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निवेश दोगुना हुआ तो क्या पैसे निकाल लेने चाहिए?

एक गाइड - इन्वेस्टमेंट रिडीम करने जैसा अहम फ़ैसला लेने के लिए

निवेश दोगुना हुआ तो क्या पैसे निकाल लेने चाहिए?

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25 दिन में पैसे डबल! अपने निवेश के लिए ये सुनहरे शब्द कौन नहीं सुनना चाहता.

जब आपका पैसा (निवेश) असल में दोगुना हो जाए, तो क्या आपको अपना पैसा निकाल लेना चाहिए और मुनाफ़ा कमा लेना चाहिए, ख़ासकर आज जब बाज़ार क़रीब-क़रीब हर रोज़ नई ऊंचाइयां छू रहा है?

ख़ैर, ये कई बातों पर निर्भर करता है. आइए, इसके बारे में जानते हैं.

अपना पैसा तभी रिडीम करें, जब पैसों की ज़रूरत हो या आपका फ़ाइनेंशियल गोल पूरा हो गया हो
अगर पैसे निवेश करने के जिस लक्ष्य को लेकर आप चले थे, उतनी रक़म आपके निवेश में इकट्ठा हो गई हो, यानी - घर ख़रीदना या अपने बच्चे की पढ़ाई के लिए जो पैसे आप जमा कर रहे थे उतने जमा हो गए हैं, तो आप निवेश से बाहर निकलने के बारे में सोच सकते हैं.

इसके अलावा, निवेश को रिडीम करना तब भी मायने रखता है, जब आपके सर पर कोई ज़रूरी ख़र्च आ जाए और पैसे की ज़रूरत पड़ जाए.

बाज़ार में गिरावट के डर से रिडीम न करें
बाज़ार में गिरावट के डर से निवेश बेचना निवेशकों की एक आम ग़लती है. भले ही, बाज़ार में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, लेकिन इतिहास गवाह है कि लंबे समय में बाज़ार रिकवर करता है और भी बढ़ता है.

मिसाल के तौर पर, 2020 में कोविड के दौरान सेंसेक्स क़रीब 35 प्रतिशत गिरा, लेकिन साल के अंत तक इसमें लगभग 80 प्रतिशत का उछाल आया. इसलिए अगर आप डर के चलते रिडीम करते हैं, तो आने वाले समय में बड़े मुनाफ़े (कम क़ीमत में ख़रीद) के मौक़े गंवा सकते हैं.

ये भी पढ़िए- ख़राब फ़ंड निवेश से कब बाहर निकलें?

आप कहां निवेश करेंगे?
लेकिन अगर आप अभी भी डर की वज़ह से अपना निवेश रिडीम करना चाहते हैं, तो आप और कहां निवेश करेंगे? इक्विटी इकलौती एसेट क्लास है, जो लंबे समय में महंगाई को मात देने वाला मुनाफ़ा दे सकती है.

उदाहरण के लिए, आपने इक्विटी फ़ंड में ₹1 लाख का निवेश किया था, जो दोगुना होकर ₹2 लाख हो गया है. अगर आप इसे रिडीम करते हैं और निवेश (जिस में ऐतिहासिक रूप से 12 प्रतिशत का रिटर्न मिलता है) जारी रखने के बजाय 7 प्रतिशत वाली FD जैसे 'सुरक्षित' निवेश में लगाते हैं, तो आप अच्छी ग्रोथ से चूक रहे होंगे.

याद रखें

  • निवेश तभी रिडीम करें जब निवेश उस अमाउंट तक पहुंच गया हो, जितने की आपको ज़रूरत हो या आपको तुरंत पैसे की ज़रूरत हो.
  • बाजार के उतार-चढ़ाव के बावजूद एक बताए गए एसेट एलोकेशन पर कायम रहें. एसेट एलोकेशन से जोख़िम मैनेजमेंट और रिटर्न बढ़ाने में मदद मिलती है.
  • अपने एसेट एलोकेशन को बनाए रखने के लिए अपना पोर्टफ़ोलियो नियमित रूप से रिबैलेंस करें.

यहां रिस्क सहने की क्षमता पर आधारित कुछ एसेट एलोकेशन स्ट्रेटजी दी गई हैं:

  • कंज़रवेटिव : 30-40 प्रतिशत इक्विटी फ़ंड, 60-70 प्रतिशत डेट फ़ंड
  • मॉडरेट: 40-60 प्रतिशत इक्विटी फ़ंड, 40-60 प्रतिशत डेट फ़ंड
  • एग्रेसिव: 70-80 प्रतिशत इक्विटी फ़ंड, 20-30 प्रतिशत डेट फ़ंड

ध्यान दें कि ये एलोकेशन हर किसी के सही हो ऐसा नहीं हैं. एलोकेशन निवेशक की उम्र, रिस्क टॉलरेंस, फ़ाइनेंशियल गोल और निवेश के समय के हिसाब से एडजस्ट करना पड़ता है.

ये भी पढ़िए- ख़ुद को फ़ाइनेंशियल इन्फ़्लुएंसरों से कैसे बचाएं?


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