Anand Kumar
मुझे अफ़सोस है कि बिटक्वाइन को बंद नहीं किया गया. FTX के ढह जाने के बाद, मैंने लिखा था कि मुझे ख़ुशी है कि क्रिप्टो को भारत में आधिकारिक तौर पर रेग्युलेट नहीं किया गया है. क्योंकि ये साफ़ हो गया है कि टैक्स के कुछ नियम लागू करने के अलावा, भारत में क्रिप्टो पर कोई असल बैन नहीं लगाया जाएगा, जैसा चीन में हुआ है. और ये ठीक ही है. क्रिप्टो को रेग्युलेट नहीं किया जाना चाहिए, और जो लोग इसमें अपना हाथ आज़माते हैं उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया जाना चाहिए. उन्हें अपने दिवालिया होने का तरीक़ा और वक़्त चुनने की आज़ादी होनी चाहिए.
FTX स्कैम क्रिप्टो के ताबूत में आखिरी कील नहीं साबित हुआ है, जिसकी उम्मीद की जा सकती थी. इसका मतलब हुआ कि क्रिप्टोकरंसी मार्केट, ग्लोबल फ़ाइनेंशियल सिस्टम का हिस्सा बना रहेगा. FTX ने दिखाया है कि कैसे दुनिया भर के निवेशकों से अरबों डॉलर लेना और उड़ा देना संभव है, और इसके बावजूद, क्रिप्टोकरंसी के बुनियादी तौर-तरीक़े में कोई फ़र्क़ नहीं आएगा. इसकी वजह है, इसमें ज़बरदस्त मुनाफ़े की गुंजाइश का होना और बहुत आसानी से मुनाफ़ा हासिल कर लेना. लगता है कि मौजूदा राय क्रिप्टोकरंसी को एक वैध एसेट क्लास समझने की है. और लोग समझ रहे हैं कि इस वक़्त भले ही रेग्युलेशन की कुछ उलझनें हों, लेकिन अंत में ये सुलझ ही जाएंगी. समय के साथ, वैल्यू में एक और उछाल आएगा ही, और जिसके नतीजे में, बाक़ी बची करंसियों और टोकन में अंजान बचतकर्ताओं की एक नई लहर अपने पैसे को ख़तरे में डालने के लिए उमड़ पड़ेगी.
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आज जहां कई क्रिप्टो बेमानी हो गए हैं, वहीं बिटक्वाइन बचा रह गया है. असलियत तो ये है कि बिटक्वाइन आज उस स्थिति में है कि लोग फिर से ठगे जाएंगे. मिसाल के तौर पर, हालिया गिरावटों के बावजूद, इस साल बिटक्वाइन 57 फ़ीसदी ऊपर गया है. असल में, अपने नवंबर के निचले स्तर से जुलाई के बीच तक बिटक्वाइन ठीक दोगुना हो गया है.
ऐसा कोई भी एसेट, जो बिना किसी ठोस कारण के दोगुना और इससे ज़्यादा हो सकता है, वो नए लोगों को आसानी से लुभा सकता है. अब ये साफ़ है कि बिटक्वाइन अपना ये रोल निभाता रहेगा. बदक़िस्मती से, ऐसा लगता है कि आने वाले वक़्त में ये सब जारी रहने वाला है. सोशल मीडिया में जिस तरह से बिटक्वाइन की तरफ़दारी हो रही है, लगता है कि FTX के क्रैश और क्रैश के बाद के समय में, एक अजीब विरोधाभासी तरीक़े से, बिटक्वाइन को फ़ायदा पहुंचा है. बिटक्वाइन की तरफ़दारी करने वालों का तर्क ये है कि बिटक्वाइन अगर इतना सब होने के बाद भी बचा रह सकता है, तो ये आगे भी बचा ही रहेगा.
वैसे भी क्रिप्टो प्रेमियों के लिए तो सिर्फ़ ग्राफ़ की लाइन ही मायने रखती है. अगर किसी का सारा फ़ोकस ही एसेट क्लास के बजाए, अटकलों पर आधारित ट्रेड है, तो उसके लिए बिटक्वाइन सही काम करता है. असल में, ये किसी दूसरी चीज़ से कहीं ज़्यादा बेहतर तरीक़े से काम करता है, क्योंकि दाम में जितने ज़्यादा आक्रामक उतार-चढ़ाव आएंगे, अटकल लगाना उतना ही उत्साह बढ़ाने वाला होगा. अगर कोई चीज़ ज़्यादा ऊपर जाती है और फिर काफ़ी गिरती है, तो सही अंदाज़ा लगाने वालों के लिए उतनी ही ज़्यादा फ़ायदेमंद हो जाती है. ये तो एक नशे की लत वाले व्यक्ति के लिए, उसके नशे जैसा है.
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क्रिप्टोकरंसी को समझना है, तो आपको आम आदमी को देखना ही होगा जो असल में इसे चलाता है. कुछ समय पहले, मैंने एक क़िताब पढ़ी जिसका शीर्षक था 'क्रिप्टोस्टॉर्म' (Cryptostorm), इसे बिज़नस जर्नलिस्ट संदीप खन्ना ने लिखा है. पहले जो कुछ क्रिप्टो पर लिखा गया है ये उससे काफ़ी अलग है, और क़रीब-क़रीब पूरी क़िताब उन लोगों की कहानी कहती है, जो क्रिप्टो के चक्कर में फंसे. ये अलग-अलग तरह के लोगों की कहानी है, जिनमें से बहुत से लोग क्रिप्टो की सनक रखने वाले लोगों की छवि से अलग तरह के हैं. इसमें से एक छोटे क़स्बे का टीचर है, एक हैकर है, वकील है, स्टूडेंट है, और भी कई तरह लोग हैं. इनमें से कईयों में एक तरह की भूख है, एक इच्छा है कि जिस दौर में टेक्नोलॉजी ने इतनी तेज़ी से इतना कुछ बदला है, शायद यही टेक्नोलॉजी उनकी आर्थिक स्थिति भी बदल देगी. क्रिप्टो के पूरे प्रोपेगंडा की बुनियाद इसी इच्छा को जगाने और भुनाने पर आधारित है.
इन सभी लोगों के लिए, बदक़िस्मती से, पैसे और निवेश के नियम नहीं बदलते हैं. इसीलिए इस कहानी को आगे भी जारी रहना है. आपराधिक गतिविधियों और रैनसमवेयर के आगे, क्रिप्टोकरंसी बिल्कुल इस तरह से डिज़ाइन की गई है कि वो उन बचत करने वालों का फ़ायदा उठा सके, जो नहीं समझते कि क्यों कुछ निवेश सफल होते हैं, और क्यों कुछ दूसरे केवल लुभावने सपने जैसे दिखते हैं, मगर फ़रेब होते हैं. मानव स्वभाव में लालच रहता ही है, और कुछ लोग इसी लालच का फ़ायदा उठाते ही हैं. ये कभी बदलने वाला नहीं.
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