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SIP क्या है और यह कैसे काम करती है?

SIP के फ़ायदे समझें और जानें कि हम SIP की ज़ोरदार वकालत क्यों करते हैं

SIP क्या है और यह कैसे काम करती है?

निवेश की शुरुआत करने वाले हर किसी ने जब कभी निवेश के बारे में पढ़ा होगा, ' SIP' शब्द ज़रूर दिखाई दिया होगा. Google पर हर महीने 1.3 लाख से ज़्यादा लोग SIP सर्च करते हैं. यानी, SIP निवेशकों के लिए फ़ायदेमंद होनी ही चाहिए. मगर शुरुआत करनी है, तो सबकुछ शुरू से जानना अच्छा रहेगा, तो पहले इसी बुनियादी सवाल का जवाब देख लेते हैं...

SIP क्या है, mutual funds में SIP कैसे काम करते हैं?
SIP का फुल फ़ॉर्म है, सिस्टमैटिक इनवेस्टमेंट प्लान (व्यवस्थित निवेश योजना). वैल्यू रिसर्च में हम नियमित रूप से निवेश करने और इक्विटी में अपने निवेश को प्लानिंग के साथ करने की अहमियत पर ज़ोर देते हैं. इसी वजह से, हम हमेशा से SIP के पक्के समर्थक रहे हैं. SIP के ज़रिए म्यूचुअल फ़ंड में निवेश करने से निवेशकों को अपने निवेश की लागत को औसत पर लाने में मदद मिलती है. साथ ही, ये निवेश की आदत भी बनाती है क्योंकि जब आप हर महीने आपकी सैलरी का एक हिस्सा अपने अकाउंट से SIP के लिए कटवाते हैं और निवेश करते हैं तो ये सहज और स्वाभाविक चीज़ हो जाती है. ये आपके पैसों के सायकल के साथ-साथ तालमेल बना कर चलती है, यानी - आप हर महीने कमाते हैं, हर महीने ख़र्च करते हैं और इसीलिए हर महीने निवेश करते हैं.

इसमें निवेशक एक ख़ास फ़ंड चुनता है, और एक ख़ास रक़म तय करता है जिसे वो हर महीने अपनी चुनी हुई तारीख़ को अपने बैंक अकाउंट से कटवाता है. ये पैसा उसके अकाउंट से निकल कर उस फ़ंड में निवेश के लिए ट्रांसफ़र हो जाता है. प्लान लेते समय, निवेशकों के पास SIP की अवधि चुनने का विकल्प होता है. यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि हरेक फ़ंड की SIP में कुछ न्यूनतम क़िश्तों का प्रावधान होता है जिनका भुगतान ज़रूरी होता है. आम तौर पर ज़्यादातर फ़ंड में ये प्रावधान छह महीने का होता है.

SIP कैसे काम करती है?
जब कोई निवेशक SIP के ज़रिए निवेश करता है, तो उसके बैंक अकाउंट से हर महीने एक ख़ास तारीख़ को एक ख़ास अमाउंट काट लिया जाता है. इस पैसे से लागू NAV (नेट एसेट वैल्यू) पर फ़ंड की यूनिट्स ख़रीदी जाती हैं, जो फ़ंड के स्टॉक पोर्टफ़ोलियो के आधार पर रिटर्न देती हैं. अगर SIP की क़िश्त भरते समय मार्केट में गिरावट है, तो आप फ़ंड की ज़्यादा यूनिट्स ख़रीदते हैं. इसी तरह, अगर मार्केट हाई पर है, तो आप कम यूनिट्स ख़रीद पाते हैं. इसलिए, SIP के ज़रिये निवेश करने पर आपके निवेश के ख़र्च का औसत या एवरेज निकल आता है. क्योंकि आप क़िश्तों में निवेश करते हैं इसलिए हाई या महंगे मार्केट में एंट्री करने से बच जाते हैं.

ये भी पढ़िए- SIP के लिए कैसे चुनें अच्‍छा फंड

जब आपकी SIP क़िश्तें बंद हो जाती हैं, तब भी आपका निवेश मार्केट और अंडरलाइंग सिक्योरिटीज़ के परफ़ॉर्मेंस के साथ-साथ आगे बढ़ता रहता है. ये तब तक आगे बढ़ता है, जब तक आप अपने निवेश को रिडीम करने यानी निकालने का फ़ैसला न ले लें.

म्यूचुअल फ़ंड वाले SIP निवेश पर हुए मुनाफ़े पर टैक्स सिर्फ़ रिडीम करने (पैसे निकालने पर) पर लगाया जाता है, यानी जब आप अपना निवेश बेचते हैं, तभी टैक्स देते हैं. इस मुनाफ़े पर कैपिटल गेन टैक्स लगाया जाता है. ध्यान दें कि जब कैपिटल गेन कैलकुलेट किया जाता है, तो हरेक यूनिट के लिए होल्डिंग पीरियड का कैलकुलेशन (SIP की तारीख़ के आधार पर) अलग से किया जाता है. इसके लिए FIFO (फ़र्स्ट इन फ़र्स्ट आउट) का तरीक़ा अपनाया जाता है. इस तरीक़े में, पहले ख़रीदी गई यूनिट पहले बेची गई मानी जाती हैं.

इक्विटी फ़ंड वाली SIP में - 12 महीने से ज़्यादा वक़्त तक रखी गई हरेक क़िश्त के लिए, ₹1 लाख से ज़्यादा के कैपिटल गेन पर 10 फ़ीसदी टैक्स लगता है. और अगर एक साल के अंदर ही बेचा जाए, तो उस पर 15 फ़ीसदी टैक्स लगता है.

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