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शायद ही हम 'बोनस' शब्द को कभी किसी ख़राब चीज़ से जोड़ते हैं. ये ऐसा शब्द है ज़िसके बारे में आमतौर पर कुछ एक्स्ट्रा पाने की बात लगती है या कम-से-कम कुछ सकारात्मक होने बात ही मन में आती है.
इसलिए जब रिलायंस इंडस्ट्रीज ने अपने आने वाले बोनस शेयर इश्यू को दिवाली से पहले का तोहफ़ा बताया, तो कई लोगों को ये तुलना सही लगी. जो लोग नहीं ज़ानते, उनके लिए बता दें कि ग्रुप ने हाल ही में घोषणा की थी कि वो इस त्यौहार के मौक़े पर 1:1 के रेशियो में बोनस शेयर ज़ारी करेगा, जिसका मतलब है कि शेयरधारकों को रिकॉर्ड डेट (जो अभी घोषित नहीं हुई है) के अनुसार रखे गए हरेक शेयर के लिए एक एक्स्ट्रा शेयर मिलेगा.
हालांकि, ज़्यादा अनुभवी निवेशकों के लिए, बोनस इश्यू को 'गिफ़्ट' कहना एक सटीक तुलना के बजाए ध्यान खींचने के लिए डिज़ाइन किया गया मार्केटिंग का एक चालाक तरीक़ा लग सकता है. यहां जानिए क्यों ऐसा है.
क्यों बोनस इश्यू 'फ़्री' शेयर नहीं है
हालांकि ये सच है कि बोनस इश्यू से आपके शेयरों की संख्या बढ़ जाती है, लेकिन वास्तव में वे आपके निवेश की कुल क़ीमत में बढ़ोतरी नहीं करते हैं. ऐसा इसलिए, क्योंकि जब शेयरों की संख्या बढ़ती है, तो हरेक शेयर का मूल्य उसी अनुपात में घट जाता है.
इस पर विचार करें: कल्पना करें, आपके पास कंपनी A के 100 शेयर हैं, जिनमें से हरेक की क़ीमत ₹10 है. इससे आपके होल्डिंग की कुल वैल्यू ₹1,000 (10 * ₹100) हो जाती है. अब, मान लीजिए कि कंपनी A 1:1 बोनस इश्यू की घोषणा करती है, जिसका अर्थ है कि आपको अपने हरेक शेयर पर एक अतिरिक्त शेयर मिलेगा, जिससे आपके कुल शेयरों की संख्या 200 हो जाएगी. हालांकि, प्रति शेयर की क़ीमत घटकर ₹5 हो जाएगी. इसलिए, भले ही शेयरों की संख्या दोगुनी हो गई हो, लेकिन आपके निवेश की कुल वैल्यू ₹1,000 (5 * ₹200) ही रहेगी.
दूसरे शब्दों में, बोनस इश्यू पिज़्ज़ा को ज़्यादा स्लाइस में काटने जैसा है - इससे पिज़्ज़ा का साइज़ नहीं बदलता, बस स्लाइस का नंबर बदल जाते है.
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कंपनियां बोनस शेयर क्यों जारी करती हैं
ज़्यादातर कंपनियां लिक्विडिटी बढ़ाने और अपने स्टॉक को ज़्यादा निवेशकों की पहुंच में लाने (ज़्यादा किफ़ायती बनाने) के लिए बोनस शेयर जारी करती हैं. प्रति शेयर क़ीमत कम करने से स्टॉक, छोटे या रिटेल इन्वेस्टर के लिए ज़्यादा सुलभ हो जाते हैं. रिलायंस इंडस्ट्रीज़ का बोनस शेयर जारी करने का लंबा इतिहास रहा है, और आने वाला बोनस शेयर उसका छठा ऐसा बोनस है.
अब निवेशकों की बात
स्पष्ट तौर पर कहें, तो बोनस इश्यू स्वाभाविक रूप से ख़राब या ख़तरे का संकेत नहीं होते. हालांकि, उन्हें 'फ़्री शेयर' या 'गिफ़्ट' के तौर पर पेश करना भ्रामक हो सकता है, जिससे वास्तविकता से परे उम्मीदें पैदा हो सकती हैं जो निवेश के ख़राब फ़ैसलों का कारण बन सकती हैं.
मिसाल के तौर पर, दिसंबर 2023 में, कई प्रभावशाली लोगों ने सालासर टेक्नो (Salasar Techno) के 4:1 बोनस शेयर इश्यू को कंपनी द्वारा 'फ़्री शेयर' दिए जाने के रूप में प्रचारित किया. जैसा कि अपेक्षित था, इससे ख़रीद में दिलचस्पी बढ़ी और शेयर की क़ीमत दोगुनी से ज़्यादा हो गई. हालांकि, ये उछाल, व्यवसाय में किसी भी मौलिक सुधार पर आधारित नहीं था और परिणाम स्वरूप, इश्यू के बाद शेयर की क़ीमत में गिरावट आई.
एक अहम रिमाइंडर: हालांकि कुछ 'एक्स्ट्रा' पाने का ख़याल लुभावना हो सकता है, लेकिन सतर्क रहना ज़रूरी है. निवेश के फ़ैसले, कंपनी के मौजूदा बिज़नस परफ़ॉर्मेंस के आधार पर लिए जाने चाहिए न कि बोनस शेयरों के बारे में आकर्षक घोषणाओं के आधार पर.
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