Sip Cost Averaging: आम तौर पर हर निवेशक के ज़ेहन में ये सवाल आता है कि बाज़ार में निवेश करने का सही समय कब है. इसका आसान सा जबाव है, बाज़ार अपने निचले स्तर पर हो. लेकिन बाज़ार का निचला स्तर क्या है? अब इस सवाल का जवाब देना काफ़ी कठिन है.
अंदाज़ा लगाना मुश्किल है
Is it possible to time the markets: ज़्यादातर लोग बाज़ार में तब निवेश करना चाहते हैं, जब बाज़ार में गिरावट आई हो. इससे ज़्यादा से ज़्यादा मुनाफ़ा कमा सकते हैं. लेकिन शायद ही कोई जानता हो कि बाज़ार का निचला स्तर कितना होता है और किस वक्त बाज़ार और नहीं गिरेगा. इसी तरह से हर आदमी बाज़ार को ऊंचे स्तरों पर बेच कर निकलना चाहता है. लेकिन बाज़ार का ऊंचा स्तर क्या है, ये कोई नहीं जानता.
निवेश की दुनिया में बहुत से लोग ये दावा करते मिल जाएंगे कि वो आपको बता सकते हैं कि बाज़ार का ऊंचा या निचला स्तर क्या है? इसके लिए वो कैलकुलेशन, ग्राफ़ और अनुभव का इस्तेमाल करते हैं. ऐसे लोगों पर भरोसा न करें. ऐसा कोई नहीं है जो बाज़ार के उतार-चढ़ाव के बारे में लगातार सही अनुमान लगा सके. तमाम एक्सपर्ट हैं जो महज़ संभावनाओं के आधार पर बाज़ार के ऊंचे या निचले स्तर का अनुमान लगाते रहते हैं. इनमें से कोई सही भी हो सकता है. लेकिन आपके लिए ये जानना मुश्किल है कि बाज़ार के बारे में कब और किसका अनुमान सही हो सकता है.
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SIP सही है
अब ये सवाल उठता है कि निवेश कैसे किया जाए, जिससे शेयर या फ़ंड कम क़ीमत में मिल जाएं. बदकिस्मती से ऐसा करने का कोई सटीक तरीक़ा नहीं है. लेकिन, इसमें सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान यानी SIP आपकी मदद कर सकती है. जब आप SIP के ज़रिए निवेश करते हैं तो आपके निवेश की लागत अपने आप औसत हो जाती है. निवेश की लागत को औसत करने का एक प्रॉसेस है. जब आप SIP के ज़रिए नियमित तौर पर यानी हर महीने किसी फ़ंड में निवेश करते हैं तो आप अलग-अलग क़ीमतों पर यूनिट ख़रीदते हैं. जब बाज़ार में गिरावट आती है या निचले स्तर पर होता है तब आपको ज़्यादा यूनिट मिलती हैं. और जब बाज़ार चढ़ रहा होता है तो आपको कम यूनिट मिलती हैं. समय के साथ जब SIP 2-3 साल पुरानी हो जाती है तब आप बाज़ार के हर दौर में निवेश कर चुके होते हैं. इस तरह से आपके निवेश की लागत एवरेज हो जाती है.
उदारण के तौर पर समझिए
Sip cost averaging example: आप इसे उदाहरण के तौर पर भी समझ सकते हैं. मान लेते हैं कि आपने ₹10,000 की रक़म म्युचुअल फ़ंड में ₹200, ₹250, ₹150, ₹100 और ₹300 NAV में निवेश की है. ऐसे में आपको 50, 40, 66.66.66, 100 और 33.33 यूनिट मिलती हैं. इस तरह से आपने कुल ₹50,000 निवेश किए हैं. तो आपको कुल 289.89 यूनिट मिलीं. इसका औसत NAV बनता है ₹172.41. तो आपने जिन पांच NAV पर ये फ़ंड ख़रीदा है उनमें से तीन NAV की रक़म औसत NAV से कम है.
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उतार-चढ़ाव बाज़ार का स्वभाव है
how to benefit from SIP: हालांकि, SIP से आपके निवेश की लागत औसत हो ही जाएगी इस बात की गारंटी नहीं है. असल में, अगर बाज़ार लगातार बढ़ता है तो आप अपना सारा पैसा एक बार में निवेश करके बड़ा मुनाफ़ा कमा सकते हैं. लेकिन निवेश की दुनिया में ऐसा होता नहीं है. उतार-चढ़ाव बाज़ार का स्वभाव है. इसलिए बेहतर ये है कि आप निवेश को एक तय समय में फैला दें. इससे आपको बाज़ार में गिरावट का फ़ायदा मिल सकता है.
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SIP का फ़ायदा
What are the advantages of SIP: हालांकि SIP के ज़रिए निवेश करने पर ये बात तय है कि आपका सारा पैसा बाज़ार के निचले स्तर पर निवेश नहीं होगा, लेकिन इसका आपको ये फ़ायदा भी मिलेगा कि आपका सारा पैसा बाज़ार के उच्चतम स्तर में भी नहीं निवेश होगा. SIP सिर्फ़ एक फ़ाइनेंशियल टूल नहीं है. बल्कि, ये एक साइकोलॉजिकल टूल भी है जो निवेशक के अंदर अनुशासन लाता है. आम तौर पर निवेशक बढ़ते बाज़ार में निवेश करना पसंद करते हैं और गिरते बाज़ार में निवेश से बचते हैं. निवेशकों का ये रवैया उनको रिटर्न के लिहाज़ से नुक़सान पहुंचा सकता है. SIP निवेश के प्रॉसेस को ऑटोमोड में ले आती है और इसमें इमोशन की जगह नहीं होती. SIP निवेश की लागत को औसत करके बेहतर रिटर्न हासिल करने में मदद करती है.
कैसे चुनें अच्छे म्यूचुअल फ़ंड
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रुपए की लागत औसत के क्या हैं नुकसान?
Disadvantages of rupee cost averaging? हालांकि, कॉस्ट एवरेजिंग का एक नुक़सान भी है. रुपये की लागत औसत होने का संभावित नुक़सान बाज़ार में गिरावट के दौरान ऊंची क़ीमत पर बड़ी मात्रा में यूनिट मिलने की संभावना है. अगर बाज़ार में गिरावट बनी रहती है तो इससे आपके लिए रिस्क बढ़ सकता है.