DSP म्यूचुअल फ़ंड के फ़ंड मैनेजर चरणजीत सिंह तीन बड़ी स्कीमें - DSP ELSS टैक्स सेवर, DSP इक्विटी अपॉर्चुनिटीज़ और DSP T.I.G.E.R. फ़ंड - मैनेज करते हैं. इन तीनों स्कीम की एसेट वैल्यू लगभग ₹27,600 करोड़ है.
इस ख़ास इंटरव्यू में, सिंह ने फ़ाइनेंशियल मार्केट के अपने सफ़र, अपनी इन्वेस्टमेंट फ़िलॉसफ़ी और मौजूदा मार्केट को लेकर विस्तार से चर्चा की. यहां इस इंटरव्यू के संपादित अंश पेश हैं.
इक्विटी निवेश में आपकी दिलचस्पी कैसे जागी? एक एनेलिस्ट के तौर पर आपके पास लंबा अनुभव है, तो करियर के किस पड़ाव में आपको फ़ंड मैनेजमेंट की प्रेरणा मिली?
इक्विटी रिसर्च ने मेरे अंदर ये दिलचस्पी जगाई, क्योंकि मेरे लिए मार्केट एक ऐसा प्लेटफॉर्म था जहां सबसे चालाक लोग पैसा कमाने के साथ-साथ बहुत कुछ सीखने की कोशिश करते हैं. कुल मिलाकर इक्विटी रिसर्च का मक़सद लगातार सीखते रहना है; जिसमें आप निखरते रहते हैं, डेटा पॉइंट्स में बदलाव करते हैं, और आपको वैश्विक और घरेलू दोनों मैक्रोइकोनॉमिक फ़ैक्टर समझने की ज़रूरत पड़ती है. मेरा मानना है कि इक्विटी रिसर्च से आपको अपनी जानकारी बढ़ाने का ख़ास मौक़ा मिलता है. मैं ये भी मानता हूं कि कुछ और पेशों में भी ये सब सीखने और जानकारी बढ़ाने के ख़ास मौक़े मिलते हैं.
इक्विटी रिसर्च में आपको अपने एनेलिस्ट वाले कौशल का इस्तेमाल करने, बड़ी संख्या में डेटा मैनेज करने और मार्केट के व्यवहार से जुड़ी चीज़ों की जांच-पड़ताल करने का मौक़ा मिलता है. इसलिए, जब मैंने इक्विटी रिसर्च को अपने करियर के रूप में देखा, तो इन चीज़ों ने मेरी दिलचस्पी बढ़ा दी.
आपका दूसरा सवाल -- मैंने सेल-साइड रिसर्च एनेलिस्ट के रूप में 16 साल से ज़्यादा काम किया है, और मेरा मानना है कि इसका मक़सद ख़ास तरह के शेयरों पर नज़र रखना, उन शेयरों को लेकर गहरी रिसर्च करना और लगातार सुझाव देना है. तो, यहां आपका काम अपनी राय सामने रखना होता है न कि फ़ैसला लेना.
मेरा मानना है कि हरेक एनेलिस्ट को राय देने से लेकर फ़ैसला लेने तक का सफ़र पूरा करना चाहिए. तो, एक इक्विटी एनेलिस्ट कुछ इस तरह के बदलाव से गुज़रता है: शुरुआत में, आप सेल-साइड में काम करते हैं, जिसमें आप स्टॉक कवर करते हैं; इसके बाद, आप एक बाय-साइड एनेलिस्ट बन जाते हैं; और आख़िर में, आप बाय साइड या एसेट मैनेजमेंट बिज़नस में क़दम रखते हैं और कंपनियों को कवर करके उनके बारे में सुझाव इंटरनल फ़ंड मैनेजरों को देते हैं. जैसे-जैसे आपका हिट रेट (स्टॉक का बेहतर प्रदर्शन) बढ़ता है, वैसे-वैसे फ़ंड मैनेजर की ज़िम्मेदारियां ज़्यादा साफ़ हो जाती हैं. और मेरा मानना है कि सीखने के इस पड़ाव से गुज़रना हर किसी के लिए एक ज़रूरी है. सही फ़ैसले लेने के लिए आपको इस पड़ाव से गुज़रना पड़ता है. वरना आप वो बड़े फ़ैसले नहीं ले पाएंगे जो पैसा मैनेज करने के लिए ज़रूरी होते हैं.
