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वोडाफ़ोन: क़र्ज़ लौटाने का वक़्त

क़र्ज़ के बोझ से दबे वोडफ़ोन आइडिया ने कई बैंकों से लोन मांगा है

वोडाफ़ोन: क़र्ज़ लौटाने का वक़्त

2023 क़र्ज़ के बोझ से दबी टेलीकॉम कंपनी वोडाफ़ोन आइडिया के लिए 2023 की शुरुआत बड़ी चुनौती ले कर आई है। कंपनी ने तक़रीबन ₹7,000 करोड़ के लोन के लिए SBI, HDFC बैंक सहित कई बैंकों से संपर्क किया है।
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कंपनी लोन का इस्‍तेमाल मुख्य तौर पर इंडस टावर के ₹7,500 करोड़ के क़र्ज़ की किश्‍त के भुगतान के लिए होगा। इंडस पावर ने पहले ही कंपनी को चेताया है कि अगर उसने क़र्ज़ नहीं चुकाया तो वोडफ़ोन अपने टावर की पहुंच या सुविधा गंवा देगा।

वोडफ़ोन आइडिया ने जनवरी से अपना 100% बकाया चुकाने का वादा किया है, और उसका महीने का बकाया ₹200-300 करोड़ है। इंडस टावर के अलावा, कंपनी को नोकिया और एरिक्‍सन का बकाया चुकाने के लिए भी फ़ंड की ज़रूरत है।

हालांकि, किसी भी बैंक ने लोन के लिए सहमति नहीं जताई है। इसके अलावा बैकों ने वोडफ़ोन से सरकार की संभावित होल्डिंग और विस्‍तार योजना को साफ़ करने के लिए कहा है। इसके अलावा, कंपनी का मौजूदा -₹76,000 करोड़ नेगेटिव नेट वर्थ ने भी ज़्यादातर बैंकों को उदासीन कर दिया है।

मौजूदा परिदृश्‍य में, ये कल्‍पना करना मुश्किल है कि 2016 से पहले वोडफ़ोन भारतीय टेलीकॉम इंडस्‍ट्री की अगुआ कंपनियों में से एक थी।

ऐसा क्‍या हुआ कि वोडाफ़ोन आइडिया क़र्ज़ के बोझ तले दब गई?

एक विशाल कंपनी का पराभव
दशक के पहले हिस्‍से में भारतीय टेलीकॉम सेक्‍टर में कंपिनयों मार्केट हिस्‍सेदारी हासिल करने के गलाकाट प्रतिस्‍पर्धा थी, और वोडाफ़ोन और आइडिया शीर्ष दावेदारों में थीं।

लेकिन फिर रिलायंस और जियो के मैदान में आने से सब कुछ बदल गया। जियो ने अपने अनलिमिटेड प्‍लान से इंडस्‍ट्री का खेल ही बदल दिया। जिओ के रेट से प्रतिस्‍पर्धा करने के चक्‍कर में टेलीकॉम कंपनियों का क़र्ज़ बढ़ता गया। और वोडाफ़ोन और आइडिया इसके अपवाद नहीं थे। आखिरकार दोनों कंपनियों को विलय करना पड़ा।

हालांकि, विलय भी कंपनी को ख़र्च के भार से नहीं बचा सका, जो टेलीकॉम इंडस्‍ट्री में बने रहने लिए बेहद ज़रूरी है। हाल के कुछ सालों में कंपनी का मुनाफ़ा तेज़ी से गिरा, और जल्‍द ही कंपनी क़र्ज़ के बोझ से दब गई। कंपनी की कुल संपत्ति वित्त-वर्ष 2016 में ₹23,550 करोड़ था, जो सितंबर 2022 में गिरकर लगभग ₹76,000 करोड़ हो गया है।

कंपनी ने फ़ंड जुटाने के कई तरीक़े अपनाए, लेकिन सफलता नहीं मिली। इसी के तहत, वोडाफ़ोन ने सरकार को कंपनी की 33 प्रतिशत हिस्सेदारी देने की कोशिश भी की ताकि सरकार इसकी सबसे बड़ी हिस्‍सेदार हो जाए।

ऐसा लगता है कि वोडफ़ोन आइडिया के लिए आगे का रास्‍ता काफी मुश्किलों भरा है।


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