Anand Kumar
मुझे आपको ये बताते हुए अफ़सोस हो रहा है कि हाल के कुछ सप्ताह में, मार्केट में आए फ़ेन (froth) को दिखाने वाला इंडीकेटर हरकत में आ गया है. क्या आप ये सुन कर हैरान हुए? मुझे थोड़ा पीछे जाकर इस बात को खुल कर समझाना चाहिए.
क्या भारतीय इक्विटी मार्केट अब बीयर के ऐसे मग की तरह दिखने लगे हैं जिसे बहुत तेज़ी से भरा गया है? क्या ऊपर जमा हुआ फ़ेन या झाग जल्दी ही बैठ जाएगा या यूं ही बना रहेगा? कोई कैसे पता लगाए कि क्या मार्केट के इस व्यवहार का कुछ ठोस और टिकाऊ आधार है?
ऐसे कई सीरियस इंडीकेटर हैं जिनका इस्तेमाल आमतौर पर इन सवालों का जवाब देने के लिए किया जाता है जैसे वैलुएशन, मुनाफ़े का बढ़ना और इसी तरह के दूसरे इंडीकेटर. कुछ हल्के-फुल्के मिज़ाज वाले इंडीकेटर भी हैं जो मज़ाक जैसे लगेंगे पर असलियत में अच्छा करते हैं. मिसाल के तौर पर, जब शेयर मार्केट के इंडीकेटरों के बढ़ने की हेडलाइन गुलाबी अख़बारों के बजाय सफ़ेद अख़बारों में आने लगती हैं, तो शेयर की क़ीमतें बढ़ सकती हैं.
मेरे पास एक पर्सनल इंडीकेटर भी है जो शेयर मार्केट में आए इस फ़ेन को दिखाए और ये पिछले दो दशकों में अचूक रहा है: जब इन्वेस्टमेंट बैंकर वैल्यू रिसर्च का IPO लाने के लिए मुझे कॉल करना शुरू करते हैं, तो मुझे पता चल जाता है कि इक्विटी मार्केट बहुत गर्मा गया है. मैं ये बात गंभीरता से कह रहा हूं. जैसे-जैसे मार्केट ऊपर चढ़ता है, IPO की राह आसान हो जाती है और इन्वेस्टमेंट बैंकरों के लिए ये और भी ज़्यादा आकर्षक बन जाते हैं. एक वक़्त ऐसा आता है, जब इन्वेस्टमेंट बैंकर ऐसे बिज़नस के मालिकों को भी लुभाने के लिए बेचैन हो जाते हैं, जिन्हें मार्केट में उतरने की ज़रूरत नहीं होती. वैल्यू रिसर्च जिस बिज़नस में है और जिस तरह से मैंने इसे तीन दशकों में इसे चलाया है, उसे देखते हुए, हम बड़े कैपिटल की ज़रूरत वाले बिज़नस में कतई नहीं हैं. जो कोई भी बैकग्राउंड की थोड़ी-बहुत जांच का काम कर सकता है, वो सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध जानकारी के ज़रिए इसे आसानी से जान सकता है. हां, तो मार्केट का फ़ेन दिखाने वाला इंडिकेटर सक्रिय हो गया है.
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बेशक़, मैं ग़लत भी हो सकता हूं - हर चीज़ कभी न कभी पहली बार होती ही है. मैं आपसे अपने सभी स्टॉक और इक्विटी म्यूचुअल फ़ंड बेचने की बात नहीं कर रहा हूं क्योंकि इन्वेस्टमेंट बैंकर मुझे कॉल कर रहे हैं. हालांकि, ये 'मज़ेदार' क़िस्म के मार्केट इंडीकेटर चाहे जो कुछ भी दिखाएं, इसके बावजूद, ये समय कुछ सावधान रहने का है.
इसका मतलब ये नहीं कि मार्केट में गिरावट आएगी ही या अभी मिलने वाला हर मुनाफ़ा एक भ्रम है. नहीं, ऐसा कतई नहीं है. भारतीय अर्थव्यवस्था ने ग़ज़ब का लचीलापन और ग्रोथ की क्षमता दिखाई है. हालांकि, अनुभवी निवेशक जानते हैं, मार्केट शायद ही कभी सीधी रेखा में चलते हों. तेज़ी के दौर के बाद अक्सर मार्केट की परख होती है. याद रखें, सबसे अच्छे निवेश के फ़ैसले अक्सर तब लिए जाते हैं जब आप ज़्यादातर लोगों की भावनाओं के ज्वार के खिलाफ़ तैर रहे होते हैं. इसलिए, जब मार्केट ऊपर की ओर बढ़ते रहते हैं, तब सावधानी की एक स्वस्थ ख़ुराक के साथ तेज़ी के उत्साह को क़ाबू में रखना अक्लमंदी होती है.
आइए देखें कि व्यवहार में इस बात क्या मतलब है. ये बढ़े हुए आशावाद का दौर है जिसमें निवेशकों को अपने एसेट एलोकेशन को लेकर सोचना चाहिए, डाइवर्सिफ़िकेशन पर ध्यान देना चाहिए और बुनियादी बातों के मुताबिक़ अपना पोर्टफ़ोलियो दुरुस्त कर लेना चाहिए. एक औसत निवेशक के लिए, चाहे वो सीधे स्टॉक में निवेश करता हो या इक्विटी म्यूचुअल फ़ंड का मुरीद हो, उसे अपने पोर्टफ़ोलियो में नाटकीय बदलाव करने या एसेट बेचने की जल्दबाज़ी करने की ज़रूरत नहीं है. इसके बजाय, ये एसेट एलोकेशन और निवेश के लक्ष्यों पर दोबारा नज़र डालने और उनका पुनर्मूल्यांकन करने का एक मौक़ा है. कहीं ऐसा तो नहीं कि आप बड़े रिस्क और बड़े मुनाफ़े वाले स्टॉक या अग्रेसिव इक्विटी फ़ंड्स में बहुत ज़्यादा निवेश कर रहे हैं? क्या आपने बाज़ार के लुभावने मुनाफ़े के चलते, अपने तय किए हुए एसेट एलोकेशन को ताक़ पर रख दिया है? हो सकता है ये आपके पोर्टफ़ोलियो को फिर से बैलेंस करने का सही समय हो, ताकि ये पक्का हो सके कि आप मार्केट की मौजूदा तेज़ी पर बहुत ज़्यादा निर्भर न हों. स्टॉक निवेशकों को उनके एलोकेशन को ज़्यादा स्थिर रखने वाले और वैल्यू-ओरिएंडेट स्टॉक में निवेश के बारे में सोचना चाहिए. म्यूचुअल फ़ंड निवेशक, ज़्यादा स्थिरता वाले लार्ज-कैप या बैलेंस्ड फ़ंड पर विचार कर सकते हैं. अपने इमरजेंसी फ़ंड पर भी फिर से सोच-विचार करना सही होगा - मार्केट में उतार-चढ़ाव के समय, कैश ज़्यादा होने से वित्तीय और भावनात्मक सुरक्षा मिल सकती है.
याद रखें, आपका लक्ष्य मार्केट की टाइमिंग करना यानी उसकी चाल का अंदाज़ा लगाना नहीं है - ये वैसे भी असंभव है - बल्कि, सिर्फ़ अपने निवेश को इस तरह से मैनेज करना है कि गिरावट का सामना करते हुए भी लंबे समय में मार्केट के बढ़ने का फ़ायदा उठा सकें.
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