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निवेश की 'रिवर्स' स्ट्रैटजी और उसके फ़ायदे

आइए, समझते हैं कि साइक्लिकल कंपनियों में निवेश का सही समय कौन सा होता है

निवेश की 'रिवर्स' स्ट्रैटजी और उसके फ़ायदे

साइक्लिकल कंपनियों में निवेश करना चुनौतीपूर्ण होता है. दरअसल, ऐसी कंपनियों के बिज़नस कच्चे माल की क़ीमतों, मैक्रोइकोनॉमिक स्थितियों और सरकारी नीतियों जैसे बाहरी फ़ैक्टर्स के प्रति ज़्यादा ही संवेदनशील होते हैं. इसके अलावा, उनकी प्रॉफ़िटेबिलिटी अक्सर उनके ऑपरेटिंग लेवरेज (operating leverage) और क़र्ज़ के बोझ से प्रभावित होती है.

स्टील कंपनियां इस साइक्लिकल नेचर का एक बड़ा उदाहरण हैं. आर्थिक मंदी के दौरान जहां उनका रेवेन्यू थोड़ा कम हो सकता है, वहीं, उनका मुनाफ़ा तुलनात्मक रूप से ज़्यादा ही प्रभावित होता है. ये कंपनियां अक्सर भारी क़र्ज़ के बोझ से दबी होती हैं और क़र्ज़ के साइज़ से इतर, बाज़ार से जुड़े बदलावों पर उनका नियंत्रण सीमित ही होता है.

तो, इन्वेस्टमेंट के लिए कौन सी स्ट्रैटजी अपनानी चाहिए?

ऐतिहासिक रूप से, साइक्लिकल कंपनियों में निवेशकों के लिए एक विपरीत स्ट्रैटजी प्रभावी साबित हुई है. निवेश का समय अंतिम रिटर्न निर्धारित करने में बड़ी भूमिका निभाता है. ये स्ट्रैटजी कम प्रॉफ़िटेबिलिटी के दौरान इन कंपनियों में निवेश करने की वकालत करती है, जिसके चलते अक्सर उनका प्राइस-टू-अर्निंग (P/E) रेशियो ऊंचा होता है. हालांकि, ये ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इस स्ट्रैटजी पर विचार करने से पहले, ये सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि कंपनी प्रॉफ़िटेबिल हो और तुलनात्मक रूप से उस पर क़र्ज़ कम हो.

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प्रॉफ़िटेबिलिटी और कैपिटल एक्सपेंडिचर

स्टील कंपनियां अनुकूल हालात में पर्याप्त मुनाफ़ा और फ़्री कैश फ़्लो (free cash flows) जेनरेट करती हैं. हालांकि, अच्छे प्रदर्शन के दौर के बाद आमतौर पर क्षमता विस्तार की पहल की जाती है, जिसके लिए ख़ासे समय और कैपिटल एक्सपेंडिचर की ज़रूरत होती है. लगातार फ़्री कैश फ़्लो जेनरेट करना चुनौतीपूर्ण होता है और मंदी के दौरान प्रतिकूल हालात से जोख़िम पैदा हो सकते हैं.

फिर भी, एक बार जब कोई कंपनी मंदी से जूझती है, तो वो अपने पिछले कैपिटल एक्सपेंडिचर के कारण अनुकूल हालात में दक्षता का लाभ उठा सकती है. इसलिए, क्षमता विस्तार में भारी कैपिटल एक्सपेंडिचर और कम प्रॉफ़िटेबिलिटी के बावजूद स्टील कंपनी में निवेश करना निवेशकों के लिए फ़ायदेमंद साबित हो सकता है.

नीचे दी गई टेबल पिछले 10 साल में स्टील कंपनियों के प्रॉफ़िट आफ्टर टैक्स (PAT) और कैपिटल एक्सपेंडिचर को दिखाती है. ये देखा जा सकता है कि ऊंचे प्रॉफ़िट के दौर के बाद आमतौर पर ऊंचे कैपिटल एक्सपेंडिचर का समय आता है.

