क्या आपने किसी ऐसे म्यूचुअल फ़ंड में निवेश किया है जिसने एक फ़ंड के तौर पर तो अच्छा रिटर्न दिया हो, लेकिन आपका रिटर्न उतना अच्छा नहीं रहा हो? ऐसा तब होता है जब निवेश पर मिलने वाले रिटर्न (investment return) और निवेशक के रिटर्न (investor return) के बीच अंतर हो.
इसकी कई वजहें हो सकती हैं, लेकिन सबसे बड़ी वजह ये होती है कि निवेशक मार्केट की चाल का अंदाज़ा लगाने की कोशिश करते हैं. जब बाज़ार ऑल टाइम हाई पर होता है, तब वो ख़रीदते हैं और जब मार्केट में गिरावट आती है, तब बेचते हैं. किसी फ़ंड निवेशक के रिटर्न में इसी बात से अंतर आ जाता है.
एक्सिस म्यूचुअल फ़ंड की एक रिपोर्ट है, “क्या निवेशक अपने म्यूचुअल फ़ंड निवेश से पर्याप्त पूंजी तैयार कर रहे हैं”, इस रिपोर्ट से ज़ाहिर होता है कि जब निवेशक शॉर्ट टर्म में मार्केट में होने वाले उतार-चढ़ावों से प्रभावित होते हैं, तो उनको मिलने वाला रिटर्न, इक्विटी फ़ंड्स से भी कम हो सकता है. ये अंतर 6.5 फ़ीसदी तक हो सकता है.
एक और कारण है: लोग लंबे समय तक फ़ंड में निवेश नहीं करते हैं. जून 2023 में एसोसिएशन ऑफ़ म्यूचुअल फ़ंड्स ऑफ़ इंडिया (AMFI) की ‘फ़ोलियो-एंड-टिकट-साइज’ (FolioandTicketSize) रिपोर्ट के मुताबिक़, केवल 51.4 फ़ीसदी निवेशकों का होल्डिंग पीरियड दो साल से ज़्यादा रहा. इन आंकड़ों से साबित होता है कि कम समय में बाज़ार के उतार-चढ़ाव के आधार पर लिए गए निवेश के फ़ैसले निवेशकों को नुक़सान पहुंचाते हैं.
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कैसे निवेशकों के व्यवहार का रिटर्न पर असर
हमने निवेश और निवेशक के रिटर्न के बीच का अंतर जानने के लिए एक क़वायद की. हमने
पराग पारिख फ़्लेक्सी कैप फ़ंड
को उसकी एसेट अंडर मैनेजमेंट (AUM) और निवेशकों के बीच उसकी लोकप्रियता के कारण चुना. इसके अलावा, हमने मान लिया कि एक निवेशक ने 2019 में फ़ंड में निवेश किया और इसे जुलाई 2023 में भुना लिया.
इसके अलावा, हमने डेटा को तीन अलग-अलग कैटेगरी में बांटा:
केस 1: साल 2019 में, एक इन्वेस्टर ने एकमुश्त ₹5 लाख का निवेश किया. हालांकि, जब भी फ़ंड से आउटफ़्लो देखने को मिला, तो इन्वेस्टर ने भी अपने निवेश का एक हिस्सा रिडीम कर लिया. विदड्रॉल काफ़ी हद तक फ़ंड के आउटफ़्लो (आउटफ़्लो का साइज़ जितना ज़्यादा होगा, विदड्रॉल भी उतना ज़्यादा होगा) के साइज़ पर निर्भर करता है. मिसाल के तौर पर, ₹10,000 करोड़ से ज़्यादा के फ़ंड के आउटफ़्लो का मतलब ये होगा कि निवेशक अपने कॉर्पस की एक बड़ी रक़म निकाल रहा है.
केस 2: बीते 5 साल से हर महीने की 11 तारीख़ को ₹5,000 का सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIPs) चल रहा है. अभी तक, जब भी आउटफ़्लो होता है, इन्वेस्टर भी अपने निवेश का एक हिस्सा रिडीम कर लेता है. इन्वेस्टर्स आउटफ़्लो के साइज़ के आधार पर (आउटफ़्लो का साइज़ जितना ज़्यादा होगा, विदड्रॉल भी उतना ज़्यादा होगा) अपना पैसा निकालते हैं.
केस 3: बीते पांच साल के दौरान फ़ंड का कुल रिटर्न (CAGR कैलकुलेशन की गई है)
यहां देखिए, हमने क्या पाया:
इन्वेस्टर का 5 साल का परफ़ॉरमेंस
समय-समय पर विदड्रॉल से इन्वेस्टर रिटर्न को लगा झटका
केस | इन्वेस्टर रिटर्न (%) |
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जब चाहे विदड्रॉल के साथ एकमुश्त निवेश (केस 1) | 22.1 |
जब चाहे विदड्रॉल के साथ SIP (केस 2) | 22.5 |
समान समय के दौरान फ़ंड का रिटर्न (केस 3) | 25.7 |
*SIP रिटर्न 11 फरवरी, 2019 के बाद से कैलकुलेट किया गया है. वास्तविक रिटर्न निवेश की तारीख़ के हिसाब से अलग-अलग हो सकता है. |
एक सामान्य SIP की तुलना में समय-समय पर विदड्रॉल किए जाने वाले एकमुश्त इन्वेस्टमेंट (Lumpsum investments) की ग्रोथ सुस्त रही.
इसके अलावा, यहां अंतर भी ज़्यादा स्पष्ट हो गया और फ़ंड और निवेशक के रिटर्न के बीच का अंतर 3.6 फ़ीसदी (एकमुश्त के मामले में) तक बढ़ गया.
इससे मिली ये सीख
बाज़ार में समय सर्वोपरी है.
बार-बार विदड्रॉल से निवेशक के रिटर्न को काफ़ी नुक़सान हो सकता है.
संक्षेप में कहें, तो बाज़ार में उतार-चढ़ाव के दौरान निवेश बनाए रखना और कम समय में आने वाले उतार-चढ़ाव से प्रभावित न होना ही सफल होने का तरीक़ा है.
इसके अलावा, आप ऊपर दी गई टेबल में देख सकते हैं कि SIP रिटर्न इसके एकमुश्त विकल्प से ज़्यादा रहता है . उसकी वजह जानिए:
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SIP से निवेश ज़्यादा अनुशासित हो जाता है. इसके अलावा, एकमुश्त रक़म के बजाय हर महीने किश्तों में निवेश से, जोश में ग़लत फ़ैसले लिए जाने की संभावना कम हो जाती है.
- रुपये की लागत के औसत हो जाने के कारण SIP में एकमुश्त से बेहतर रिटर्न देने की क्षमता है. रुपये की कॉस्ट एवरेज (Rupee-cost averaging) से आपको बाज़ार में गिरावट होने पर ज़्यादा ख़रीदारी करने और बाज़ार ऊंचा होने पर होने पर कम ख़रीदारी करने की सहूलियत मिलती है. कुल मिलाकर सभी निवेशकों के लिए एक पवित्र मंत्र है, “कम दाम पर ख़रीदें, ऊंचे दाम पर बेचें”.
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