पिछले महीने के आख़िर में, इंश्योरेंस रेग्युलेटर, IRDA ने हेल्थ इंश्योरेंस पर एक ताज़ा मास्टर सर्कुलर जारी किया. सर्कुलर की हेडलाइन थी कि अब हेल्थ इंश्योरेंस पाने के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं होगी. असल में ख़बर आगे भी है. इन नई बातों का सार इस तरह है: पॉलिसीधारकों और संभावित ग्राहकों को व्यापक विकल्प देने के लिए बीमाकर्ताओं को कई तरह के प्रोडक्ट, ऐड-ऑन और राइडर ऑफ़र करने की ज़रूरत है. इस पेशकश में सभी उम्र, सभी तरह की मेडिकल कंडिशन, पहले से मौजूद बीमारियों और गंभीर स्थितियों को शामिल किया जाना चाहिए. उन्हें एलोपैथी, आयुष सहित चिकित्सा और उपचार के बाक़ी सभी तरीक़ों को शामिल करना चाहिए. उन्हें घरेलू अस्पताल में भर्ती, आउट पेशेंट डिपार्टमेंट (OPD), डे-केयर और होम केयर सहित हर उपचार की स्थिति को कवर करना चाहिए. प्रोडक्ट की रेंज सभी क्षेत्रों और सभी व्यावसायिक श्रेणियों, विकलांग व्यक्तियों और हर कैटेगरी के लिए उपलब्ध होनी चाहिए. इसके अलावा, पॉलिसीधारकों और संभावित ग्राहकों के सामर्थ्य के मुताबिक़ सभी तरह के अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवा देने वालों को शामिल किया जाना चाहिए, ताकि ये पक्का हो सके कि इमरजेंसी में कवरेज से इनकार न किया जाए. इसमें ये भी कहा गया है कि बीमाकर्ताओं को नई चिकित्सा तकनीकों के लिए सहायता देनी चाहिए और ऐसी कई तकनीकों की लिस्ट भी दी गई है.
मैं लंबे समय से IRDA को शक की नज़र से देखता रहा हूं, इसलिए मेरी पहली प्रतिक्रिया थी, "लेकिन ये सभी साफ़-स्पष्ट बातें हैं! इन्हें सालों पहले क्यों नहीं किया गया? इन्हें पहले दिन से ही इंश्योरेंस रेग्युलेशन का हिस्सा क्यों नहीं बनाया गया?" ये एक ईमानदार सवाल है और यही सवाल बहुत से हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी लेने वालों का भी है.
मेरा कहना है, ज़रा सोचिए. बुज़ुर्ग, युवाओं की तुलना में ज़्यादा बीमार पड़ते हैं और उनकी बीमारियां भी ज़्यादा बड़ी होती हैं. ये व्यावहारिक रूप से हर उस बीमारी के बारे में सच है जो इंसानों को होती है. कैंसर और हृदय रोग जैसी बड़ी जानलेवा बीमारियां मूल रूप से उम्र से जुड़ी बीमारियां हैं. कुछ युवा इससे पीड़ित ज़रूर हैं, लेकिन वे सिर्फ़ इसलिए ध्यान खींचते हैं क्योंकि वे अलग से दिखाई देते हैं. हालांकि, अब तक, भारत का हेल्थ इंश्योरेंस कवरेज मोटे तौर पर 65 साल की उम्र में ख़त्म हो जाता है. इसका मतलब है कि बीमाकर्ता आपकी अच्छी सेहत वाली उम्र में आपका पैसा लेना चाहते हैं और फिर जब आप उस उम्र में पहुंच जाते हैं जब आपको असल में कवरेज की ज़रूरत होगी, तो आपको कवरेज देने से मना कर देते हैं. वैसे भी, इन बातों पर हैरान होने का कोई मतलब नहीं—भारत में इंश्योरेंस रेग्युलेशन का हमेशा से यही हाल रहा है.
बहुत पहले, मुझे टेक्नोलॉजी पर लिखने वाले प्रसिद्ध अमेरिकी स्तंभकार रॉबर्ट एक्स. क्रिंजली के एक लेख में कुछ दिलचस्प बातें मिलीं. वे लिखते हैं: एक समय था जब बीमा कंपनियों के एक्चुअरी इंश्योरेंस रेट तय करने के लिए बीमारी और मृत्यु दर के आंकड़ों का अध्ययन करते थे. ... क्योंकि ज़्यादातर, एक्चुअरी पॉलिसीधारकों के व्यापक समूहों से आगे जा कर हरेक व्यक्ति तक नहीं पहुंच पाते थे. तो उस सिस्टम में, बीमा कंपनी का मुनाफ़ा सीधे-सादे तरीक़े से स्केल के साथ बढ़ता था, इसलिए हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियां ज़्यादा से ज़्यादा पॉलिसीधारक पाना चाहती थीं, जिससे ज़्यादा मुनाफ़ा मिले. फिर, 1990 के दशक में, कुछ हुआ: कंप्यूटिंग उस हद तक सस्ती हो गई जहां व्यक्तिगत स्तर पर संभावित स्वास्थ्य के नतीजों को कैलकुलेट करना संभव हो गया. इसने हेल्थ इंश्योरेंस बिज़नस को रेट तय करने वाले से, कवरेज से इनकार करने वाला बना दिया. ... हेल्थ इंश्योरेंस बिज़नस मॉडल ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को कवर करने से बदल कर ... केवल स्वस्थ लोगों को इंश्योरेंस बेचने वाला हो गया.
ये प्रैक्टिस अब दुनिया भर की इंश्योरेंस इंडस्ट्री में और उनकी सभी ब्रांच में पूरी तरह से सामान्य बात है. ये अच्छा है कि IRDA ने उम्र की सीमा हटा दी है और उन सभी दूसरी अच्छी चीज़ों का ज़िक्र किया है जिन्हें मैने ऊपर लिखा है. हालांकि, हलवे को खाने के बाद ही उसका स्वाद पता चलता है. आइए इंतज़ार करें और देखें कि बुज़ुर्गों को असल में किस रेट और किन शर्तों पर इंश्योरेंस दिया जाता है और वास्तव में वो किस तरह का कवरेज पाते हैं. मुझे लगता है कि इन बदलावों का ज़मीनी स्तर पर कितना असर होगा, ये देखने में अभी कुछ साल लगेंगे, लेकिन मैं आपको भरोसा दिलाता हूं—मैं अपनी सांस थामकर नहीं बैठा हूं.
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