How to port health insurance policy: एक दशक से ज़्यादा समय पहले भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (IRDAI) ने हेल्थ इन्श्योरेंस में पोर्टेबिलिटी का कांसेप्ट दिया था. इस कदम से कस्टमर को ये सहूलियत मिली कि वे अपनी हेल्थ इन्श्योरेंस पॉलिसी एक कंपनी से दूसरी कंपनी पर शिफ़्ट कर सकें. ख़ास बात ये है कि इसमें कोई बेनेफ़िट भी गंवाना नहीं पड़ता था. आम तौर पर कोई भी तीन वज़हों से पॉलिसी पोर्ट करना चाहता है. ये तीन वजहें हैं-हेल्थ इन्श्योरेंस कंपनी के साथ बुरा अनुभव, दूसरी कंपनी द्वारा बेहतर कवरेज और समान बेनेफ़िट के लिए कम प्रीमियम.
आम तौर पर, हेल्थ इन्श्योरेंस पॉलिसी, शुरुआती दो सालों में कई मेडिकल कंडीशंस जैसे गाल ब्लैडर स्टोन, हार्निया, कैटरैक्ट्स, पाइल्स और ज्वाइंट रिप्लेसमेंट का इलाज कवर नहीं करती हैं. इसी तरह से, प्री-एग्जिस्टिंग डिजीज का इलाज भी तीन से चार साल के वेटिंग पीरियड के बाद ही कवर होता है.
हर साल कवरेज बढ़ने के फ़ायदे की वजह से कई पॉलिसी होल्डर सेवाओं से नाखुश होने के बावजूद अपनी हेल्थ इन्श्योरेंस कंपनी बदलना नहीं चाहते.
हालांकि, पोर्ट करने पर जितने साल से पॉलिसी चल रही है, उस अवधि का क्रेडिट भी ट्रांसफर होता है. तो, अगर आप दूसरी इन्श्योरेंस कंपनी पर पॉलिसी पोर्ट करते हैं तब भी आप बढ़े हुए कवरेज का फ़ायदा ले सकते हैं. हम यहां बता रहे हैं कि ये कैसे काम करता है.
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रिन्यूअल से 45 दिन पहले नई इन्श्योरेंस कंपनी से करें संपर्क
इन्श्योरेंस पॉलिसी सिर्फ रिन्यूअल के समय ही पोर्ट की जा सकती है. बहुत सी इन्श्योरेंस कंपनियां रिन्यूअल की डेट से 10 दिन या एक सप्ताह पहले भी पोर्टिंग की रिक्वेस्ट स्वीकार करती हैं, लेकिन बेहतर है कि आप रिन्यूअल डेट से 45 दिन पहले प्रॉसेस शुरू करें. नए प्लान और इन्श्योरेंस कंपनी पर फैसला करें.
पोर्टेबिलिटी रिक्वेस्ट और प्रपोज़ल फ़ॉर्म भरें
नई इन्श्योरेंस कंपनी आपको पोर्टेबिटिली रिक्वेस्ट और प्रपोजल फ़ॉर्म मुहैया कराएगी. पोर्टेबिलिटी-रिक्वेस्ट फ़ॉर्म में मुख्य तौर पर पर आपसे अपनी मौजूदा इन्श्योरेंस पॉलिसी और नई इन्श्योरेंस कंपनी की डिटेल मांगी जाती है. दूसरी जरूरी डिटेल और मेडिकल हिस्ट्री भरते समय सतर्क रहें और सुनिश्चित करें कि भरी जा रही सभी जानकारियां सही हों. आप सोच सकते हैं कि ये सभी डिटेल्स इन्श्योरेंस कंपनी पुरानी पॉलिसी से निकाल सकती है और आपको मेहनत करने की ज़रूरत नहीं है. भले ही, इन्श्योरेंस कंपनियों के पास इसके लिए कॉमन डाटाबेस का एक्सेस होता है, लेकिन जरूरी नहीं है कि वे इसे एक्सेस करें. ये भी हो सकता है कि किसी को भी कोई मेडिकल कंडीशन या लाइफ़ स्टाइल डिसीज हो जाए तो पुरानी पॉलिसी ख़रीदते समय नहीं थी. ऐसे में ये डाटाबेस में नहीं मिलेंगी.
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नई कंपनी के लिए आप नए कस्टमर
आप भले ही पुरानी पॉलिसी पोर्ट कर रहे हैं, लेकिन नई कंपनी के लिए आप नए कस्टमर हैं. ऐसे में, नई इन्श्योरेंस कंपनी प्रपोजल स्वीकर करने से पहले आपकी प्रोफाइल को किसी और कस्टमर की तरह ही स्क्रीन करेगी. कंपनी आप से कुछ मेडिकल टेस्ट कराने को भी कह सकती है. ऐसे में, ये सभी डिटेल अहम और ज़रूरी हैं. इनके आधार पर ही इन्श्योरेंस कंपनी ये तय करेगी कि उसे आपका प्रपोजल स्वीकार करके कवरेज देना चाहिए या नहीं. अगर यहां पर आप कोई भी फ़ैक्ट देने से चूक जाते हैं तो भविष्य में इसकी वजह से आपका क्लेम रिजेक्ट हो सकता है. ऐसे में, सावधान रहें और सभी जरूरी फ़ैक्ट देने में कोताही न करें.