एक एनेलिस्ट के रूप में आपने वो कौन से ज़रूरी सबक़ सीखे, जो एक फ़ंड मैनेजर के तौर पर काम करते हुए आपके काफ़ी काम आए?
ये वाक़ई एक अच्छा सवाल है, क्योंकि पैसे मैनेज करते वक़्त ये सबक़ काफ़ी काम आते हैं. एक सेल-साइड रिसर्च एनेलिस्ट के रूप में काम करते हुए आप स्टॉक कवर करते हैं और उनके मैनेजमेंट के साथ बात करते हैं. इससे आप जान पाते हैं कि मैनेजमेंट किस तरह काम कर रहा है, क्या दिशानिर्देश दे रहा है और किस तरह कंपनी चला रहा है. इसके अलावा, प्रमोटर या टॉप मैनेजमेंट हरेक बिज़नस में बड़ी भूमिका निभाता है. ये सब ऐसी चीज़ें हैं जिसे आप सेल-साइड रिसर्च एनेलिस्ट के रूप में सीखते हैं.
दूसरा ज़रूरी फ़ैक्टर है कि आप इंडस्ट्री की स्थिति और हरकतों को किस तरह समझते हैं. इसलिए, इंडस्ट्री एक बड़ा फ़ैक्टर है क्योंकि अगर इसका कुल मार्केट साइज़ या मार्केट नहीं बढ़ता है, तो आपके पास ऐसे स्टॉक्स की कमी हो जाएगी जो आपको वैल्यू दे सकें. आप ऐसे सेक्टर से पैसे नहीं कमा सकते जो बढ़ने नहीं रहा हो क्योंकि शेयर मार्केट पूरी तरह से ग्रोथ पर फ़ोकस करता है. दूसरी बड़ी ध्यान देने वाली बात है, फ़ाइनेंशियल मेट्रिक्स की क्वालिटी. इसलिए, एक सेल-साइड रिसर्च एनेलिस्ट के रूप में काम करते हुए फ़ाइनेंशियल फ़ोरेंसिक और एग्रेसिव एकाउंटिंग की जानकारी रखना ज़रूरी है. जब आप बाय-साइड में क़दम रखते हैं, तो आप बिज़नस की जांच-पड़ताल के लिए इन्हीं तरीक़ों का इस्तेमाल करते हैं.
सेल-साइड में, आप सिर्फ़ अच्छी कॉल याद रखते हैं और चाहें, तो अपनी ख़राब कॉल को भूल भी सकते हैं. पर बाय साइड में, आपकी ख़राब कॉल भी आपको उतना ही परेशान करती है जितनी कि आपकी अच्छी कॉल. आपकी ख़राब कॉल की वजह से परफ़ॉरमेंस बहुत ज़्यादा ख़राब हो सकता है. इसलिए, हिट रेट सबसे ज़रूरी फ़ैक्टर्स मे से एक है जिस पर बाय साइड पर कंपनी को ध्यान देना चाहिए. क्योंकि अगर सही फ़ैसला लेने के मामले में मेरा हिट रेट ज़्यादा रहेगा, तो मैं अच्छा रिटर्न कमा पाऊंगा. इसलिए, सेल-साइड तकनीकों के अनुभव को बिज़नस सायकल, वैल्यूएशन सायकल, मैनेजमेंट की जांच-पड़ताल और मार्केट के व्यवहार से जुड़ी चीज़ों में इस्तेमाल करना ज़रूरी है. इसके बाद, बाय-साइड में आपको अपने हिट रेट में सुधार करना, फ़ंड एलोकेशन करना और अपनी होल्डिंग्स का साइज़ बढ़ाना होता है. यही चीज़ आपको एसेट मैनेजमेंट सेक्टर में पहचान दिलाती है.
