टैक्स बचाने के विकल्प

यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान (ULIP) क्या है?

ULIP ऐसा हाइब्रिड प्रॉडक्ट हैं जो निवेश और बीमा दोनों का मिल-जुला कॉम्बिनेशन हैं. यहां हम बात कर रहे हैं ULIP के सभी फ़ीचर्स के बारे में.

यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान (ULIP) क्या है?

यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान (ULIP) हाइब्रिड प्रॉडक्ट कहलाते हैं, क्योंकि इनमें बीमा और निवेश दोनों के फ़ायदे होते हैं. मार्केट में मौजूद दूसरी कई जीवन बीमा पॉलिसी की तरह ही, ये जीवन बीमा के साथ निवेश की सुविधा भी देते हैं. हालांकि फ़ंड के चुनाव का फ़ैसला पॉलिसी होल्डर के ऊपर छोड़ दिया जाता है, यानी की आप ख़ुद तय कर सकते हैं कि आप कितना रिस्क लेना चाहेंगे. ULIP में दोनों तरह के फ़ंड का ऑप्शन होता है, इक्विटी फ़ंड और डेट फ़ंड. इसके अलावा, इक्विटी और डेट दोनों के मिले-जुले फ़ंड का भी ऑप्शन होता है. ULIP, पारंपरिक बीमा योजनाओं से ज़्यादा फ़ायदेमंद हो सकता है, मगर इनमें रिस्क भी होता है. ये एक अच्छी बात है कि आप ULIP के बारे में जानें और समझें कि ULIP है क्या, पर यहीं ये कहना भी सही होगा कि बीमा और निवेश को अलग ही रखना चाहिए.

पूंजी की सुरक्षा और मंहगाई से बचाव

जीवन बीमा पॉलिसी की शर्तों के मुताबिक़ जब तक प्रीमियम दिया जा रहा है, और पॉलिसी एक्टिव है, तब तक तय-रक़म या सम-अश्योर्ड मिलने की गारंटी होती है. जीवन बीमा महंगाई दर से सुरक्षा की गारंटी नहीं देता है, क्योंकि बीमा फ़िक्स-कवर और पहले से तय समय के लिए होता है. इसके साथ ही इसमें मिलने वाली रक़म भी फ़िक्स होती है. मगर इक्विटी फ़ंड में महंगाई दर से ऊपर रिटर्न पाने की सभी संभावनाएं होती हैं, और लंबे समय में ये वेल्थ बढ़ाने के लिए भी कारगर होते हैं. मगर ये भी महंगाई दर से ज़्यादा रिटर्न की गांरटी नहीं देते है.

गारंटी

मिनिमम रक़म का सम-अश्योर्ड/ डेथ-बेनिफ़िट दिए जाने की इसमें गारंटी होती है. इसके अलावा पॉलिसी का प्रीमियम भी पॉलिसी के पीरिअड के दौरान फ़िक्स रहता है. क्योंकि रिटर्न मार्केट से लिंक होते हैं, इसलिए निवेश के रिटर्न पर गारंटी नहीं होती है.

लिक्विडिटी

ULIP अपने पांच साल के लॉक-इन पीरियड के बाद लिक्विड फ़ंड हो जाता हैं. लीक्विडिटी पाने के लिए यूनिट्स को रिडीम किया जाता है. ये वही यूनिट होती हैं, जिनके लिए आपने निवेश के दौरान प्रीमियम भरा होता है. ULIP में आप पॉलिसी को समय से पहले सरेंडर कर सकते हैं, या फिर पॉलिसी खत्म होने से पहले ही पैसे भी निकलवा सकते हैं, मगर इन दोनों ही स्थितियों में पॉलिसी होल्डर अपने कुछ पैसे गंवाने पड़ सकते है. आप पॉलिसी पर लोन भी ले सकते हैं. हालांकि, ये इस बात पर निर्भर करता है कि आपकी पॉलिसी कितनी पुरानी है, उसकी तय-रक़म कितनी है, या जब आपने लोन के लिए आवेदन किया है तो आपके फ़ंड की वैल्यू क्या है.

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एग्ज़िट ऑप्शन

पॉलिसी को समय से पहले सरेंडर या टर्मिनेट किया जा सकता है, मगर इसके लिए कुछ पैसों का नुक़सान भी होता है. इंश्योरेंस कंपनी बंद की गई पॉलिसी पर, पॉलिसी होल्डर को लोन दे सकती है, और रिफ़ंड भी कर सकती है. ये तब हो सकता है जब लॉक-इन पीरियड पूरा हो चुका हो. रिफ़ंड पाने के लिए बंद की गई पॉलिसी का मतलब है, बंद होने की तारीख़ पर फ़ंड की वैल्यू और ब्याज की न्यूनतम 4 फ़ीसदी प्रतिवर्ष की दर से कैलकुलेट करने के बाद पॉलिसी होल्डर को रिफ़ंड किया जाए.

