फ़ाइनांस का ऐसा कोई शब्द नहीं जिस पर क़र्ज़ से ज़्यादा बातें कही गई हों. कुछ मज़ेदार कहावतें हैं जैसे "आज, तीन तरह के लोग हैं: संपन्न, ग़रीब और जो अपनी चीज़ का भुगतान नहीं कर सकते" और एक कहावत है, "अमीर गरीबों पर शासन करते हैं और उधार लेने वाला उधार देने वाले का गुलाम बन जाता है", और शेक्सपियर का "न तो उधार लेने वाला बनो और न ही उधार देने वाला; क्योंकि उधार अक्सर ख़ुद को और दोस्त दोनों को खो देता है."
किसी ने भी क़र्ज़ लेने के बारे में कभी एक भी अच्छी बात नहीं कही है. क़र्ज़ लोगों (व्यवसायों के लिए भी) के लिए पैसों से जुड़ी समस्याओं का सबसे बड़ा कारण है. क़र्ज़ कुछ भी बचत न करने से भी बदतर है क्योंकि ये नकारात्मक बचत जैसा है. मुझे लगता है कि लोगों की वित्तीय भलाई पर क़र्ज़ के असर का एक महत्वपूर्ण वाक्यांश है - नकारात्मक बचत.
ये अचरज भरी बात है कि इतने सारे लोग और उनमें भी ज़्यादातर युवा - क़र्ज़ में रहते हुए भी निवेश करना शुरू कर रहे हैं.
अक्सर ये क्रेडिट कार्ड का क़र्ज़ होता है. क्या ये बात समझ आती है? नहीं, ये समझ से बाहर है. व्यावहारिक रूप से ऐसा कोई निवेश नहीं जो शर्तिया तौर पर क़र्ज़ के ब्याज से ज़्यादा रिटर्न दे सके. बिना किसी अपवाद के, अगर आप पर कोई क़र्ज़ है, तो निवेश मत कीजिए. सबसे पहले क़र्ज़ से छुटकारा पाइए. ऐसे रिटायर्ड लोग भी हैं जो EMI पर चीज़ें ख़रीद रहे हैं.
वॉल स्ट्रीट जर्नल ने एक बार एक लेख प्रकाशित किया था कि क्या पैसे से ख़ुशी ख़रीदी जा सकती है, इसमें एक स्टडी में पता चला था कि कैसे ज़्यादा क़र्ज़ बड़े तनाव और गंभीर घरेलू कलह से जुड़ा था. इसमें कोई शक़ नहीं कि अगर आपके पास पैसा है तो उससे क़र्ज़ चुका दिया जाना चाहिए.
बेशक़, एक अपवाद अक्सर देखा जाता है और वो है पहले फ़्लैट या मकान के लिए लोन लेना जिसे रहने के लिए लिया जाता है. टैक्स पर मिलने वाली छूट और बढ़ते हुए किराए को ध्यान में रखते हुए वास्तविक ब्याज दर कैलकुलेट करने के बाद ही क़र्ज़ लेना एक अच्छा विकल्प रहता है. इस एक मामले को छोड़ दें, तो दूसरे हर मामले में, निवेश के बारे में सोचने से पहले अपने लोन अदा करें.
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