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कुछ तो लोग कहेंगे

एक दिन, लाइव रेडियो शो पर एक निवेशक के सवाल का जवाब देते हुए, मेरा मन किया कि मैं एक पुराना हिंदी गीत गुनगुनाऊं.

कुछ तो लोग कहेंगेAnand Kumar

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5:33

"कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना." मैं ये लाइन गाना चाहता था, पर पहले मैं आपको इसका संदर्भ दे देता दूं. देखिए, अक्सर, निवेश का बेहद सामान्य सवाल भी एक नया जीवन पा जाता हैं जब वो सवाल एक निवेशक की परिस्थिति में सराबोर हो कर या उसके कहने के अनूठे अंदाज़ में सामने आता है. यही वजह है कि मुझे लाइव सवाल-जवाब बहुत पसंद हैं. एक लिखा हुआ सवाल जो घिसा-पिटा लगता हो, वही सवाल बहुत दिलचस्प और नई समझ देने वाला हो जाता है, जब ऑडियंस से जुड़े संदर्भ के साथ बातचीत में उभरता है.

हर रविवार की शाम, आधे घंटे के लिए, मैं आकाशवाणी के "मार्केट मंत्र" कार्यक्रम पर होता हूं, जहां श्रोता अपने निवेश से जुड़े सवाल पूछते हैं और मैं लाइव रेडियो पर उनके सवालों के जवाब देता हूं. इस फ़ॉर्मैट को एक दशक से ज़्यादा हो चले हैं और ये मुझे लेख लिखने या टीवी पर आने से ज़्यादा पसंद है. अब तक कई सौ कार्यक्रमों में हिस्सा लेने और हज़ारों श्रोताओं से बात करने के बाद, मैं लोगों के सवालों से काफ़ी हद तक परिचित हो चुका हूं, आख़िर, निवेशक जितनी तरह के सवाल कर सकते हैं उसकी भी एक सीमा तो है ही. मगर, विषय भले ही एक से रहें, लोग बदल जाते हैं, इससे दिलचस्पी की एक और परत सवालों में जुड़ जाती है.

इस निवेशक ने कुछ साल पहले ही निवेश करना शुरू किया था. उसने तीन-चार अच्छे फ़ंड चुने थे और उनमें SIP के ज़रिए लगातार निवेश करता आ रहा था. सबकुछ ठीक-ठाक था—रिटर्न अच्छे थे, उसने उतार-चढ़ाव को सहना सीख लिया था—उसे अपने निवेशों से कोई परेशानी नहीं थी. हालांकि, उसने अपनी एक दिलचस्प चिंता को लेकर कार्यक्रम में फ़ोन किया था. उसकी समस्या थी, "लोग कह रहे हैं कि मार्केट बहुत ज़्यादा हाई हैं और अब उनमें गिरावट आएगी". ये चिंता निवेश की नहीं, बल्कि यूं ही सोशल मीडिया और दूसरी जगहों पर लोगों की कही बातों पर थी जिससे हमारा ये दोस्त चिंतित हो रहा था.

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तो, जैसा कि गीत में कहा गया है, लोग सोशल मीडिया पर आते ही कुछ कहने के लिए हैं. उनका पूरा का पूरा मक़सद ही यही है. अगर वो समझदारी की बातें करने लगें कि निवेश को धीरे-धीरे बरसों-बरस तक करना चाहिए, तो जल्दी ही उनके पास कुछ भी नया कहने को नहीं होगा, और कोई भी उन पर ध्यान नहीं देगा. इस श्रोता को मेरी सलाह थी कि उसे अपने निजी अनुभव पर फ़ोकस करना चाहिए और अपनी समझ और जानकारी पर आत्मविश्वास होना चाहिए, जो उसे यहां तक लाई है. आप अगर पहले से ही सही रास्ते पर हों, तो इसलिए दुविधा में रहना क्योंकि कोई कुछ कह रहा है, नुक़सान को बुलावा देना है.

मैं मॉटली फ़ूल के चीफ़ इन्वेस्टमेंट ऑफ़िसर का एक कॉलम पढ़ रहा था जिसमें उन्होंने शेक्सपीयर की बात की मिसाल दी थी: हमारे संदेह देशद्रोही हैं, और कोशिशें करने से डरकर हम वो अच्छाई खो देते हैं जिसे हम अक्सर जीत सकते थे. संदेह किसी भी उद्देश्य को पूरा नहीं करता है, ख़ासकर जब वो आपके अपने ज्ञान और अनुभव के विपरीत हो. किनारे बैठकर और निवेश न करके, किसी भ्रामक स्थिति की प्रतीक्षा कर, कहीं ज़्यादा रिटर्न को छोड़े गए हैं, जिनमें निवेश की कोशिश की जा सकती थी.

समय के साथ जिस तरह से वैल्यू बढ़ती है, उसे देखिए. सोचिए कि अगर 1982 में ₹1 लाख BSE सेंसेक्स के स्टॉक्स में निवेश किए गए होते. आज वो पैसा बढ़ कर, ₹37 लाख हो गया होता! इन सालों के दौरान, न जाने कितनी आर्थिक और राजनीतिक मुश्किलें देश में आई हैं. अगर आप इस चिंता में हैं कि अभी "लोग कुछ कह रहे हैं", तो सोचिए कि 1993 या 2001 या 2007 में वो क्या कह रहे थे. और इसके बावजूद, जो कोई भी अपने निवेश पर क़ायम रहा, उसने इन सालों के दौरान बड़ी दौलत कमाई है.

निवेश की यात्रा में कई तरह की आवाज़ें, विचार, और दुविधाएं आती ही हैं. मगर जैसा कि इतिहास ने बार-बार हमें दिखाया है कि ये आवाज़ें मायने नहीं रखतीं. मायने रखता है अनुशासन, धीरज, आपका अपना अनुभव और ज्ञान. बजाए इस शोर से डगमगाने के, अपने निवेश की यात्रा और निवेश के बुनियादी सिद्धांतों पर भरोसा कीजिए. हर मार्केट, चाहे ऊंचा हो या नीचा, अपनी कहानी कहता है, मगर एक अच्छे जानकार निवेशक के सधे हुए हाथ, बड़ी सफलताओं की कहानी लिखते हैं. तो, अगली बार जब आपका सामना ऐसी बातें करने वालों से हो या आप पर बहुत से लोगों के विचारों का बोझ आए, तो अपनी कहानी पर भरोसा करें न कि उनकी. भरोसा क़ायम रखिए, जानकारी बढ़ाते रहिए, और निवेश समझदारी से कीजिए.

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