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भारत में झींगा का ज़ायका क्यों ख़राब हुआ?

कई बिलियन डॉलर के भारतीय झींगा उद्योग (Shrimp Industry) में मंदी की वजह क्या है, आइए जानते हैं

भारत में झींगा का ज़ायका क्यों ख़राब हुआ?

झींगा उद्योग या श्रिंप इंडस्ट्री, भारत के कुल समुद्री मछली उद्योग (seafood industry) में एक ख़ास जगह रखता है. वित्त-वर्ष 2013 में, देश का सीफ़ूड निर्यात $8 बिलियन था, जिसका 70 प्रतिशत हिस्सा, फ़्रोज़न श्रिंप (frozen shrimps) का था.

हालांकि, इंडस्ट्री को पिछले कुछ वक़्त से मुश्किल दौर का सामना करना पड़ा है. साल 2020 में दुनिया के टॉप श्रिंप इंडस्ट्री का ताज खोने से लेकर, कोविड की वजह से क़ीमतों में गिरावट और फ़ीड (झींगा का खाना) की बढ़ती लागत तक, कई मुश्किल हालातों का सामना करना पड़ा.

उन वजहों पर ग़ौर करने से पहले कि एक वक़्त पानी पर दौड़ती ये इंडस्ट्री आखिर क्यों डूबने-उतराने लगी है, आइए इस पर नज़र डालते हैं.

श्रिंप इंडस्ट्री की कहानी

अस्सी के दशक की शुरुआत में, दुनिया भर में श्रिंप की मांग बढ़ी, ख़ासकर चीन और अमेरिका में. उष्णकटिबंधीय जलवायु (tropical climate), लंबा-चौड़ा समुद्री तट, और काम करने वालो की अच्छी तादात के रणनीतिक फ़ायदे के साथ, भारत तेज़ी से बढ़ते श्रिंप पालन उद्योग में उतरने के लिए पूरी तरह से तैयार था.

भारतीय श्रिंप इंडस्ट्री को तब और ताक़त मिली जब इसने व्हाइट स्पॉट सिंड्रोम (WSS) के जवाब में वन्नामेई झींगे (Vannamei shrimp) का पालन शुरू किया, जिसने दुनिया भर में मशहूर काले श्रिंप (black shrimp) को बरबाद कर दिया. जैसे ही वियतनाम और थाईलैंड जैसे पुराने बाज़ारों में गिरावट आई, भारत का श्रिंप बाज़ार फलने-फूलने लगा, इसने उत्पादन के 90 प्रतिशत वन्नामेई (resilient Vannamei) क़िस्म पर कब्ज़ा कर लिया और निर्यात की अच्छी क़ीमत हासिल की.

इनमें से, अवंती फ़ीड्स (Avanti Feeds) सबसे आगे रही, साल 2010 के दशक के शुरुआत चार साल के भीतर ही इसकी वैल्यू बीस गुना बढ़ गई!

श्रिम्प इंडस्ट्री का प्रदर्शन: FY13-18

मजबूत मांग और श्रिम्प ब्रीड में बदलाव के कारण शानदार ग्रोथ देखने को मिली है

कंपनी रेवेन्यू में ग्रोथ (% सालाना) प्रॉफ़िट आफ्टर टैक्स में ग्रोथ (% सालाना) मीडियन ROCE (%)
अवंती फ़ीड्स 39.2 72.8 63.5
एपेक्स फ्रोजन फूड्स 31.4 53 27.3
कोस्टल कॉर्रपोरेशन 31.1 35.6 27.3
वॉटरबेस 19.7 24.1 16.5
ज़ील एक्वा 16.9 37.8 17.6
नोट: ROCE यानी लगाई गई पूंजी पर रिटर्न

हालांकि, अच्छे दिन ज़्यादा नहीं रहे, क्योंकि अवंती फ़ीड्स के साथ ज़्यादातर प्रमुख श्रिंप उत्पादकों को टैक्स के बाद के मुनाफ़े (प्रोफ़िट आफ़्टर टैक्स) में भारी गिरावट का सामना करना पड़ा. वॉटरबेस (Waterbase) जैसी कंपनियों ने 2019-24 के बीच ज़ीरो रेवेन्यू ग्रोथ और -178.5 प्रतिशत की PAT (Profit After Tax) ग्रोथ रिपोर्ट की.

