इस बात में कोई दोराय नहीं कि रिटायरमेंट के लिए फ़ाइनेंशियल प्लानिंग ज़्यादातर लोगों के लिए सबसे ज़रूरी मुद्दा है. इस विषय पर हमारे लेख और वीडियो को हमारी वेबसाइट और YouTube चैनल पर सबसे ज़्यादा हिट मिलते हैं. लेकिन हमारी कवरेज़ में, बाक़ी विषयों की तरह ही, रिटायरमेंट के फ़ाइनेंशियल पहलुओं पर ज़्यादा ध्यान दिया जाता है. महंगाई के असर और सेविंग को नुक़सान होने के जोख़िम से जुड़े बड़े मुद्दे आमतौर पर हमारी चर्चा के केंद्र में रहते हैं.
हालांकि, एक और विषय भी है जिसकी काफ़ी ज़्यादा अहमियत है. ये विषय है - रिटायरमेंट का मानसिक पहलू. मुझे भरोसा है कि धनक के संजीदा पाठक अपने रिटायरमेंट को लेकर फ़ाइनेंशियल रूप से ज़रूर अच्छी तरह से तैयार होंगे. तो आइए, इस लेख में रिटायरमेंट के उस पहलू की चर्चा करें जिस पर काफ़ी कम बात की जाती है.
मैंने पिछले महीने अपना काफ़ी वक़्त घर की एक मेडिकल इमरजेंसी से निपटने में बिताया. स्वास्थ्य लाभ ले रही मां के साथ मैंने काफ़ी वक़्त बिताया और इस दौरान मुझे रिटायरमेंट के नॉन-फ़ाइनेंशियल पहलू के बारे में गहराई से सोचने का मौका मिला. उसी दौरान मैंने डॉ. रिले मोयन्स द्वारा प्रस्तुत शानदार टेड टॉक (TED Talk) को सुना. कनाडा में रहने वाले डॉ. मोयन्स एक रिटायर्ड फ़ाइनेंशियल एडवाइज़र और काफ़ी जाने-माने लेखक हैं. डॉ. मोयन्स के विचार रिटायर्ड लोगों के साथ उनके अनुभवों के बारे में किए गए दर्जनों इंटरव्यू पर आधारित हैं.
डॉ. मोयन्स का मानना है कि ज़्यादातर लोग नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं. अपने विचारों के ज़रिये डॉ. मोयन्स आपको उन चीज़ों के लिए तैयार करने की कोशिश करते हैं जिनका सामना आपको रिटायरमेंट के बाद करना पड़ सकता है. उनकी बातें सुनना आपके लिए एकांत या नाख़ुश जीवन के बजाय एक बेहतर रिटायर्ड जीवन की दिशा में पहला बड़ा कदम साबित हो सकता है - जैसा कि वो कहते हैं, "रिटायरमेंट से सारा रस निचोड़ लेना."
उनका मानना है कि रिटायरमेंट के बाद एक व्यक्ति को चार फेज़ से गुजरना पड़ सकता है. पहले फेज़ को उन्होंने 'वैकेशन फेज़' नाम दिया है जिसमें आप आख़िरकार अपनी पुरानी दिनचर्या के बंधनों को तोड़ते हैं और नई-नई आज़ादी का अनुभव लेते हैं. हममें से ज़्यादातर लोग अपने रिटायरमेंट की यही कल्पना करते हैं - आज़ादी का अनुभव! लेकिन जल्द ही ये आपको बोरियत और ख़ालीपन के अहसास की ओर ले जाता है. इसके अलावा, आप अपनी खोई हुई पहचान और मक़सद के लिए भी तरसते हैं. ये दूसरे फेज़ की शुरुआत है और इससे निपटना सबसे मुश्किल काम है.
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तीसरा फेज़ तब शुरू होता है जब आप ख़ुद को निराशा की इस स्थिति से बाहर निकालने का फ़ैसला लेते हैं. ये वो फेज़ है जब आप अपने जीवन को फिर से सार्थक बनाने के लिए अलग-अलग चीज़ें आज़माते हैं. आप कोई ऐसी चीज़ खोजने के लिए निकल पड़ते हैं जो आपके मन में आने वाले कल के लिए दिलचस्पी पैदा कर दे. इसके लिए आप कोशिश करते हैं, असफल होते हैं और फिर से कोशिश करते हैं... जब तक आपको कोई ऐसी चीज़ न मिल जाए जो आपके मन में कोई मक़सद और कुछ पाने की इच्छा जगा दे. इसके बाद आप चौथे फेज़ में प्रवेश करते हैं, और यही वो फेज़ है जिसमें आप रिटायरमेंट का सारा रस निचोड़ते हैं! डॉ. मोयन्स का मानना है कि सभी लोग यहां तक नहीं पहुंच पाते, पर जो ऐसा कर लेते हैं वे सबसे खुश लोगों में से एक होते हैं.
