ये स्टोरी, तीन कहानियों की सीरीज़ का तीसरा हिस्सा है. इसके पहले का पार्ट 1 और पार्ट 2 भी पढ़ें.
अगर आप अमीर होना चाहते हैं, तो इक्विटी निवेश के सिवा और कोई चारा नहीं है.
मगर क्या इक्विटी से ही आप अमीर हो जाएंगे?
निक मरे (Nick Murray) अपनी क़िताब 'सिंपल वेल्थ, इनविटेबल वेल्थ' (Simple Wealth, Inevitable Wealth) में लिखते हैं - इक्विटी आपके बिना कुछ भी नहीं.
जब शेयर बाज़ार ऊपर चढ़ रहा होता था तो कई निवेशक AMC ऑफ़िस पहुंच जाते थे. जब हम जोख़िमों और एसेट एलोकेशन की ज़रूरत पर बात कर रहे होते, तो मुझे सुनने को मिलता था कि "मैडम, नो पेन नो गेन." (बिना दर्द सहे कुछ हासिल नहीं होता) और वो अपनी सारी पूंजी निवेश कर देते थे.
मगर इस व्यवहार की क्या वजह क्या है?
ज़ाहिर है, इसकी वजह थी वो दोस्त या पड़ोसी जो आसानी से और तेज़ी से अमीर हो रहे होते थे. इसीलिए ये लोग दावा करते कि वो जोख़िमों को समझते हैं और लंबे समय से निवेश करते आ रहे हैं.
जैसा कि हमेशा होता है, जब आप चाहें तभी मार्केट ऊपर जाए, ऐसा तो नहीं होता. मार्केट के साइकल होते हैं, स्थितियां बदलती रहती हैं. ऐसी बदलती परिस्थितियों में ये लोग शुरुआत में तो शांति और धीरज दिखाते, मगर जैसे ही क़ीमतें उनके निवेश से नीचे जातीं, उनमें घबराहट फैलनी शुरू हो जाती. हालांकि, तब भी लोग ऊपर-ऊपर से सब्र दिखाते. मगर अब उनके चेहरों पर चिंता की लकीरें आपको साफ़ दिखने लगतीं.
इसके अलावा, बाज़ार पेंडुलम की तरह होते हैं - वो किसी भी घटना के चलते दोनों तरफ़ झूलते रहते हैं. मगर जिस समय निवेश में बने रहने की या ज़्यादा निवेश करने की सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है, निवेशक बेचने का बटन दबा देते हैं और बाहर हो जाते हैं, जबकि मेरे मुताबिक़ निवेश अच्छा होता है, मगर फिर भी बाज़ार के उतार-चढ़ाव का असर तो होता ही है.
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इस पर दिग्गज क्या कहते हैं?
निवेशकों के रवैये में विरोधाभास को दिखाने वाले तमाम उदहारण हैं. इस पर ब्रायन फेरोल्डी (Brian Feroldi) ने कहा है, "शॉर्ट-टर्म माइंडसेट के साथ लॉन्ग-टर्म एसेट में इन्वेस्टमेंट करना एक ग़लती है." हमें ये तय कर लेना चाहिए कि हम ट्रेडर हैं या इन्वेस्टर. एक बार जब हमें ये पता चल जाता है कि हम क्या होना चाहते हैं, तो हमें उसके मुताबिक़ अपना रवैया रखना चाहिए. अगर हम इसे फ़ॉलो नहीं करते हैं, तो अपने नुक़सान के लिए ख़ुद ज़िम्मेदार हैं.
पोर्टफ़ोलियो चॉइस की अपनी थ्योरी के लिए हैरी मार्कोविट्ज़ (Harry Markowitz) को नोबेल पुरस्कार दिया गया था. उनकी थ्योरी निवेशकों को पोर्टफ़ोलियो रिटर्न को ज़्यादा से ज़्यादा बढ़ाने में मदद करती है. हालांकि, अंत में उनका अपना इक्विटी और डेट का एलोकेशन 50:50 रह गया था. इस पर उन्होंने कहा था कि "मेरा इरादा अपने भविष्य के पछतावे को कम करना था. इसलिए, मैंने अपने कॉन्ट्रीब्यूशन को बॉन्ड और इक्विटी के बीच बराबर-बराबर बांट दिया. पहले दिन से ही मेरा सारा पैसा स्टॉक में हुआ करता था... क्योंकि, अब मैं युवा नहीं हूं, तो मेरा बाक़ी का जीवन ही मेरा इन्वेस्टमेंट होराइज़न है, और इसका मतलब है कि मेरे पास क़रीब 30 साल और हैं." वो आगे कहते हैं, "इंडिविजुअल इन्वेस्टर के साथ बड़ी समस्या ये है कि वो आमतौर पर ख़रीदता तब है जब बाज़ार ऊपर होता है, और तब सोचता है कि ये और ऊपर जाएगा, और जब बाज़ार नीचे होता है, तो निवेश बेच देता है और सोचता है कि ये नीचे जाएगा."
अपने व्यवहार को क़ाबू में रखना इतना आसान नहीं होता, जितना निवेश करते समय लगता है. हर रोज़/ हर घंटे क़ीमतों पर नज़र रखना, आपकी हेल्थ और वेल्थ दोनों के लिए नुक़सानदायक हो सकता है.
पिछले भाग यहां पढ़ें:
भाग 1: वो क्या है जो आपको अमीर बनाएगा?
भाग 2: पूंजी से कमाई का कौशल
श्यामली 20 साल से ज़्यादा वक़्त से एसेट मैनेजमेंट की दुनिया से जुड़ी हुई हैं, जो बेहद अमीर निवेशकों से लेकर नए निवेशकों तक, सभी के साथ काम कर रही हैं. निवेश के मानवीय पहलू को समझने और निवेशकों के साथ सहानुभूति रखने की उनमें ख़ूबी है, जिससे उनके लेख दूसरों से अलग नज़र आते हैं. उनसे [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है.