पिछले लेख में हमने बताया था कि बैंकों और नॉन-बैंकिंग फ़ाइनेंशियल कंपनियों (NBFC) की प्रॉफ़िट और लॉस स्टेटमेंट (P&L) दूसरों से कैसे अलग होते हैं. इस स्टोरी में हम बताएंगे कि क्या चीज़ें हैं जो उनकी बैलेंस शीट को ख़ास बनाती हैं, और ये नॉन-फ़ाइनेंशियल कंपनियों से कैसे अलग होती है.
बैलेंस शीट किसी ख़ास समय पर किसी कंपनी की वित्तीय स्थिति को दिखाती है, जो उसके स्वामित्व (एसेट) और उसके बक़ाए (लाएबिलिटी) और दोनों के बीच के अंतर (शेयरहोल्डर इक्विटी) द्वारा दर्शाई जाती है.
बैंकों और NBFC के मामले में, एसेट और लाएबिलिटी की प्रकृति उनके अनूठे ऑपरेशन के कारण दूसरों से अलग होती है. आइए समझते हैं कैसे:
लाएबिलिटी कैसे अलग हैं?
हम जानते हैं कि बैंक सेविंग, करंट, फ़िक्स्ड और रेकरिंग जैसे अलग-अलग अकाउंट में ग्राहकों से पैसा या डिपाज़िट लेता है. ये पैसा बैंक के लिए फ़ंड का प्राइमरी सोर्स होता है, जिसका इस्तेमाल रोज़ाना के ऑपरेशन और लोन देने के लिए किया जाता है.
डिपाज़िट को बैंक की बैलेंस शीट में लाएबिलिटी के रूप में क्लासिफ़ाई किया जाता है क्योंकि ये वो पैसा होता है जिसे बैंक द्वारा अपने ग्राहकों को वापस करना होता है. उदाहरण के लिए, FY24 में HDFC बैंक का डिपाज़िट इसकी कुल लाएबिलिटी का 66 फ़ीसदी था. दूसरी लाएबिलिटी में वो लोन या बॉरोइंग शामिल होते हैं जो बैंक अपने बिज़नस को चलाने के लिए लेता है.
NBFC के मामले में, फ़ंड का प्राइमरी सोर्स वो पैसा होता है जिसे वे बैंकों या दूसरे फ़ाइनेंशियल संस्थानों से क़र्ज़ लेते हैं, जिसका इस्तेमाल आगे अपने लेंडिंग ऑपरेशन की फ़ंडिंग करने के लिए किया जाता है. ये क़र्ज़ NBFC की लाएबिलिटी का एक प्रमुख हिस्सा होते हैं. उदाहरण के लिए, भारत की सबसे बड़ी NBFC बजाज फ़ाइनेंस का क़र्ज़ (FY24 में) इसकी कुल लाएबिलिटी का 61 फ़ीसदी था.
एसेट कैसे अलग हैं?
एसेट किसी भी बिज़नस के लिए इनकम का सोर्स होते हैं. बैंक अपने द्वारा दिए गए लोन पर लगाए गए ब्याज़ के रूप में इनकम कमाते हैं. इसलिए, होम, ऑटोमोबाइल या पर्सनल लोन सहित दिए गए अन्य लोन या एडवांस उनके एसेट पोर्टफ़ोलियो का एक प्रमुख हिस्सा होते हैं. उदाहरण के लिए, FY24 में HDFC बैंक द्वारा दिए गए लोन इसके कुल एसेट का लगभग 69 फ़ीसदी हिस्सा था.
बैंक जितना ज़्यादा लोन या एडवांस देता है, उतना ही ज़्यादा पैसा कमाता है. आर्थिक विकास, आकर्षक ब्याज दरें या बैंक की ज़्यादा ग्राहकों को जोड़ने की क्षमता जैसे फ़ैक्टर इस कमाई को बढ़ाने में मदद करते हैं. हालांकि, सावधान रहना ज़रूरी है क्योंकि एडवांस में बढ़ोतरी का मतलब ये भी हो सकता है कि 'कम रिपेमेंट (लोन चुकाना) क्षमता' वाले ग्राहकों को लोन दिया जा रहा है. उस स्थिति में, बैड लोन (नॉन-परफॉर्मिंग लोन) बहुत ज़्यादा बढ़ सकते हैं, जिससे प्रोविज़न की ज़रूरत बढ़ जाती है और प्रॉफ़िटेबिलिटी कम हो जाती है. इन क्वालिटी संबंधी चीज़ों का आकलन करने के लिए, हम दो मीट्रिक का इस्तेमाल करते हैं -- ग्रॉस और नेट नॉन-परफॉर्मिंग एसेट रेशिओ. हम इन मीट्रिक पर किसी और आर्टिकल में चर्चा करेंगे. अभी के लिए, याद रखें कि बैंकों के मामले में क्वालिटी भी उतनी ही ज़रूरी है जितनी कि ग्रोथ.
बैंकों के लिए अन्य प्रमुख एसेट 'कैश और एक्विवैलेंट्स' हैं. इसका एक कॉम्पोनेन्ट 'भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) में जमा कैश और बैलेंस' है. ये कैपिटल का एक न्यूनतम स्तर होता है जिसे बैंक RBI के पास हर समय रखते हैं ताकि ये पक्का हो सके कि वे अपने जमाकर्ताओं (डिपॉज़िटर) की ज़रूरतों को पूरा कर पाएं.