उनके विचार, जो सैकड़ों रिटायर्ड लोगों के साथ हुई उनकी बातचीत पर आधारित हैं, ये समझने में मदद करते हैं कि रिटायरमेंट के बाद किन चीज़ों का सामना करना पड़ सकता है. लेकिन क्या आप इसके लिए तैयार रहने के लिए कुछ कर सकते हैं? क्या आप अपने चौथे फेज़ में तेज़ी ला सकते हैं? क्या आप निराशा से भरे दूसरे फेज़ को ख़त्म कर सकते हैं, या उसकी अवधि को कम कर सकते हैं?
जो भी हो, मुझे लगता है कि इन उलझनों को रिटायरमेंट लेने से पहले ही वैकल्पिक गतिविधियों को लेकर कोशिशें और एक्सपेरिमेंट करके दूर किया जा सकता है. भले ही आप अपनी वर्क लाइफ़ में प्रोडक्टिव रूप से व्यस्त हों, फिर भी किसी ऐसी चीज़ में अपना हाथ आज़माने के लिए वक़्त ज़रूर निकालें जो काम छोड़ने के बाद भी आपको सार्थक रूप से व्यस्त रखे. ये चीज़ कोई शौक, ब्लॉग लिखना, अपनी क़ाबिलियत दूसरों को सिखाना या यहां तक कि कोई सामाजिक मुद्दा भी हो सकता है. कहने का मतलब ये है कि किसी ऐसी चीज़ के बीज बोएं जो आपके कामकाजी जीवन के बाद लंबे वक़्त तक आपके मन में एक मक़सद को जिंदा रख सके.
मेरी जानकारी में ऐसे कई रिटायर्ड लोग हैं जिन्होंने अपनी पेशेवर जिंदगी तो काफ़ी अच्छे से बिताई पर इसके अलावा कुछ ख़ास न कर सके. हो सकता है कि रिटायरमेंट के बाद उन्हें पैसे की कोई दिक्कत न हो, पर उनके दिमाग में कुछ न कुछ उथल-पुथल जारी रह सकती है. कुछ लोग दूसरे फेज़ में फंस गए हैं और दुर्भाग्यवश, जीवन भर इसी फेज़ में फंसे रह सकते हैं. ये भी एक दुःख की बात है कि जो लोग पेशेवर रूप से काफ़ी अच्छा जीवन बिताते हैं और काफ़ी तरक्की कर लेते हैं, उनके लिए अचानक से अपना रुतबा खो देना और भी ज़्यादा दिक्कत भरा हो सकता है.
भारतीय संदर्भ में, मेरा मानना है कि देश में बदलती पारिवारिक व्यवस्था से रिटायर्ड लोगों की वर्तमान पीढ़ी सबसे ज़्यादा प्रभावित होगी. वे एक संयुक्त परिवार में पले-बढ़े हैं और उन्होंने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा इसी परिवार में बिताया है. बच्चों के अचानक से कहीं बाहर चले जाने या कहीं और बस जाने की वजह से उन्हें अपना घर एक खाली घोंसला बनता दिखाई पड़ रहा है. वे अपने जीवन के ढलते पड़ाव में एकांत जिंदगी जी रहे हैं, जो कि उन्होंने कभी नहीं किया.
इसी ख़ालीपन का सामना आज की युवा पीढ़ी को भी करना पड़ सकता है, जो 'फ़ाइनेंशियली इंडिपेंडेंट टु रिटायर अर्ली' (FIRE) की इच्छा रखते हैं. हालांकि मुझे लगता है कि FIRE एक शानदार सोच है, और जिन लोगों को मैं जानता हूं उनमें से कई लोग इसे फ़ाइनेंशियली हासिल भी कर लेंगे, पर समस्या कुछ और है और काफ़ी गहरी है. उनसे बात करके मुझे ये अहसास हुआ कि उन्होंने इस बारे में ज़्यादा नहीं सोचा है कि वे अपने ख़ाली वक़्त में क्या करेंगे. ये एक बड़ी समस्या है. जब तक आपको इस बात का पता न चल जाए, तब तक जल्दी रिटायर होने के बारे में न सोचें. भले ही आप फ़ाइनेंशियली मजबूत हों, पर रिटायरमेंट की उदासी से छुटकारा पाना मुश्किल है.
रिटायरमेंट साफ़ तौर से मुश्किल मानसिक चुनौतियां लेकर आता है. जिस तरह से आप फ़ाइनेंशियल प्लानिंग करते हैं, उसी तरह से इन चुनौतियों के लिए पहले से तैयारी करना ज़रूरी है, बजाय इसके कि 'बाद में देखा जाएगा'.
जो लोग इस मुद्दे को लेकर गंभीर हैं, उन्हें डॉ. मोयन्स की टेड टॉक ज़रूर देखनी/सुननी चाहिए. वीडियो देखने के लिए YouTube पर 'The 4 phases of retirement Dr Riley Moynes' सर्च करें. वो एक पॉडकास्ट सीरीज़ भी चलाते हैं जिसमें वो चौथे फेज़ के रिटायर्ड लोगों का इंटरव्यू लेते हैं. उन लोगों की असल जिंदगी की कहानियों से प्रेरणा लेने के लिए इसे ज़रूर देखें. मैंने इसे पूरा नहीं देखा है, पर एयर कनाडा के पूर्व पायलट एलन ऑल्स के साथ हुई डॉ. मोयन्स की बातचीत मुझे काफ़ी दिलचस्प लगी.