Compounding: क्या आप कंपाउंडिंग के जादू से वाकिफ़ हैं? अगर नहीं, तो आपको इस बारे में जानना चाहिए. अगर आप एक इन्वेस्टर हैं, तो ये और भी ज़रूरी हो जाता है. आमतौर पर निवेश करने वाला हर शख़्स दावा करता है कि वो कंपाउंडिंग समझता है. लेकिन असल में कंपाउंडिंग के जादू को कम ही लोग समझ पाते हैं कि कैसे इससे आपका पैसा तेज़ रफ़्तार से बढ़ता है.
दरअसल, कंपाउंडिंग (compounding returns) के नतीजों को गणित की समझ रखने वाले लोग ही अच्छी तरह से समझ सकते हैं. बाक़ी लोग इसे समझने के लिए कैलकुलेशन (Compounding Interest Calculator) का सहारा लेते हैं.
क्या है कंपाउंडिंग?
What is Compounding: आइए, पहले समझते हैं कि कंपाउंडिंग क्या है? कंपाउंड इंटरस्ट (Compound interest) यानी चक्रवृद्धि ब्याज तब जेनरेट होती है जब आपका मूल धन या निवेश में ब्याज या रिटर्न जुड़ता है. इस तरह से आपके निवेश में जो ब्याज या रिटर्न जुड़ता है, वो भी ब्याज या रिटर्न कमाता है.
कैसे काम करती है कंपाउंडिंग
How does compounding work: सरल शब्दों में कहें, तो आपके मूल धन में ब्याज का जुड़ना ही कंपाउंडिंग हैं. उदाहरण के लिए, मान लेते हैं कि आप बैंक में ₹100 जमा करते हैं, और 10 फ़ीसदी ब्याज सालाना कंपाउंड हो रहा है. पहले साल के अंत में ब्याज ₹10 होगा. दूसरे साल 10 फ़ीसदी ब्याज आपकी मूल राशि यानी ₹100 और पहले साल मिले ब्याज दोनों पर मिलेगा. इन दोनों को मिलाकर ये ₹110 होगा. इस तरह, पहले साल के साथ-साथ दूसरे साल मिला ब्याज भी इसमें जुड़ जाएगा. और ये प्रक्रिया हर साल चलती रहेगी. हालांकि हम यहां ब्याज शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन कंपाउडिंग हर तरह के रिटर्न पर लागू होती है न कि सिर्फ़ ब्याज पर.
कंपाउंडिंग में 'समय' यानी निवेश की अवधि सबसे अहम है. कंपाउंडिंग में आपके रिटर्न पर कमाई होती है और इसके बाद, पहले मिले रिटर्न पर मिलने वाला रिटर्न भी कमाई करना शुरू करता है. इस तरह से आपका फ़ायदा तेज़ी से बढ़ता जाता है.
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स्टॉक्स में कैसे काम करती है कम्पाउंडिंग?
Compounding in stocks: वैल्यू रिसर्च के सीईओ धीरेंद्र कुमार ने स्पष्ट करते हुए बताया, "इक्विटी का स्वभाव ही ऐसा है कि जिस तरह, आप एक बिज़नस शुरू करते हैं, आप कमाते हैं और आप मुनाफ़े का एक हिस्सा डिविडेंड और बाक़ी पैसे के रूप में साझा करते हैं, वैसे ही कई बिज़नस अपने आप में रि-इन्वेस्ट करते हैं. और ज़्यादातर बिज़नस समय के साथ बढ़ते हैं."
