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NPS की त्रासदी

नया यूनीफ़ाइड पेंशन सिस्टम दो दशकों के दौरान नेशनल पेंशन सिस्टम के खोए हुए अवसरों का नतीजा है.

NPS की त्रासदी

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सरकार ने हाल ही में यूनिफ़ाइड पेंशन सिस्टम नाम की एक नई स्कीम की घोषणा की है, जो केवल सरकारी कर्मचारियों के लिए बने NPS का एक संशोधन है. इस नई स्कीम के इर्द-गिर्द छाए शब्दाडंबर के बादल हटा दिए जाएं, तो ये सरकारी कर्मचारियों की रिटायरमेंट पेंशन में गारंटी को वापस ले आया है.

सैद्धांतिक स्तर पर, ये नई गारंटीकृत पेंशन वैकल्पिक है, और कर्मचारी NPS को भी चुन सकते हैं. मगर व्यावहारिक नज़रिए से देखें, तो सरकारी कर्मचारियों के लिए, NPS का अंत हो चुका है.

ये एक सरल सत्य है: अगर नेशनल पेंशन सिस्टम को 2004 से ही उसी भावना से लागू किया गया होता, जिस भावना से इसे डिज़ाइन किया गया था, तो 2004 से पहले के सरकारी कर्मचारी (जो अभी भी पुराने सिस्टम पर हैं) NPS में ट्रांसफ़र पाने के लिए आंदोलन कर रहे होते. क्यों? उन्हें अब तक, समझ आ गया होता कि NPS पुराने पेंशन सिस्टम की तुलना में आसानी से 300-400 प्रतिशत ज़्यादा पेंशन देगा!

अपनी अवधारणा में, NPS शानदार ढंग से काम करता है, मगर सिर्फ़ और सिर्फ़ तब, जब धन का एक बड़ा हिस्सा इक्विटी में निवेश किया गया हो. दूसरे शब्दों में, अगर भारतीय अर्थव्यवस्था की भारी बढ़ोतरी को शेयर बाज़ारों के ज़रिए NPS और फिर पेंशन में डाला जाता, तो पेंशन कहीं... कहीं ज़्यादा होती. 2004 में, जब नए सरकारी कर्मचारियों को NPS में शामिल किया गया था, तब सेंसेक्स क़रीब 2,000 पर था. आज, ये लगभग 80,000 पर है. मगर पेंशन के मामले में ये सब बर्बाद और बेकार रहा.

ये दो तरह से बेकार रहा. सबसे पहले, 2004 से 2009 तक NPS के इक्विटी निवेश वाले हिस्से पर बिल्कुल अमल नहीं किया गया. पैसा सामान्य सरकारी प्रतिभूतियों के रेट पर ही पड़ा रहा. फिर, उसके बाद, अधिकतम इक्विटी एक्सपोज़र को डिफ़ॉल्ट के तौर पर हास्यास्पद रूप से 15 प्रतिशत पर रखा गया. इक्विटी को लेकर इस बेबुनियाद मगर संस्थागत भय ने NPS के किसी भी फ़ायदे के मौक़े को ख़त्म कर दिया.

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मुझे यक़ीन है कि अभी भी कुछ सरकारी कर्मचारी हैं - चाहे कितने भी कम हों - जो ये सब समझते हैं. उनके लिए, मुनाफ़ा पाने का एक सरल विकल्प है जो उन्हें UPS की तुलना में बहुत ज़्यादा पेंशन दिलाएगा. एक बार जब आपका पैसा NPS में लगा दिया जाता है, तो आप सीधे CRA वेबसाइट पर अपने खाते तक पहुंच सकते हैं और सबसे ज़्यादा इक्विटी वाला विकल्प चुन सकते हैं. आदर्श रूप से, ये कम से कम 50 साल की उम्र तक किया जाना चाहिए. और आदर्श तौर पर, ये डिफ़ॉल्ट विकल्प होना चाहिए था.

अगर कोई इस बात के बुनियादी कारणों का विश्लेषण करता है कि ये सब क्यों हुआ, तो मौजूदा राजनीति की दशा और सरकारी कर्मचारियों की मानसिकता को भी इसका दोष मिलना चाहिए. हालांकि, जो हो गया सो हो गया; अब इतिहास के इन वैकल्पिक परिदृश्यों को गढ़ने का कोई मतलब नहीं है.

जहां तक NPS के गैर-सरकारी सदस्यों की बात है, तो सबक़ साफ़ है: NPS एक बेहतरीन रिटायरमेंट सिस्टम है, लेकिन ज़्यादा से ज़्यादा लाभ पाने के लिए, जहां तक संभव हो, लंबे समय तक इक्विटी के हिस्से को अधिकतम रखना चाहिए. बेशक़, यही बात हर लंबे समय के निवेश पर लागू होती है, न कि सिर्फ़ NPS पर.

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