श्रिम्प इंडस्ट्री का प्रदर्शन: FY19-23

कमजोर मांग और अन्य फ़ैक्टर्स के चलते बढ़ी हैं मुश्किलें

कंपनी मार्केट कैप (करोड़ रुपये) रेवेन्यू में ग्रोथ (% सालाना) प्रॉफ़िट आफ्टर टैक्स में ग्रोथ (% सालाना) मीडियन ROCE (%) शेयर का चार साल का रिटर्न (% सालाना)
अवंती फ़ीड्स 6,984 9.9 0.5 32.4 -5.1
एपेक्स फ्रोजन फूड्स 682 5.2 -12.4 13.3 -13.4
कोस्टल कॉर्रपोरेशन 392 -12.5 -35.1 10.7 -13.1
वॉटरबेस 344 0.0 -178.5 5.0 -23.2
ज़ील एक्वा 151 -1.5 0.0 11.1 -11.1
नोट: मार्केट कैप 16 फरवरी 2024 तक का है

आइए इन कंपनियों और भारतीय श्रिंप इंडस्ट्री की गिरावट के पीछे की वजहों पर नज़र डालें.

कोविड क्रैश

फ़िशसाइट (The Fishsite) के मुताबिक़, कोविड की वजह से भारत के श्रिंप सेक्टर को $1.5 बिलियन का भारी झटका लगा, सप्लाई चेन में गड़बड़ी (रुकावटों) की वजह से, 2020-21 के दौरान श्रिंप उत्पादकों का सरप्लस स्टॉक डूब गया.

मिसाल के लिए, अवंती फ़ीड्स की इन्वेंट्री दिन वित्त-वर्ष 2020 में 52 से बढ़कर वित्त-वर्ष 23 तक 80 हो गए. शुरुआत में महामारी के दबाव के कारण, कंपनी ने भविष्य की क़ीमतों की र्गोथ पर दांव लगाते हुए, वित्त-वर्ष 2011 में श्रिंप फ़ीड प्रोडक्ट्स (shrimp feed products) की जमाखोरी शुरू कर दी. हालांकि, इस जुए में हार हुई, क्योंकि लागत बढ़ गई और वित्त-वर्ष 2013 में मांग कम हो गई.

लॉकडाउन और खानपान की पाबंदियो से श्रिंप की मांग हुई और इंडसट्री की मुश्किलें ज़्यादा बढ़ गईं. नतीजा ये हुआ कि श्रिंप की क़ीमतें ज़मीन पर आ गईं. मिसाल के लिए, खाद्य और कृषि संगठन और ग्लोबल सीफ़ूड अलायंस के मुताबिक़, वन्नामेई श्रिंप की फ़ार्म गेट क़ीमतें वित्त-वर्ष 2023 में गिरकर $2.88/किलो (₹236 /किलो) हो गईं, जो मार्च 2020 में $3.54/किग्रा (₹267 /किलो) थीं.

हालांकि वित्त-वर्ष 2014 में श्रिंप की क़ीमतें बढ़ने लगीं, फिर भी वे महामारी से पहले के स्तर से नीचे ही बनी हुई हैं.

एक्सपोर्ट की मुश्किलें

परंपरागत रूप से, प्रमुख श्रिंप आयातक अमेरिका ने भारतीय श्रिंप का पक्ष लिया है. FY23 तक, भारत के कुल श्रिंप निर्यात में उसका हिस्सा 33 प्रतिशत था. फिर भी, अमेरिकी बाज़ार पर इस निर्भरता का अप्रत्याशित रूप से उलटा असर हुआ है.

महामारी की वजह से, प्लास्टर के कारण माल की लागत में भारी बढ़ोतरी हुई, जिससे मिश्रण में गिरावट आई. उसी समय, इक्वाडोर ने पश्चिमी उत्पादों ने अपनी वनस्पतियों का फ़ायदा उठाया और अपने एशियाई प्रतिस्पर्धियों को लॉजिस्टिक एसोसिएट्स में शामिल कर लिया. अमेरिका ने इक्वाडोर के साथ व्यापार करना शुरू किया, और टैरिफ़ भी कम करना शुरू कर दिया, जिससे उसकी भारत पर निर्भरता कम हुई और ये अमेरिका के श्रिंप रिसोर्स को डाइवर्सिफ़ाई करने की दिशा में बदलाव का संकेत था. इसके अलावा, इक्वाडोर भौगोलिक रूप से अमेरिका के नज़दीक है, जिससे इक्वाडोर भारत से मुक़ाबला करने वाले दाम अमेरिका को ऑफ़र कर सका जो अमेरिका और इक्वाडोर दोनों के लिए फ़ायदेमंद रहा.

