Debt Funds एक तरह के म्यूचुअल फ़ंड हैं जो फ़िक्स्ड इनकम के विकल्पों में निवेश करके रिटर्न कमाते हैं. ये बॉन्ड और कई तरह के डिपॉज़िट में निवेश करते हैं. इसका मतलब है कि Debt Funds पैसा उधार देते हैं और इस पर ब्याज़ कमाते हैं. इस तरीक़े से उनको मिलने वाले ब्याज़ से ही तय होता है कि निवेशक कितना रिटर्न हासिल करेंगे.
Debt Funds को और अच्छी तरह से समझने के लिए इसके विकल्प पर ग़ौर करते हैं जिसमें ये निवेश करते हैं. यानी की बॉन्ड. बॉन्ड एक तरह से डिपॉज़िट का सर्टिफ़िकेट है जो लोन लेने वाला लोन देने वाले को जारी करता है. जब एक आम निवेशक बैंक में फ़िक्स्ड डिपॉज़िट यानी FD करवाता है तो वो भी ऐसा ही करता है. जब आप बैंक में FD करवाते हैं तो आप बैंक को अपना पैसा उधार दे रहे होते हैं.
Debt Funds भी कुछ अंतर के साथ यही करते हैं. पहला अंतर ये है कि Debt Funds कई तरह के ऐसे बॉन्ड में निवेश करते हैं जो एक आम निवेशक के लिए मौजूद नहीं है. उदाहरण के लिए भारत सरकार देश में सबसे ज़्यादा उधार लेती है और इसके लिए वो बॉन्ड जारी करती है. इस बॉन्ड को आम निवेशक नहीं ख़रीद सकते हैं. इसके अलावा कई बड़ी और मझोली कंपनियां भी बॉन्ड जारी करती हैं. इसमें म्यूचुअल फ़ंड निवेश करते हैं. आसान शब्दों में Debt Funds एक ज़रिया है जो बॉन्ड में निवेश से होने वाले ब्याज़ की इनकम निवेशक को देता है. हालांकि ये FD से थोड़ा अलग है. FD में आम निवेशक निवेश करते हैं. वहीं म्यूचुअल फ़ंड मार्केट के ऐसे बॉन्ड में निवेश करते हैं. जिनकी ट्रेडिंग हो सकती है. जैसे शेयर मार्केट में शेयर की ट्रेडिंग होती है. डेट मार्केट में अलग-अलग बॉन्ड की कीमतें बढ़ या घट सकती हैं जैसे शेयर बाजार में शेयरों की क़ीमत में उतार-चढ़ाव होता रहता है.
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अगर म्यूचुअल फ़ंड बॉन्ड ख़रीदते हैं और उनकी क़ीमतें बाद में बढ़ती हैं तो वह ब्याज़ इनकम से ऊपर ज़्यादा पैसा कमा सकते हैं. ऐसा होने पर निवेशक को ज़्यादा रिटर्न मिलता है. और अगर बॉन्ड की क़ीमत कम है तो इसका उलटा होता है.
उतार-चढ़ाव की वजह
अब सवाल उठता है कि बॉन्ड की कीमतें बढ़ती या घटती क्यों हैं ? इसकी कई वजह हो सकती हैं. सबसे अहम वजह है, ब्याज़ दरों में बदलाव या बदलाव की उम्मीद. मान लेते हैं कि एक बॉन्ड सालाना 9 फ़ीसदी का ब्याज़ दे रहा है और अर्थव्यवस्था में ब्याज़ दर गिर जाती है. ऐसे में नए बॉन्ड कम दर पर यानी सालाना 8 फ़ीसदी पर जारी किए जा रहे हैं. तो साफ हो जाता है कि अब पुराने बॉन्ड की मांग नए बॉन्ड के मुक़ाबले बढ़ जाएगी. इसका कारण है कि पुराने बॉन्ड में निवेश की गई रक़म अब ज़्यादा पैसा कमा सकती है. इन्हीं सब बताई गई बातों के आधार पर इसकी वैल्यू बढ़ेगी. और ऐसे बॉन्ड में निवेश करने वाले म्यूचुअल फ़ंड के निवेश की भी क़ीमत बढ़ जाएगी. म्यूचुअल फ़ंड इसे बेच कर ज़्यादा मुनाफ़ा कमा सकते हैं. वहीं अगर ब्याज़ दरें बढ़ती हैं तो पुराने बॉन्ड होल्ड करने वाले म्यूचुअल फ़ंड के निवेश की क़ीमत घट सकती है और वो पैसा गंवा भी सकते हैं.
आम तौर पर Debt Funds को निवेश के ऐसे विकल्प के रूप में देखा जाता है जिसमें रिस्क काफ़ी कम होता है और निवेशक इसमें एक हद तक अपने निवेश के सुरक्षित रहने की उम्मीद करते हैं. लेकिन Debt Funds के साथ ऐसा हो सकता है कि आपको अपनी रक़म का नुक़सान उठाना पड़ जाए.
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