ा/ घटा सकते हैं, पहला - जब लोग पैसा निकालें (redeem) या फ़ंड में निवेश करें और दूसरा - जब मार्केट के उतार-चढ़ाव से पोर्टफ़ोलियो की वैल्यू में बदलाव हो।

आमतौर पर जो फ़ंड बेहतर प्रदर्शन करता है, उसमें ज़्यादा निवेश किया जाता है और इसीलिए वो जल्दी बड़ा हो जाता है। कुछ निवेशक सोचते हैं कि बड़ा फ़ंड इसलिए बेहतर है क्योंकि वो बेहतर प्रदर्शन करता रहेगा। वहीं कुछ लोग मानते हैं कि अगर फ़ंड बहुत बड़ा हो गया है, तो वो अपना प्रदर्शन बनाए नहीं रख पाएगा। जो सवाल कई निवेशकों को परेशान करता है, वो ये कि कौन सा फ़ंड बेहतर है, बड़ा या जिसका AUM कम हो? संक्षेप में इसका जवाब है - ये निर्भर करता है। जी हां, ये जवाब ज़्यादा कुछ नहीं कहता। इसके लिए आप आगे पढ़िए!

छोटे और बड़े फ़ंड के अपने फ़ायदे और नुकसान हैं। छोटे AUM वाले फ़ंड ज़्यादा आइडिया-बेस्ड हो सकते हैं और अपनी निवेश स्ट्रैटजी की वजह से बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं। कई केस में (इसके बारे में हम बाद में बात करेंगे), बढ़ता हुआ साइज़, अपना प्रदर्शन दोहराने की फ़ंड की क़ाबिलियत पर सवाल खड़े कर सकता है। हालांकि, छोटे AUM वाले फ़ंड का एक्सपेंस रेशियो ऊंचा होता है। इसके अलावा, क्योंकि ये फ़ंड कम पैसे के साथ काम करते हैं, तो बड़ी रक़म रिडीम करने पर इनमें नक़दी (liquidity) की कमी हो सकती है। दूसरी तरफ़, एक बड़ा AUM फ़ंड या फ़ंड हाउस, बेहतर सर्विस दे सकता है और बेहतर रिसर्च के लिए ज़्यादा ख़र्च कर सकता है, ये बात निवेशकों के फ़ायदे की है।

कितना बड़ा होना बहुत बड़ा होना है?

इसका कोई फ़ॉर्मूला नहीं, जो तय करे कि फ़ंड का साइज़ कितना हो कि उसे बहुत बड़ा कहा जाए। मगर, जब तक फ़ंड मैनेजर, फ़ंड के निवेश की स्ट्रैटजी के मुताबिक़ निवेश करना जारी रख सकता है, साइज़ के लिहाज़ से ठीक रहता है।

क्या सभी तरह के फ़ंड के लिए साइज़ मायने रखता है?

जो फ़ंड ज़्यादातर लार्ज-कैप कंपनियों में निवेश करते हैं, उनका साइज़ आमतौर पर मायने नहीं रखता। बड़ी कंपनियां, एक्टिव तरीक़े से ट्रेड करती हैं और इनमें लिक्विडिटी की दिक़्क़त नहीं आती। मगर ऐसा फ़ंड, जो मिड-कैप और स्मॉल-कैप कंपनियों में निवेश करता है, उसका इस सेग्मेंट में बड़ी रक़म निवेश करना, साइज़ बढ़ने के साथ-साथ परेशानी खड़ी कर सकता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि फ़ंड मैनेजर को या तो ज़्यादा ख़रीदने-क़ाबिल स्टॉक (buy-worthy stocks) तलाशने होंगे या उन कंपनियों में अपना निवेश बढ़ाना होगा, जिनमें फ़ंड ने पहले से निवेश कर रखा है। मगर स्मॉल-कैप की ऐसी कंपनी, जो अच्छी हो और पहले से नज़र में न आई हो, तलाशना आसान नहीं है। और दूसरे, ऐसी कंपनी फ़ंड को दिक़्क़त में डाल सकती है, क्योंकि ज़रूरत पड़ने पर बहुत बड़ी मात्रा में इसके स्टॉक बेचना मुश्किल हो सकता है। इसके साथ-साथ छोटी कंपनियों में बड़े स्तर पर ख़रीदना और बेचना, 'ख़र्च पर असर' डाल सकता है, क्योंकि फ़ंड के बड़े लेन-देन से स्टॉक के दाम प्रभावित हो सकते हैं।

क्या एक बड़ा AUM फ़ंड के प्रदर्शन पर असर डालता है?

ये निर्भर करता है कि किस तरह के फ़ंड की बात हो रही है। ऐसे फ़ंड जो छोटी कंपनियों में निवेश करते हैं, इनमें कुछ असर हो सकता है, और उसकी वजह है निवेश के अच्छे आइडिया की कमी, या फिर किसी बेहतर संभावना वाली कंपनी में इतना निवेश न करना, जो मायने रखता हो। पर ऐसा ज़रूरी नहीं है कि बड़ा फ़ंड अपने जैसे दूसरे फ़ंड से ख़राब प्रदर्शन करेगा। फ़ंड मैनेजर की क़ाबिलियत, AMC का ट्रैक-रिकॉर्ड और फ़ंड की स्ट्रैटजी ज़्यादा मायने रखने वाली बातें हैं। एक अच्छा फ़ंड, मार्केट के अलग-अलग दौर में लगातार बेहतर प्रदर्शन करता है।


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