टैक्स पर असर

जीवन बीमा पॉलिसी के लिए दिए गए प्रीमियम पर, सेक्शन 80C के तहत, एक फ़ाइनेंशियल ईयर में ₹1.5 लाख की रक़म तक की टैक्स छूट मिलती है. अगर प्रीमियम का भुगतान जीवन बीमा पॉलिसी के सम-अश्योर्ड के 20 फ़ीसदी से ज़्यादा है, तो भी सेक्शन 80C के तहत कर कटौती 20 फ़ीसदी तक ही सीमित रहती है. 1 अप्रैल 2012 को या उसके बाद जारी पॉलिसियों के लिए, 20 फ़ीसदी की सीमा बदलकर 10 फ़ीसदी कर दिया गया है. बजट 2021 में ये लागू किया गया है कि 1 फ़रवरी, 2021 या उसके बाद ख़रीदे गए ULIP के मेच्योर होने पर अगर लाभ ₹2.5 लाख से ज़्यादा है तो उस पर टैक्स लगेगा. हालांकि इसकी जीवन बीमा पॉलिसी का पीरिअड पूरा होने पर, या क्लेम से मिली रक़म, सेक्शन 10(10D) के तहत छूट दी गई है. डेथ क्लेम के मामले में, प्रीमियम रक़म चाहे कुछ भी हो, मगर मेच्योरिटी पर मिलने वाली रक़म टैक्स फ़्री बनी रहती है.

ULIP के प्रकार

आमतौर पर तीन तरह के ULIP होते हैं जिनके प्रकार, उनके फ़ायदों के आधार पर होते हैं. जो ULIP टाइप I, टाइप II और पेंशन ULIP (ULIPs) कहलाते हैं.

टाइप I ULIP: पॉलिसी होल्डर की मृत्यु होने की स्थिति में, पॉलिसी के सम-अश्योर्ड का अधिकतम, या निवेश की गई यूनिट-वैल्यू के हिसाब से नॉमिनी को क्लेम मिलता है.

टाइप II ULIP: पॉलिसी होल्डर की मृत्यु होने की स्थिति में, नॉमिनी को फ़ंड की सम-अश्योर्ड रक़म , और नेट एसेट वैल्यू (NAV) दोनों ही आधार पर पैसा दिया जाता है. इस प्लान में टाइप-I ULIP के मुक़ाबले प्रीमियम ऊंचा होता है, और निवेश में भी ज़्यादा रिस्क के साथ किया जाता है.

पेंशन ULIP: इस तरह के ULIP में बीमा और रिटायरमेंट इन्कम दोनों का समावेश होता है. इस तरह के बीमा का वो हिस्सा जो जीवन बीमा से संबंधित है, वो टाइप-I और टाइप-II की तरह है, जहां पॉलिसी होल्डर की मृत्यु होने पर, नॉमिनी को डेथ-बेनिफ़िट अदा किया जाता है. अगर बीमित व्यक्ति रिटाइरमेंट की उम्र तक जीते हैं, तो इस प्लान के तहत एन्युटी ख़रीदने के लिए आपको प्रीमियम और कमाई हुए रिटर्न का पूरा भुगतान करती है.

पॉलिसी ख़रीदते हुए क्या ध्यान रखें

पारंपरिक प्लान में जहां सम-अश्योर्ड का प्रीमियम पहले से तय होता है, ULIP में इसके ठीक उलट काम करता है. इसमें दिया गया प्रीमियम ये तय करता है कि आपको कितना कवर ऑफ़र किया जाएगा. जैसे - ये पॉलिसी रेग्युलर प्रीमियम की हो सकती हैं, या एक सिंगल प्रीमियम का भी हो सकती हैं, और इसी आधार पर सम-अश्योर्ड भी अलग-अलग हो सकता है.

ULIP की सेल के समय, अगर इस बात को छोड़ भी दिया जाए कि पॉलिसी होल्डर ने किन फ़ंड स्कीमों को चुना है, तो भी प्रीमियम और निवेश पर 4 और 8 फ़ीसदी का रिटर्न होता है. बेनिफिट इलस्ट्रेशन में कई तरह के शुल्क देखे जा सकते हैं, जैसे - पॉलिसी एडमिनिस्ट्रेशन चार्ज, फ़ंड मैनेजमेंट चार्ज, प्रीमियम एलोकेशन चार्ज आदि.

ऐसा लग सकता है कि ULIP आप की निवेश और बीमा की ज़रूरतों के लिए बिल्कुल सही है. हालांकि आपके लिए ये समझना भी ज़रूरी है कि ULIP की अपनी सीमाएं हैं. अगर आप बीमा के लिए सिर्फ़ टर्म-कवर लेते हैं, तो आपको इसके लिए कहीं कम पैसे देने होंगे. इसमें आपको रिटर्न न भी मिले तो भी बेहतर कवरेज मिलेगा. और अगर आप म्यूचुअल फ़ंड या स्टॉक के ज़रिए इक्विटी में निवेश करते हैं तो ULIP की मंहगी पॉलिसी की क़ीमत भी बचा सकते हैं. इक्विटी में आपके रिटर्न के कहीं बेहतर रिज़ल्ट मिलेंगे, और साथ ही कवरेज भी बेहतर होगा.

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