इसी संबंध में उन्होंने एक उदाहरण भी दिया. उन्होंने कहा कि हम सभी ने मारुति उद्योग (Maruti Udyog) के बारे में सुना है और मैंने आपके साथ साझा करने के लिए कुछ नंबर चुने हैं. 1997-98 में मारुति उद्योग ने 3.5 लाख कारें बेचीं. वहीं 2021 में इसकी 16.5 लाख कारें बिकीं. तो, ये ग्रोथ ऐसी है, जो आपको दिख रही है. तब उन कारों की क़ीमत कितनी थी? ये ₹8,478 करोड़ थी, आज इसकी क़ीमत ₹83,800 करोड़ है. तो, इस अवधि के दौरान इस तरह से 10 गुना बढ़ोतरी हुई और इसका मुनाफ़ा ₹651 करोड़ से बढ़कर ₹3,776 करोड़ हो गया. तो, ये जटिल है क्योंकि कंपनी पैसा कमाती रही, कारें बनाती रही. अलग-अलग तरह की कारें बनाईं, बेहतर कारें बनाईं, लोगों ने उन्हें पसंद किया और वो अपना बिज़नस बढ़ाती गई, लाभ कमाया और ज़्यादा कमाया, ज़्यादा संयंत्र स्थापित किए. ज़्यादा ब्रांड पेश किए, डिस्ट्रीब्यूशन बढ़ाया और फिर ये एक बड़ी कंपनी बन गई. यही कंपाउंडिंग है. ये ऐसी कंपाउंडिंग है जिसे हमने पिछले 25-30 साल में देखा है. कंपनी की शुरुआत 1985 में ग्राउंड ज़ीरो से हुई और आज ये भारत की सबसे बड़ी पैसेंजर कार कंपनी बन गई है. तो, ये कम्पाउंडिंग यानी चक्रवृद्धि है और यह किसी भी बिज़नस की स्वभाव है, जो बढ़ने और फ़ायदा कमाने और उस फ़ायदे को रि-इन्वेस्ट करने के लिए गुड्स और सर्विसेज़ का प्रोडक्शन या डिस्ट्रीब्यूशन करती है.
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लेकिन मारुति उद्योग से लेकर मारुति सुजुकी तक की ग्रोथ पब्लिक प्रॉविडेंट फ़ंड (Public Provident Fund) की ब्याज इनकम की तरह एक समान रूप से नहीं हुई, जहां आप 7.5-8 फ़ीसदी कमाते हैं और साल दर साल पूंजी जुड़ती जाती है. यहां हम गारंटीशुदा रिटर्न की तुलना में इक्विटी के उतार-चढ़ाव के बारे में बात करते हैं. अगर किसी ने PPF में सालाना ₹10,000 के निवेश के साथ शुरुआत की होती और इतने साल तक इसे जारी रखा होता, तो उसने 45 साल के लिए ₹4.5 लाख का निवेश किया होता. ये क़रीब ₹73 लाख तक बढ़ गया होता. जो लगभग 10 फ़ीसदी का सालाना रिटर्न होता है. दरअसल, शुरुआती साल में PPF रिटर्न ज़्यादा हुआ करता था. और ये मानते हुए कि निवेश बना रहा होगा, आपके पास ₹73 लाख होंगे. अगर आपने सेंसेक्स में वही काम किया होता, जो 1979 से अस्तित्व में है और उसका बेस 100 था, तो आपने हर साल वही ₹10,000 यानी कुल मिलाकर ₹4.5 लाख का निवेश किया होता, तो इसकी वैल्यू ₹3.11 करोड़ हो जाती. ये सालाना 14.56 फ़ीसदी के कम्पाउंडेड एनुअल ग्रोथ वाले सालाना रिटर्न के बराबर है.
तो, सवाल ये उठता है कि इक्विटी में ऐसा क्यों होता है? सिर्फ़ इसलिए कि उनसे रियल इकोनॉमी ज़ाहिर होती है और ये सभी तरह के जोख़िमों के साथ आता होगा. सेंसेक्स ने कंपनियों को ख़त्म होते हुए भी देखा है. इन 40 वर्षों में कई कंपनियां बंद हो गईं. हिंदुस्तान मोटर्स (Hindustan Motors) सेंसेक्स में शामिल थी. कई कंपनियों के बंद होने के बावजूद, कुछ कंपनियों के दिवालिया हो जाने के बावजूद, कुछ कंपनियों का अस्तित्व में होते हुए भी इतना ख़राब प्रदर्शन करने के बावजूद, उनमें निवेशकों का पैसा डूबने के बावजूद डायवर्सिफ़िकेशनने काम किया. सेंसेक्स के मामले में, इस सबके बावजूद ये 14.50 फ़ीसदी के सालाना रिटर्न में तब्दील होता है. तो, ये इक्विटी का जादू है, जो कंपाउंडिंग के जादू के साथ जुड़ा हुआ है.
