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स्टॉक निवेश में बोनस इशू और स्टॉक स्प्लिट की हर बात जानिए

एक स्टॉक निवेशक के तौर पर स्टॉक स्प्लिट और बोनस इशू होने से आपको क्या फ़र्क़ पड़ता है?

बोनस शेयर और स्टॉक स्प्लिट में क्या अंतर है?

कंपनियां स्टॉक स्प्लिट या बोनस इशू क्यों करती हैं? इनका निवेशकों पर क्या असर होता है? - अभिजीत

Know about Bonus Issue and Stock Split: स्टॉक स्प्लिट का मतलब है शेयरों का दो या दो से ज़्यादा हिस्सों में बांटा जाना. बोनस इशू तब होता है जब मौजूदा शेयरहोल्डर को तय अनुपात में ज़्यादा शेयर दिए जाते हैं. बोनस शेयर जारी करना स्टॉक स्प्लिट से काफ़ी अलग है. आइए इन दोनों बातों को विस्तार से समझें.

What is Bonus issue and Stock split: बोनस इशू में कंपनी अपने मौजूदा शेयरहोल्डरों को अनुपात (pro-rata) के मुताबिक़ शेयर मुफ़्त देती है. उदाहरण के लिए, अगर कोई कंपनी 2:1 रेशियो में बोनस का ऐलान करती है, तो निवेशक को उसके पास पहले से मौजूद हरेक शेयर के बदले दो शेयर मिल जाते हैं. कंपनी बोनस इशू के ज़रिए ज़्यादा पैसा नहीं जुटा पाती. इससे रिज़र्व फ़ंड (कई साल से जमा किया गया मुनाफ़ा, जिन्हें डिविडेंड के तौर पर बांटा नहीं गया) को शेयर कैपिटल में बदलता जाता है और साथ ही, निवेशकों के लिए ज़्यादा शेयर जारी किए जाते हैं. इससे कंपनी के रिज़र्व में कमी आती है. वहीं, शेयर कैपिटल बढ़ जाता है. बोनस शेयर जारी करने का उद्देश्य भी यही होता है - ज़्यादा रिज़र्व में से कुछ को शेयर कैपिटल में बदलना.

How Stock split works: स्टॉक स्प्लिट में हाई-वैल्यू वाले स्टॉक की क़ीमत को कम किया जाता है. उदाहरण के लिए, अगर स्टॉक की मौजूदा फ़ेस-वैल्यू ₹10 है, तो उसे ₹2 किया जा सकता है और निवेशकों द्वारा रखे गए हर ₹10 के शेयर के बदले में पांच शेयर जारी किए जा सकते हैं. इस मामले में, स्टॉक्स की फ़ेस वैल्यू में कमी आ जाती है और उसी रेशियो में स्टॉक की संख्या बढ़ जाती है. हालांकि, कंपनी के कुल शेयर कैपिटल में कोई बदलाव नहीं होता. इन दोनों मामलों में - स्टॉक स्प्लिट और बोनस इशू - के बाद कंपनी की वैल्यू में कोई असर नहीं पड़ता.

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अब आपके अगले सवाल पर ग़ौर करते हैं. कंपनियां बोनस इशू या स्टॉक स्प्लिट क्यों करती हैं, साथ ही, वो इसका फ़ैसला कैसे करती हैं कि इन दोनों में से उनके लिए क्या बेहतर होगा. आइए जानते हैं!

अमूमन, जो कंपनियां बुनियादी तौर पर मज़बूत होती हैं, जिन्हें लगता है कि उनके स्टॉक की क़ीमत काफ़ी ज़्यादा हो गई है, वो स्टॉक स्प्लिट का विकल्प अपनाती हैं. यानी, स्टॉक को उन रिटेल निवेशकों के लिए ज़्यादा किफ़ायती बनाती हैं, जो हाई वैल्यू के चलते कंपनी के शेयर नहीं ख़रीद पाते. आमतौर पर स्टॉक स्प्लिट से बाज़ार में स्टॉक की डिमांड बढ़ जाती है. स्प्लिट के बाद, स्टॉक सस्ते हो जाते हैं और इसलिए ज़्यादा निवेशक इसे ख़रीद पाते हैं. बढ़ती मांग के चलते, स्टॉक की क़ीमतें बढ़ती है, जो स्टॉक स्प्लिट का मक़सद है.

बोनस शेयर जारी करने का सबसे बड़ा फ़ायदा है कि इससे कंपनी के हालात का पता चलता है कि कंपनी अपने बड़े इक्विटी बेस को सर्विस देने की स्थिति में है या नहीं. मैनेजमेंट तब तक स्टॉक्स की संख्या नहीं बढ़ाता जब तक उसे भविष्य में अपने मुनाफ़े को बढ़ाने और इन सभी स्टॉक पर डिविडेंड डिस्ट्रिब्यूट करने के क़ाबिल होने का भरोसा न हो. इसलिए, बोनस स्टॉक जारी होने को कंपनी के अच्छे हालात का संकेत माना जाता है.

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निवेशकों पर असर

Investor's impact: निवेशक बोनस इशू को कंपनी की संभावनाओं में मैनेजमेंट के विश्वास के तौर पर देखते हैं. ज़्यादातर निवेशक बोनस इशू को अपने लिए एक पुरस्कार के तौर पर देखते हैं. इसी तरह, स्टॉक स्प्लिट को भी निवेशक ख़ूब सराहते हैं. हालांकि, असल में स्टॉक स्प्लिट और बोनस इशू करना शेयरहोल्डरों के लिए एक ज़ीरो-सम गेम है. आइए इसे थोड़ा विस्तार से समझते हैं.

How EPS works: बोनस इशू होने के बाद, निवेशकों के पास मौजूदा स्टॉक्स की संख्या बढ़ जाती है. लेकिन कंपनी के स्टॉक पर उसकी ओनरशिप में बदलाव नहीं होता है. जैसे-जैसे कंपनी के बक़ाया स्टॉक की संख्या बढ़ती है, उसकी प्रति शेयर कमाई (EPS) कम होती जाती है. सही मायनों में स्टॉक की क़ीमतों में भी उसी तरह की गिरावट आनी चाहिए जिस तरह से EPS में गिरावट आती है. इसलिए बढ़ती शेयरों की संख्या में ग्रोथ स्टॉक की क़ीमत में गिरावट से ऑफ़सेट हो जाती है. यानी, बोनस इशू निवेशकों की वेल्थ में कोई असर नहीं डालता. हालांकि, अक्सर ऐसा होता है कि शेयरों की मांग बढ़ने से क़ीमतें भी बढ़ जाती है. इसलिए निवेशकों को कुछ फ़ायदा तो मिलता ही है.

स्टॉक स्प्लिट से भी निवेशकों को कुछ ख़ास फ़ायदा नहीं मिलता है. हालांकि, मज़बूत कंपनी के स्प्लिट के बाद, स्टॉक सस्ते हो जाते हैं जिससे ज़्यादा निवेशक उस स्टॉक की ओर आकर्षित होते हैं. इससे स्टॉक की मांग बढ़ती है. और स्टॉक की क़ीमत में बढ़ोतरी होती है. जो बाद में ऊंचे स्तर पर स्थिर हो सकती है.

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