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आप रोहित सिंघानिया के साथ मिलकर तीन फ़ंड मैनेज करते हैं. आप दोनों कैसे एक-दूसरे का सहयोग करते हैं और ज़िम्मेदारियों को प्रभावी ढंग से बांटते हैं?
हम DSP टैक्स सेवर फ़ंड, DSP अपॉर्चुनिटीज़ फ़ंड और DSP T.I.G.E.R. फ़ंड (इंफ़्रास्ट्रक्चर से जुड़ा फ़ंड) को मिलकर मैनेज करते हैं. अलग-अलग फ़ंड्स को लेकर अलग-अलग फ़िलॉसफ़ी और उन्हें मैनेज करने के दिशानिर्देश बने हुए हैं. ये फ़ंड अलग-अलग सेक्टर से जुड़े हुए हैं. इसलिए, हमें इन चीज़ों पर लगातार नज़र बनाए रखनी पड़ती है कि अलग-अलग सेक्टर कैसा प्रदर्शन कर रहे हैं, क्या कोई सेक्टर लंबे समय से ख़राब प्रदर्शन कर रहा है या क्या कोई ऐसा सेक्टर है जिसमें बेहतर प्रदर्शन देखा जा सकता है. इसके बाद में, हम व्यक्तिगत फ़ंड के ज़रिए अलग-अलग सेक्टर में ओवर-वेट, अंडर-वेट और इक्वल-वेट वाली पोज़िशन लेते हैं. T.I.G.E.R. फ़ंड एक थीमेटिक (ख़ास सेक्टर से जुड़ा) फ़ंड है, जबकि बाक़ियों को अलग-अलग सेक्टर में एलोकेशन के वक़्त ज़्यादा सटीक स्टैंडर्ड्स का पालन करना ज़रूरी है. इसलिए, अगर तरीक़े की बात करें, तो हमारे पास रिसर्च एनेलिस्ट्स की एक टीम है, जो हमें अलग-अलग सेक्टरों को लेकर सुझाव देती है. इसलिए, कुल मिलाकर ज़िम्मेदारी तो हम सबकी है, पर कुछ सेक्टर मेरे और रोहित के बीच बंटे हुए हैं.
स्टॉक की क़ीमत तब बढ़ती है जब ज़बरदस्त मोमेंटम आता है और कमाई होती है, और ये मोमेंटम, मार्केट की उम्मीदों से ज़्यादा होना चाहिए. इसी पॉइंट पर री-रेटिंग होती है, और हमें फ़ाइनेंशियल मॉडल्स और इंडस्ट्री मॉडल्स की जांच-पड़ताल को लेकर लगातार काम करना होता है ताकि ये फ़ैसला लिया जा सके कि हमें कौन सा सेक्टर या स्टॉक चुनना है. इसलिए, मेरा मानना है कि ये सभी फ़ैक्टर मिलकर तय करते हैं कि हमें क्या फ़ैसला लेना है. इसलिए, इन सब ज़िम्मेदारियों को बांटने के लिए एक टीम की ज़रूरत पड़ती है. ये टीम पोर्टफ़ोलियो और होल्डिंग्स पर हर दिन नज़र रखती है, और नए आईडिया भी सामने लाती है.
अगर मार्केट में उतार-चढ़ाव की बात करें, तो विशेष रूप से मार्च-अप्रैल 2020 में एक बड़ा करेक्शन (गिरावट) आया था. आपने उस अनुभव के दौरान क्या ज़रूरी सबक़ सीखे?