क्या म्यूचुअल फ़ंड में मिलता है कंपाउंडिंग का फ़ायदा?
फ़िक्स्ड इनकम फ़ंड्स (fixed income funds) के मामले में, ये कुछ हद तक डिपॉज़िट की तरह इकट्ठा होता है, लेकिन बिना गारंटी के. इक्विटी फ़ंड के मामले में, आपके पास इससे जुड़ा एसेट का नेचर होता है, जो यहां नज़र आता है. इससे पहले सेंसेक्स के बारे में उदाहरण दिया जा चुका है. तो, आप सेंसेक्स को एक डायवर्सिफ़ाइड म्यूचुअल फ़ंड के रूप में देख सकते हैं, जो सभी तरह की बुरी ख़बरों, सभी प्रकार के जोख़िमों, सभी तरह के उतार-चढ़ाव का सामना कर रहा है और कई बार इसका मूल्य एक तिमाही या एक साल में 25-30 फ़ीसदी तक नीचे चला गया था. तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद ये इतना बेहतर रिटर्न इसलिए देता है, क्योंकि इसका नेचर एक जैसा ही रहता है.
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किसी कंपनी की ग्रोथ का नेचर या एक अच्छे प्रबंधन वाली कंपनी महंगाई से ज़्यादा कमाई करती है और साथ ही, गुड्स और सर्विसेज़ को एडजस्ट करने में सक्षम होती है. तो, ये सभी बातें इक्विटी रिटर्न में जाहिर होती हैं और इसलिए, ये सही नहीं होगा और ये हर साल तिमाही आधार पर 7.5 फ़ीसदी की तरह नहीं होगा. लेकिन इक्विटी का नेचर ही कुछ ऐसा है कि ये समय के साथ बढ़ती है और अगर आप निवेशित रहते हैं तो ये बढ़ती जाती है.
कंपाउंडिंग के बेनेफ़िट को अधिकतम कैसे करें?
कंपाउंडिंग के फ़ायदे को अधिकतम करने का सबसे सरल तरीक़ा लंबा टाइम-फ़्रेम है. जादू को अपना काम करने दें, क्योंकि पैसे से पैसा बनता है या कंपनी बढ़ती है, और इसे और आगे बढ़ने दीजिए.
इसके बाद ये पक्का करने की बारी आती है कि आपका निवेश अच्छी तरह से डायवर्सिफ़ाईड हो. दरअसल, अगर आप बहुत सीमित दायरे में इस जादू का असर देखने की कोशिश करेंगे, तो आप ज़्यादा जोख़िम में पड़ जाएंगे. इसलिए ज़्यादा डायवर्सिफ़ाइ करें. और डरें नहीं, भरोसा रखें क्योंकि कई बार कंपाउंडिंग में सबसे बड़ी बाधा तब आती है, जब आप बाज़ार से डर जाते हैं और इक्विटी से बाहर निकल जाते हैं. इसलिए जब आप उस गंभीर स्थिति का सामना करते हैं, तो इससे बेहतर दिन कभी नहीं होगा - बाज़ार गिर गया हो और हर कोई डरा हुआ हो और हम सोचते हैं कि हमने पैसा खो दिया है, जिसे आप कभी भी वापस नहीं पा सकेंगे. मुझे लगता है कि हमें बाज़ार के लिहाज़ से इन्हें सामान्य बातें समझनी चाहिए और रिवार्ड तभी मिलते हैं जब आप हर हालात का सामना करने में सक्षम होते हैं.
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