टाटा स्टील

वर्ष PAT (करोड़ ₹) CFO (करोड़ ₹) कैपेक्स (करोड़ ₹)
2014 3664 13146 -16066
2015 -3956 11880 -10856
2016 2043 11455 -10010
2017 -304 10824 -8508
2018 17564 8023 -7520
2019 9187 25336 -43037
2020 1172 20169 -14067
2021 8190 44327 -6444
2022 41749 44381 -8798
2023 8075 21683 -24217

JSW स्टील

वर्ष PAT (करोड़ ₹) CFO (करोड़ ₹) कैपेक्स (करोड़ ₹)
2014 388 2594 -5744
2015 1720 7876 -6513
2016 -501 6897 -5162
2017 3454 7888 -4500
2018 6113 12379 -4991
2019 7554 14633 -11176
2020 3919 12785 -12831
2021 7873 18831 -12490
2022 20938 26270 -10068
2023 4139 23323 -14289
PAT यानी प्रॉफ़िट आफ्टर टैक्स
CFO यानी ऑपरेटिंग एक्टिविटीज से कैशफ़्लो

P/E रेशियो के लिहाज से बिल्कुल उलटी कहानी

आम तौर पर, कम P/E रेशियो वाली कंपनी को ख़रीदना एक फ़ायदे का सौदा माना जाता है, क्योंकि इसका मतलब कमाई की तुलना में स्टॉक की क़ीमत से है. हालांकि, साइक्लिकल शेयरों के मामले में, ‘कम P/E रेशियो’ की कहानी बिल्कुल अलग नज़र आ सकती है.

एक तिमाही से दूसरी तिमाही में एक स्टील कंपनी की कमाई बिल्कुल अलग हो सकती है, लेकिन बाज़ार अक्सर इसके हिसाब से स्टॉक की क़ीमतों को एडजस्ट करने में पिछड़ जाता है. नतीजतन, किसी स्टील कंपनी का P/E रेशियो ऊंचे स्टॉक प्राइस के कारण नहीं, बल्कि प्रति शेयर कम कमाई के कारण ऊंचा दिखाई दे सकता है. कई मामलों में, प्राइस में मामूली उतार-चढ़ाव के बावजूद, मुख्य रूप से कमाई बढ़ने के कारण स्टॉक के P/E रेशियो में काफ़ी गिरावट आती है.

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उदाहरण के लिए, 30 जून, 2016 को टाटा स्टील (Tata Steel) का शेयर 29 के P/E रेशियो के साथ ₹31 पर क़ारोबार कर रहा था. इसके बाद, क़ीमतें बढ़ने के साथ-साथ P/E रेशियो में गिरावट शुरू हो गई. 1 अक्टूबर, 2018 को, ₹58 के प्राइस के साथ P/E रेशियो 10 से नीचे गिर गया, जिससे 33 फ़ीसदी का एनुलाइज़ प्राइस रिटर्न हासिल हुआ. इसी अवधि के दौरान, जेएसडब्ल्यू स्टील (JSW Steel) ने 53 फ़ीसदी का एनुलाइज़ प्राइस रिटर्न हासिल किया. इसी तरह के पैटर्न अन्य दौर में देखे जा सकते हैं, जिनमें 2021 और 2022 के अंत के बीच का समय भी शामिल है.

इसका मतलब ये है कि स्टील कंपनियों के P/E रेशियो का आकलन करते समय, ये समझने के लिए ऐतिहासिक डेटा में ये देखना चाहिए कि क्या ऊंचा P/E क़ीमतों में गिरावट के साथ मेल खाता है. इस प्रकार, एक ऊंचा P/E रेशियो निवेश के एक आकर्षक मौक़े का संकेत दे सकता है, जबकि कम P/E स्टॉक वैल्युएशन ज़्यादा होने के संकेत दे सकता है.

अंतिम लेकिन अहम बात

विपरीत सोच (contrarian approach) का साइक्लिकल कंपनियों के मामले में दमदार ट्रैक रिकॉर्ड रहा है. हालांकि, ये स्वीकार करना अहम है कि ये रणनीति हर समय सभी साइक्लिकल कंपनियों के लिए समान रूप से क़ारगर नहीं हो सकती है. बिज़नस साइकल्स के अप्रत्याशित नेचर के अलावा, कंपनी केंद्रित फ़ैक्टर्स भी अहम भूमिका निभाते हैं. इसलिए, निवेशकों को सलाह दी जाती है कि वे निवेश करने से पहले अच्छी तरह से विचार कर लें. साइक्लिकल स्टॉक के बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए, आप इस विषय पर यहां हमारे व्यापक कवरेज का संदर्भ ले सकते हैं.

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