इक्विटी मार्केट में करेक्शन ज़िंदगी का हिस्सा है. अगर मार्केट के इतिहास पर नज़र डालें, तो ऐसा नहीं है कि ये करेक्शन पहली बार आया था; उससे पहले भी कई करेक्शन आए थे. जब ऐसी चीज़ें होती हैं तो सरकार और केंद्रीय बैंक तुरंत अपनी प्रतिक्रिया देते हैं, ताकि रिकवरी होनी शुरू हो जाए. तो, होता ये है कि अगर आप एक अनुभवी निवेशक हैं और आपने अलग-अलग सायकल देखे हैं, तो आप करेक्शन को एक बहुत बड़े मौक़े के रूप में देखेंगे. मैं इसे बड़ा मौक़ा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि कई बार ऐसा होता है कि आपको कोई स्टॉक पसंद तो आता है, पर वो बहुत महंगा होता है. क्वालिटी वाले स्टॉक आम तौर पर बहुत महंगे होते हैं, और इन करेक्शन के दौरान हर किसी को अच्छी क्वालिटी वाले स्टॉक ख़रीदकर अपने हिट रेट में सुधार करना चाहिए. ये ऐसा वक़्त होता है जब कई क्वालिटी स्टॉक डिस्काउंट में मिल रहे होते हैं; उनमें सेल चल रही होती है, और अगर आप उस वक़्त भी डरे रहेंगे, तो आप अपना रिटर्न बेहतर नहीं कर पाएंगे. मुझे लगता है कि इस बारे में आपकी सोच बिल्कुल साफ़ होनी चाहिए ये कंपनियां डटी रहेंगी; ये कंपनियां अच्छी क्वालिटी वाली हैं, और ये कंपनियां वापसी करेंगी. और ऐसा क्यों होगा? क्योंकि इनकी बैलेंस शीट मज़बूत है, इनका मैनेजमेंट बहुत मज़बूत है, और इन कंपनियों ने अपने ब्रांड या प्रोडक्ट पोर्टफ़ोलियो को कुछ इस तरह बनाया है कि इनकी जगह कोई दूसरा प्रोडक्ट नहीं ले सकता. इसलिए, अगर आपके पास इस तरह की समझ है और आप एक बिज़नस चलाते हैं, तो आप गिरावट के दौरान डरेंगे नहीं. आप इस गिरावट को एक अच्छे एंट्री प्वाइंट के रूप में इस्तेमाल करेंगे. और आप कुछ ऐसे स्टॉक भी चुनेंगे जिनकी क्वालिटी बहुत अच्छी है.
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एक निवेशक के रूप में आप अपनी फ़िलॉसफ़ी को कैसे बयान करेंगे? किस तरह के स्टॉक, स्थिति या मौक़े आपके अंदर दिलचस्पी जगाते हैं?
अगर आप मेरी निवेश स्ट्रैटेज़ी देखें, तो ये दो नज़रियों पर आधारित है: पहला एनालिटिकल नज़रिया और दूसरा दूरदर्शी नज़रिया. मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि किसी विशेष स्टॉक को लेकर कोई भी कॉल लेने से पहले आपको बहुत सारा डेटा अनालिसिस करने की ज़रूरत पड़ती है. इससे आपको सिर्फ़ पोज़िशन लेने और साइज़ चुनने में मदद मिलती है. इसके अलावा, चाहे आप उस स्टॉक में 1 फ़ीसदी रखना चाहें, 2 फ़ीसदी, या फ़िर अपने फ़ंड का 5 फ़ीसदी रखना चाहें, ये एलोकेशन आपके दृढ़ विश्वास पर निर्भर करता है, जो कि डेटा से आता है. इसलिए, डेटा ही आपको बताता है कि इससे पहले सेक्टर या कंपनियों में क्या हुआ है. लेकिन दूरदर्शी नज़रिया ये बताता है कि भविष्य में क्या हो सकता है. मिसाल के तौर पर, अगर पॉवर सेक्टर की बात करें तो आप ट्रांसफ़ॉर्मर, केबल, और वायर बनाने वाली कंपनियों और यूटिलिटीज़ के ज़रिए पोज़िशन लेते हैं. एक निवेशक के रूप आप ये देखेंगे कि कहां कम से कम जोख़िम और ज़्यादा मुनाफ़ा है, और यही वो सेगमेंट है जिसमें आपको पोज़िशन लेनी चाहिए.