ये भी पढ़िए - Banking Stock Analysis: बैंकिंग स्टॉक कैसे चुनें?
दूसरा कॉम्पोनेन्ट 'बैंकों के पास मौज़ूद बैलेंस, और कॉल और शॉर्ट नोटिस पर उपलब्ध पैसा' है. 'बैंकों के के पास मौज़ूद बैलेंस' का मतलब उन फ़ंड से है जिन्हें कोई बैंक अपने बैंकिंग सिस्टम में पर्याप्त लिक्विडिटी पक्का करने के लिए दूसरे बैंकों के अकाउंट में रखता है.
'कॉल और शॉर्ट नोटिस पर उपलब्ध पैसा' उस शार्ट-टर्म लोन या डिपॉज़िट को दर्शाता है जिसे बैंक अन्य फ़ाइनेंशियल संस्थानों के पास रखता है, आम तौर पर एक दिन (कॉल मनी) या 14 दिनों (शॉर्ट नोटिस) तक. ये बहुत ज़्यादा लिक्विड एसेट होते हैं जिन्हें बहुत कम समय में वापस लिया या निकाला जा सकता है.
शेयरहोल्डर इक्विटी
ये हरेक कंपनी में शेयरहोल्डर का 'बक़ाया ब्याज़' होता है, जिसे मोटे तौर पर 'कैपिटल और रिज़र्व और सरप्लस' में क्लासिफ़ाई किया जाता है.
बाक़ी बिज़नस की तरह, कैपिटल का मतलब बैंक के मालिकों (शेयरहोल्डर) द्वारा निवेश किया गया शुरूआती पैसे से है. ये एक फ़ाइनेंशियल सुरक्षा जाल के रूप में काम करता है, स्थिरता सुनिश्चित करता है और संभावित नुक़सान को कम करता है. ये बुनियादी फ़ंड, बैंक को अपना ऑपरेशन चलाने और चुनौतियों के दौरान अपनी फ़ाइनेंशियल स्थिति ठीक रखने में मदद करता है.
रिज़र्व और सरप्लस का मतलब बैंक द्वारा अपने मुनाफ़े से बचत की गई रक़म से है. इन बचतों को संभावित नुकसान को कवर करने, भविष्य में अपने विस्तार के लिए फ़ंडिंग करने और रेगुलेटरी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अलग रखा जाता है. ये बचत बैंक की फ़ाइनेंशियल स्थिति को मज़बूत करती है और लॉन्ग-टर्म स्थिरता और ग्रोथ सुनिश्चित करती है.
नीचे एक उदाहरण के ज़रिए बताया गया है कि बैंक की बैलेंस शीट कैसी दिखती है.
HDFC बैंक की बैलेंस शीट
HDFC बैंक के पास भारतीय बैंकिंग इंडस्ट्री में दूसरा सबसे बड़ा 'डिपॉज़िट & लोन' पोर्टफ़ोलियो है
FY24 (करोड़ ₹) | |
---|---|
कैपिटल और लाएबिलिटी | |
कैपिटल | 760 |
कर्मचारियों के बकाया स्टॉक ऑप्शन | 2,653 |
रिज़र्व और सरप्लस | 4,36,833 |
डिपॉज़िट | 23,79,786 |
उधार | 6,62,153 |
अन्य लाएबिलिटी और प्रोविज़न | 1,35,438 |
कुल | 36,17,623 |
एसेट | |
भारतीय रिज़र्व बैंक में जमा कैश और बैलेंस | 1,78,683 |
बैंकों के के पास मौज़ूद बैलेंस, और कॉल और शॉर्ट नोटिस पर उपलब्ध पैसा | 40,464 |
इन्वेस्टमेंट | 7,02,415 |
एडवांसेज़ | 24,84,862 |
फ़िक्स्ड एसेट | 11,399 |
अन्य एसेट | 1,99,800 |
कुल | 36,17,623 |
आंकड़े स्टैंडअलोन आधार पर हैं. हरेक लाइन आइटम का विवरण वार्षिक रिपोर्ट के 'नोट्स टू द एकाउंट्स' सेक्शन में मौज़ूद है. |
आपके लिए ज़रूरी
बैंकों और NBFC की बैलेंस शीट को समझना, उनकी फ़ाइनेंशियल स्थिति पता करने के लिए ज़रूरी है. लोन, डिपॉज़िट और शेयरहोल्डर इक्विटी जैसे प्रमुख कॉम्पोनेन्ट उनके ऑपरेशन और स्थिरता के बारे में जानकारी देते हैं. हमारे अगले आर्टिकल में, हम उन मीट्रिक पर गहराई से चर्चा करेंगे जो बैंकों और NBFC के फ़ाइनेंशियल स्टेटमेंट से जुड़े होते हैं. इससे आपको इन कंपनियों का प्रभावी ढंग से एनालिसिस करने के तरीक़ों की ज़्यादा गहरी समझ मिलेगी. हमारे साथ बने रहें!
ये भी पढ़िए - बैंकों और NBFC के P&L स्टेटमेंट को कैसे पढ़ें?