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GDP की लाल चटनी और हरी चटनी महंगाई की
2024 की उमर पूरी होते देख, राजपूजा रिसर्च ब्यूरो (ज़ाहिर है काल्पनिक) ने अपनी चर्चित सालाना रिपोर्ट और 2025 का मार्केट आउटलुक तड़ से जारी कर दिया है. आर्थिक भविष्यवक्ता मनोहर "मैंगो" की इस रिपोर्ट में भविष्यवाणियां, ट्रेंड्स और तीख़े फ़ाइनेंशियल कटाक्षों का गरम मसाला थोक के भाव पड़ा हुआ है.
“अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा” शायद यही हाल ग्लोबल GDP का है. ऑर्गनाइज़ेशन फ़ॉर इकोनॉमिक को-ऑपरेसन एंड डवलपमेंट (OECD) के मुताबिक़, 2025 में ग्लोबल GDP ग्रोथ 3.3% रहने की अटकलें हैं, जो पिछले साल के शानदार 3.2% से बस छटांक भर ही बेहतर है.
भारत की ग्रोथ रेट 6.9% होने की उम्मीद है. ये सुनते ही इंडोनेशिया ने हमारी डिमांड को वीकेंड पर उधार लेने की प्लानिंग कर ली है. चीन की हालत वैसी ही है जैसे "ड्रैगन की छींक" - पावर ज़बरदस्त, मगर कभी भी आ जाने वाली. वहीं, भू-राजनीतिक तनाव का "कौन बनेगा सुपरपावर?" वाला खेल फ़ोन-अ-फ़्रेंड पर आ पहुंचा है.
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सोना और चांदी: दो धातु भाइयों की कहानी
गोल्ड ने 30% की बढ़त दर्ज कर अपना जलवा बरक़रार रखा है. इसे देख "सोना" वाक़ई में कह रहा है, "कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है!" वहीं, चांदी की "सोलर पैनल", "इलेक्ट्रिक गाड़ियां" और हेल्थकेयर में चांदी हो रही है.
“सूरज के नीचे कोई भी चीज़ नयी नहीं होती, सिवाय इस बार की चांदी के.”
इसे कमोडिटीज़ का "विकी कुशल" कहा जाए तो ग़लत न होगा - कुछ अंडर-रेटेड लेकिन कमाल का!
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भारतीय इक्विटी: भावनाओं का सर्कस
भारतीय शेयर बाज़ार ने बड़े से झूले पर ऊपर-नीचे होने का फ़ील कराया. हर निवेशक की भाव-भंगिमाएं देख कर वैसा ही लग रहा था जैसे खड़े हुए लोग रोलर-कोस्टर में बैठेने वाले को देखते हैं. बड़े उतार-चढ़ावों ने 2024 को CID के ACP प्रद्युमन की सुई एक ही डायलॉग पर अटका दी, “दया कुछ तो गड़बड़ है”.
RBI के कैश रिज़र्व रेशियो में (CRR) कट को "कौन बनेगा अरबपति?" के सरप्राइज़ एपिसोड की तरह पेश किया. ग्रामीण इलाक़ों के कंज़ंप्शन में सुधार की उम्मीद जताई जा रही है, बशर्ते मानसून नखरे न दिखाए.
RBI और असली GDP: एक दास्तान ऐसी भी
RBI ने FY25 के GDP अनुमान को 7.2% से घटाकर 6.6% कर दिया. शहरों में महंगाई के चलते "पनीर टिक्का मसाला" लग्ज़री आइटम बन चुका है. संइयां और सजनी मिल कर चाहे कितना भी कमाएं मगर, "महंगाई डायन खाए जात है."
हालांकि, सरकार इंफ़्रास्ट्रक्चर पर ख़र्च बढ़ाने का वादा कर रही है. लेकिन अभी तक अपने बजट का 42% ही ख़र्च कर पाई है. तो भाई, "आधी छोड़ पूरी को जाए, आधी मिले न पूरी पाए."
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सेक्टर स्नैपशॉट: कौन जीता कौन रोया
- FMCG: शहरी कंज़ंप्शन में सुस्ती का असर, लेकिन जल्द वापसी की उम्मीद
- IT सेक्टर: निचले स्तर से रिकवरी की तरफ़, बशर्ते कोई नया टैक्स न लग जाए
- बैंक: CRR कटा, लिक्विडिटी बढ़ी और क्रेडिट ग्रोथ को जैसे बूस्टर डोज़ मिल गई.
आगे की रोड: वादों के सांप और नीतियों की सीढ़ी
सरकार नया डायरेक्ट टैक्स कोड ला सकती है, जो पूरा खेल बदल सकता सकता है. लेकिन काफ़ी संभव है इस खेल को आप क्रिकेट वर्ल्ड कप के बाद ही देख पाएं.
नतीजा: चक दे इंडिया!
2025 नई उम्मीदें लाया है, जहां "सोने की चमक," "चांदी की धमक," और फाइनेंशियल ड्रामे का पूरा पावर-पैक्ड पैकेज मिलेगा. हालांकि संत कबीर सादगी पर कही बात भी याद रखने वाली है:
"सांई इतना दीजिए, जा में कुटुंब समाय.
मैं भी भूखा ना रहूं, साधु न भूखा जाय."
इस लेख को "सेंसेक्स सुब्रमण्यम," ने जो व्यंग्यकार और Value Research के स्थायी सीनियर विशेषज्ञ हैं. पढ़ें, मुस्कुराएं, लेकिन निवेश सोच-समझकर करें.
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ये लेख पहली बार दिसंबर 20, 2024 को पब्लिश हुआ.