तो, यही चीज़ मेरी इन्वेस्टमेंट फ़िलॉसफ़ी बयान करती है. पहली बात, लगातार ये देखना कि मार्केट में मेगाट्रेंड या ट्रेंड किस तरह और कहां बन रहे हैं; और ये पक्का करना कि हम उन ट्रेंड में वक़्त से आगे चलें क्योंकि तभी हम सही वैल्यूएशन हासिल कर पाएंगे. अगर हम ग़लत प्वाइंट पर एंट्री ले लेंगे, तो हम उतना पैसा नहीं कमा पाएंगे जितना हम मार्केट में तेज़ी आने पर कमा सकते हैं. दूसरी बात, अगर आप उन सेगमेंट्स को चुनेंगे, जो सपाट मार्केट में फ्रैग्मेंटेड (बंटे हुए) नहीं हैं, तो आपको अपने मुनाफ़े को ज़्यादा टिकाऊ बनाने में मदद मिलेगी. तीसरी चीज़ है कि अगर कोई मार्केट लगातार बढ़ता है, तो उस सेगमेंट के ज़्यादातर प्लेयर्स को मुनाफ़ा ही होता हैं. पर एक निवेशक के रूप में, मैं कंज़र्वेटिव नज़रिया अपनाउंगा, वक़्त से आगे चलूंगा और वैल्यूएशन को लेकर बहुत सतर्क रहना चाहूंगा.
पिछले चार साल में DSP T.I.G.E.R. फ़ंड ने बेंचमार्क की तुलना में कमज़ोर प्रदर्शन किया है. बावजूद इसके कि इस अवधि के दौरान सेक्टर में तेज़ी देखी गई, फ़ंड के इस ख़राब प्रदर्शन के पीछे क्या फ़ैक्टर रहे?
जब आप किसी बेंचमार्क को देखते हैं, तो उसके कंपोनेंट्स को ज़रूर देखना चाहिए. एक फ़ंड हाउस के रूप में हम जिस तरह की कंपनियों में निवेश करते हैं, उन्हें लेकर हमारे पास कड़े नियमों का एक ढांचा है. हमारे पास फ़ोरेंसिक एनेलिस्ट हैं, जो ये पक्का करते हैं कि ये सभी कंपनियां उन विशेष नियमों का पालन करें. बेंचमार्क की बात करें तो कंपोनेंट्स बहुत ज़्यादा वेट वाली विशेष कंपनियों की ओर इतने ज़्यादा झुके हुए हैं कि हम वैल्यूएशन या फ़ाइनेंशियल्स को लेकर सहज नहीं हैं. तो, ये इंडेक्स की बनावट से जुड़ी चीज़ है. हालांकि, ब्रॉडर मार्केट की तुलना में फ़ंड ने काफ़ी बेहतर प्रदर्शन किया है. हमने लेंडर्स में निवेश न करने का फ़ैसला किया है. और हाल के दिनों में, आप देखेंगे कि बेंचमार्क में कुछ लेंडर्स काफ़ी ऊपर चले गए हैं. हम हमेशा नैरेटिव से दूर रहते हैं. हम उन कंपनियों से हमेशा दूर रहते हैं जिनके फ़ाइनेंशियल हमें ठीक नहीं लगते या जो हमारी फ़ोरेंसिक जांच-पड़ताल में खरी नहीं उतर पातीं. इन फ़ैक्टर्स को आप सेक्टोरल इंडेक्स की तुलना में हमारे ख़राब प्रदर्शन की वजह मान सकते हैं, पर असल बात ये है इंडेक्स का व्यवहार कुछ ऐसा ही होता है.
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