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अर्थव्यवस्था क्या है? धन क्या है? जब लोग कहते हैं कि "x ने धन बनाया", या 'अर्थव्यवस्था बढ़ रही है', तो वास्तव में क्या हासिल होता है या गंवाया जाता है?
इसे समझने के लिए, आइए अर्थशास्त्रियों के बारे में कुछ चुटकुलों से शुरुआत करते हैं. दो अर्थशास्त्री जंगल में चल रहे हैं, जब वे गोबर के ढेर पर आते हैं. पहला अर्थशास्त्री दूसरे से कहता है "मैं तुम्हें उस गोबर को खाने के लिए $100 दूंगा." दूसरा अर्थशास्त्री $100 लेता है और ढेर को खा जाता है. वे तब तक चलते रहते हैं जब तक कि उन्हें दूसरा ढेर नहीं मिल जाता. दूसरा अर्थशास्त्री पहले की ओर मुड़ता है और कहता है "मैं तुम्हें इसे खाने के लिए $100 देता हूं." पहला अर्थशास्त्री $100 लेता है और गोबर खा जाता है. थोड़ा आगे चलने पर, पहला अर्थशास्त्री सोच में पड़ जाता है. वो कहता है, "तुम्हें पता है, मैंने तुम्हें गोबर खाने के लिए $100 दिए थे, फिर तुमने मुझे गोबर खाने के लिए वही $100 लौटा दिए. ऐसा लगता है कि हम दोनों ने बिना किसी कारण के गोबर खाया." "ये सच नहीं है", दूसरे अर्थशास्त्री ने जवाब दिया. "हमने GDP में 200 डॉलर बढ़ाए हैं!"
कुछ सोशल मीडिया पर, जहां मैंने हाल ही में इस चुटकुले को फिर से पढ़ा, किसी ने जवाब दिया, "दो अर्थशास्त्री थे, जो एक रेगिस्तानी द्वीप पर जहाज़ से गिर गए थे. अगले बीस साल में उन्होंने एक-दूसरे को अपनी टोपियां बेचकर 124 मिलियन डॉलर कमाए." किसी और ने टिप्पणी की. "इसलिए वे इसे सकल घरेलू उत्पाद कहते हैं," लेकिन हम इसे जाने देते हैं.
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चलिए ट्रैक बदलते हैं. अल साल्वाडोर के राष्ट्रपति नायब बुकेले अपने देश में अपराध पर बड़े पैमाने पर कार्रवाई कर रहे हैं, जो लंबे समय से व्यापक आपराधिक गिरोहों की हिंसा और गतिविधियों से जूझ रहा है. क़ानून लागू करने के लिए इस आक्रामक नज़रिए ने अपराध की दरों में काफ़ी कमी की है, लेकिन इसने इसके संभावित आर्थिक असर की चर्चाओं को भी जन्म दिया है. कुछ लोगों ने सुझाव दिया कि अपराध को कम करने से अर्थव्यवस्था में कमी आ सकती है, क्योंकि आपराधिक गतिविधियों को आर्थिक गतिविधि में योगदान देने वाला माना जाता था. हालांकि, ये विचार मूल रूप से ग़लत तरीक़े से समझता है कि अर्थव्यवस्था वास्तव में क्या है.
एक अर्थव्यवस्था अनिवार्य रूप से मूल्यवान वस्तुओं और सेवाओं का एक संग्रह है. पैसा इन संसाधनों को मापने और वितरित करने का एक साधन मात्र है. ग़ैर-उत्पादक गतिविधियां इस संग्रह में योगदान नहीं करती हैं; वे आमतौर पर मौजूदा संसाधनों को पुनर्वितरित करती हैं या नष्ट कर देती हैं. ये विश्वास कि ग़ैर-उत्पादक गतिविधियां ख़र्च के ज़रिए अर्थव्यवस्था को बढ़ाती हैं, टूटी खिड़की भ्रांति (Broken Window Fallacy) के रूप में जानी जाती है. ये भ्रांति मानती है कि नष्ट हुई संपत्ति को बदलने से आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है, लेकिन ये नए उत्पादन के लिए उन संसाधनों का इस्तेमाल न करने की अवसर लागत को अनदेखा करता है. अर्थव्यवस्था वस्तुओं और सेवाओं की बढ़ी हुई आपूर्ति के ज़रिए बढ़ती है, न कि अर्थहीन या विनाशकारी गतिविधियों द्वारा बनाई गई कृत्रिम मांग के माध्यम से.
मैं इस बारे में कुछ नहीं कह रहा हूं कि ऐसी चीज़ों को GDP में मापा जाएगा या नहीं. मुझे संदेह है कि ऐसा नहीं होगा, लेकिन एक अंतर्निहित वास्तविकता है जो किसी माप से अलग है. धन कुछ ऐसा ही है. रतन टाटा का हाल ही में निधन हो गया और हम सभी ने उनके बारे में बहुत कुछ पढ़ा और देखा. एक ऐसे व्यक्ति के लिए जो इतना अमीर था, ये उल्लेखनीय है कि उसके बारे में सार्वजनिक बातचीत में धन और पैसे के बारे में बहुत कम चर्चा हुई. वास्तव में धन क्या है? और जब हम कहते हैं कि अर्थव्यवस्था बढ़ रही है तो हमारा क्या मतलब है? ये सवाल केवल नंबरों और आंकड़ों से परे हैं, जो मूल्य और मानव प्रगति की मौलिक प्रकृति को छूते हैं.
जब हम कहते हैं कि किसी ने धन बनाया है, तो हमारा मतलब है कि वो कुछ ऐसा अस्तित्व में लाए हैं जो हमारे जीने, काम करने या जीवन का आनंद लेने की क्षमता को बढ़ाता है. अर्थशास्त्रियों के बारे में चुटकुले एक महत्वपूर्ण बिंदु को उजागर करते हैं: सभी आर्थिक गतिविधियां समान रूप से मूल्यवान नहीं होतीं. दो लोग अर्थहीन या विनाशकारी कामों के लिए पैसों का लेन-देन करते हैं, जो वास्तविक धन नहीं बनाते हैं, भले ही ये तकनीकी रूप से GDP को बढ़ाता हो. कुछ इसी तरह, रतन टाटा की संपत्ति सिर्फ़ उनके द्वारा जमा किए गए पैसे से नहीं बल्कि उनके द्वारा खड़े किए गए उद्योगों, उनके द्वारा सृजित नौकरियों और उनके द्वारा किए गए इनोवेशन से जुड़ी थी.
इसका निवेश से कुछ ज़्यादा संबंध है. असल में, ये अपने आप में अंतिम लक्ष्य वाली गतिविधियां नहीं हैं, बल्कि ये किसी लक्ष्य को पाने का साधन हैं. किसी अर्थव्यवस्था और धन सृजन का सही मापदंड जीवन की क्वालिटी को बेहतर बनाने की उसकी क्षमता में निहित है. जब हम निवेश करते हैं, तो हम सिर्फ़ स्क्रीन पर आकंड़ों का पीछा नहीं कर रहे होते हैं, बल्कि समाज में वास्तविक मूल्य के निर्माण और वितरण में भाग ले रहे होते हैं. ये स्क्रीन पर आकंड़ों का पीछा करने के बारे में नहीं है. नंबर ऊपर-नीचे हो सकते हैं और कुछ समय के लिए मनोरंजक हो सकती हैं. लेकिन वे बस इतने ही हैं.
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