आपकी पॉलिसी के साथ क्या पोर्ट होगा
जब आप अपनी पॉलिसी पोर्ट करते हैं तो नीचे दी गईं चीजें ट्रांसफर होती हैं.
पॉलिसी जितनी पुरानी है उतने वर्षों का क्रेडिट
आपने पुरानी पॉलिसी पोर्ट की है तब भी नई पॉलिसी की शर्तें लागू होंगी. सिर्फ़ जितने वर्ष तक पुरानी पॉलिसी रखी गई है उसका क्रेडिट ट्रांसफ़र होगा. उदाहरण के लिए, अगर नई पॉलिसी में प्री-एग्जिस्टिंग डिसीज के लिए वेटिंग पीरियड चार साल है और मौजूदा पॉलिसी दो साल पुरानी है तो प्री एग्जिस्टिंग डिसीज के कवरेज के लिए आपको अगले दो साल और इंतज़ार करना होगा.
नो-क्लेम बोनस
no claim bonus in health insurance: अगर आप क्लेम नहीं करते हैं तो इन्श्योरेंस कंपनियां सम एश्योर्ड एक तय फ़ीसदी तक बढ़ा देती हैं. उदाहरण के लिए, अगर आपने ₹5 लाख का हेल्थ कवर ख़रीदा है और इन्श्योरेंस कंपनी एक साल क्लेम न लेने पर 10% नो क्लेम बोनस देती है तो सम एश्योर्ड बढ़कर ₹5.50 लाख हो जाएगा.
नई इन्श्योरेंस कंपनी नो क्लेम बोनस के तौर पर सम एश्योर्ड की रक़म बढ़ाने के लिए तैयार भी हो सकती है और मना भी कर सकती है. ये कंपनी पर निर्भर करता है. तो, इसके बारे में नई कंपनी से चेक करें.
हायर सम अश्योर्ड
अगर आप नई इन्श्योरेंस कंपनी के साथ समय एश्योर्ड की रक़म बढ़ा रहे हैं तो नई पॉलिसी की शर्तों के मुताबिक़, बढ़ी हुई रक़म के लिए वेटिंग पीरियड लागू होगा. पुरानी पॉलिसी जितने साल की है उसका क्रेडिट सिर्फ़ पुरानी इन्श्योरेंस कंपनी के साथ सम एश्योर्ड की रक़म के लिए मिलेगा.
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अगर नई इन्श्योरेंस कंपनी प्रपोजल रिजेक्ट कर दे तो...
नई इन्श्योरेंस कंपनी आपके प्रपोजल को स्वीकार कर भी सकती है और नहीं भी. हालांकि कंपनी को अपने फैसले के बारे में 15 दिन के अंदर बताना होगा. प्रपोजल रिजेक्ट हो जाने की सूरत में आप पहले वाली इन्श्योरेंस कंपनी के साथ पॉलिसी जारी रख सकते हैं या दूसरी इन्श्योरेंस कंपनी के साथ प्रयास कर सकते हैं. फ़ॉर्म जमा कराते हुए नई कंपनी को किया गया प्रीमियम का भुगतान रिफंड हो जाएगा.
क्या कंपनी द्वारा दी गई इन्श्योरेंस पॉलिसी के लिए पोर्ट कर सकते हैं?
हालांकि आम तौर पर यह सलाह दी जाती है कि आपके पास एक हेल्थ कवर होना चाहिए, जो कंपनी की ओर से मुहैया कराए गए मेडिकल कवर से अलग हो. लेकिन बहुत से लोग सिर्फ़ कंपनी के मेडिकल कवर पर ही निर्भर हैं. कंपनी की ओर से मुहैया कराया गया मेडिकल कवर कंपनी छोड़ते ही सीज हो जाता है. और ये ज़रूरी नहीं है कि नई कंपनी आपको हेल्थ इन्श्योरेंस मुहैया कराए. ऐसा भी हो सकता है कि आप तुरंत कोई दूसरी कंपनी या संस्थान ज्वाइन न कर पाएं.
ऐसे हालात में, आप अपना हेल्थ इन्श्योरेंस प्लान कंपनी द्वारा मुहैया कराए गए ग्रुप प्लान से इंडिविजुअल प्लान पर माइग्रेट कर सकते हैं. हालांकि, यहां आपको इन्श्योरेंस कंपनी बदलने का विकल्प नहीं मिलेगा. आप सिर्फ़ उसी इन्श्योरेंस कंपनी द्वारा मुहैया कराए जा रहे इंडिविजुअल या फ़्लोटर हेल्थ प्लान पर माइग्रेट कर सकते हैं.
लेकिन सबसे अहम बात यह है आपने जितने वर्ष तक पॉलिसी रखी है, उन वर्षों के लिए क्रेडिट क्लेम कर सकते हैं और इससे आपको प्री-एग्जिस्टिंग डिसीज और दूसरे मेडिकल कंडीशंस के लिए बढ़ा हुआ कवरेज मिलेगा. कंपनी से रिजाइन करते ही HR को इसके बारे में बताएं और वो आपको इस प्रोसेस के बारे में गाइड करेगा.