हालात तब और ख़राब हो गए जब 2023 में, अमेरिका ने कई भारतीय श्रिंप निर्यातकों पर 3.8 प्रतिशत एंटी-डंपिंग ड्यूटी लगा दी, जिससे भारत के लिए बाज़ार में और ज़्यादा चुनौती खड़ी हो गई.

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सितंबर 2021 और सितंबर 2022 के बीच, भारत ने अमेरिका को श्रिंप निर्यात मात्रा में 12 प्रतिशत की कमी देखी, जबकि इसी दौरान, इक्वाडोर ने अपने निर्यात में 11 प्रतिशत की वृद्धि का फ़ायदा लिया, जैसा कि सियाम कैनेडियन ने रिपोर्ट किया गया है. ये बदलाव अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की लिक्विड नेचर और ज़्यादा फ़ायदेमंद आर्थिक साझेदारियों की निरंतर खोज की अहमियत दिखाता है.

फ़ीड की बढ़ती लागत

श्रिंप फ़ीड एक ख़ास आहार है, जो श्रिंप की सेहत और ग्रोथ मज़बूत करने के लिए तैयार किया गया है. इसे तीन ज़रूरी चीज़ों से तैयार किया गया है: सोयाबीन, मछली का आटा और गेहूं का आटा. हालांकि, इन पोषक तत्वों के साथ, श्रिंप का स्वास्थ्य बनाए रखने का सफ़र आर्थिक नाकामियों से भरा रहा है.

पिछले तीन साल में, फ़ीड इंडस्ट्री की क़ीमतें उतार-चढ़ाव से गुज़र रही हैं, ख़ास तौर से वैश्विक स्तर पर कमी की वजह से मछली के भोजन की क़ीमतों में 40 प्रतिशत की चौंकाने वाली बढ़ोतरी हुई है. इस तेज़ी ने कई किसानों की जेबें ढ़ीली कर दी हैं, जिससे उनका मुनाफ़ा कम हो गया है.

इसका भविष्य क्या है?

भारत का श्रिंप इंडस्ट्री मौके और चुनौती के बीच एक चौराहे पर खड़ी है. चूंकि भारत के श्रिंप का एक बड़ा हिस्सा अतिरिक्त प्रसंस्करण के लिए विदेशों में जाता है, इसलिए देश रेवेन्यू के एक बड़े हिस्से से चूक रहा है. इस अंतर को पहचानते हुए, अवंती फ़ीड्स जैसी कंपनियां मूल्यवर्धित श्रिंप उत्पाद (value added shrimp products) की ओर ध्यान दे रही हैं. ये प्रीमियम पेशकश अपने मानक समकक्षों (standard counterparts) के मुक़ाबले, ज़्यादा मुनाफ़े के मार्जिन का वादा करती हैं, जो सिर्फ़ कमोडिटी ट्रेडिंग से दूर संभावित ज़्यादा मुनाफ़े वाले बदलाव का संकेत देती हैं.

जलीय कृषि क्षेत्र (aquatic sector) को बढ़ावा देने के लिए एक रणनीतिक क़दम में, भारत सरकार श्रिंप फ़ीड पर सीमा शुल्क (customs duties) को 15 प्रतिशत से घटाकर ज़्यादा 5 प्रतिशत कर रही है. इसके अलावा, प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना के ज़रिए कृषि शक्ति में दोबारा जान फूंकने के लिए ₹1 लाख करोड़ का साहसी निर्यात लक्ष्य निर्धारित करके, सरकार के कार्य भारत में जलीय कृषि के लिए एक नए युग की शुरुआत कर सकते हैं.

फिर भी, बड़ी आर्थिक अनिश्चितता बनी हुई है. चीन और इक्वाडोर के बीच फ्री ट्रेड समझौतों पर हस्ताक्षर की वजह से, उभरती व्यापार गतिविधि क्षितिज पर एक संभावित तूफ़ान के तौर पर मंडरा रही है. क्या चीन को श्रिंप की आपूर्ति के लिए इक्वाडोर की ओर रुख़ करना चाहिए, इसका असर भारत के एक्वा-कल्चर सेक्टर पर पड़ सकता है. इसलिए, भारत की श्रिंर इंडस्ट्री का भविष्य अधर में लटका हुआ है, जो विकास के अगले दौर के सामने आने की इंतज़ार कर रहा है.

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