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शिकार मत बनिए

अच्छा वक़्त एक जाल है जिसमें फंसने से बचना ज़रूरी है

शिकार मत बनिएAnand Kumar

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5:12

"जब मार्केट बहुत ज़्यादा उछाल पर या गिरावट में होते हैं, तो भविष्य में उनके प्रदर्शन को लेकर व्यापक और बेहतर नज़रिए के लिए उनके मौजूदा प्रदर्शन को गहराई से समझने की ज़रूरत होती है. इकोनॉमिक्स, फ़ाइनांस और अकाउंटिंग तो हर कोई पढ़ सकता है और जान सकता है कि मार्केट कैसे काम करते हैं. मगर निवेश में बेहतर नतीजे तभी मिलते हैं जब आप इसके बीच का फ़र्क़ समझ जाते हैं कि चीज़ें कैसे काम करनी चाहिए और असल दुनिया में कैसे काम करती हैं. ऐसा करने के लिए, सबसे ज़रूरी 'कच्चा माल' इकोनॉमिक डेटा या फ़ाइनेंशियल अनालेसिस का स्टेटमेंट नहीं है. सबसे ज़रूरी है, मौजूदा निवेशक के मनोविज्ञान को समझना."

इस वक़्त, जिस तरह से भारतीय इक्विटी मार्केट अपने ऑल-टाइम हाई पर मंडरा रहा है, ये शब्द मायने रखते हैं जो प्रसिद्ध इन्वेस्टमेंट मैनेजर हावर्ड मार्क्स की कंपनी ओक ट्री कैपिटल में पब्लिश हुए ताज़ा मेमो के हैं. उन निवेशकों को इसे पढ़ कर गहराई से समझने की बहुत ज़रूरत है जो मार्केट के मौजूदा स्तर को लेकर अति-उत्साहित हैं. भारत में जो कुछ हो रहा हो उसे लेकर भी मार्क्स लिख सकते थे, हालांकि ऐसा नहीं हुआ है. मार्क्स एक बेहद सफल फ़ंड मैनेजर रहे हैं, जो निवेश को लेकर अपने शानदार लेखों के लिए जाने जाते हैं, हालांकि ये बात एक प्रोफ़ेशनल फ़ंड मैनेजर के लिए कुछ अजीब सी लगती है. आमतौर पर उनके लेख, निवेश पर लिखे गए मेमो होते हैं जो काफ़ी प्रसिद्ध हैं. इन्हें वो अपने निवेशकों को भेजते हैं, और ये उनकी कंपनी की वेबसाइट पर भी पोस्ट किए जाते हैं. वॉरेन बफ़े ने तो उनके मेमो को लेकर यहां तक कहा है कि जब मार्क्स के मेमो आते हैं, तो वो उसे पढ़ने के लिए सब कुछ छोड़ देते हैं.

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निवेशकों पर मार्केट के हाई होने का ज़बरदस्त मनोवैज्ञानिक असर होता है. जैसे-जैसे ये हाई क़रीब आता जाता है, और फिर उस हाई पर पहुंच जाता है, और बार-बार इसे दोहराता है, निवेश के मैदान में ज़्यादा से ज़्यादा निवेशक उतरने लगते हैं और एक तरह का 'ख़रीदने का पैनिक' (buying panic) फैल जाता है. मैं जो कह रहा हूं उसमें कुछ भी अजीब नहीं—जो लोग कुछ सालों से या दशकों से निवेश कर रहे हैं वो ख़ुद देख सकते हैं—और कई बार देखते भी हैं. यही बात मार्क्स कह रहे हैं जब वो कहते हैं, "... सबसे ज़रूरी 'कच्चा माल' इकोनॉमिक डाटा या फ़ाइनेंशियल अनालेसिस का स्टेटमेंट नहीं है. सबसे ज़रूरी है, मौजूदा निवेशक के मनोविज्ञान को समझना."

अपने मेमो में, मार्क्स चर्चा करते हुए कहते हैं "मार्केट का तापमान मापना." यानी, उस मनोविज्ञान को समझना जिसकी बात वो कर रहे हैं. उनकी सलाह है कि एक इंसान को "उस समय बेहद सचेत रहना चाहिए जब ज़्यादातर लोग आशा से भरे हुए हों और सोच रहे हों कि अब स्थिति सिर्फ़ बेहतर ही होती जाएगी". वो इसी के प्रति आगाह करते हुए कहते हैं कि "कोई दाम बहुत ज़्यादा नहीं है" वाली सोच ख़तरनाक है. ये वही 'ख़रीदने का पैनिक' है जिसमें पड़ने को लेकर मैं निवेशकों को आगाह करता आया हूं क्योंकि मार्केट का हाई होना, असल में एक रिस्की और ख़तरनाक वक़्त होता है.

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मार्क्स आगे कहते हैं, "याद रखें कि जब अति हो रही हो, तो पैसा बनाने का सीक्रेट दूसरों से विपरीत सोच में है, सब की हां में हां मिलाने में नहीं. जब भावना में बह कर निवेशक किसी एसेट को लेकर अति करने का नज़रिया अपना लेते हैं और नतीजतन, दामों को अनुचित स्तर पर ले जाते हैं, तो आमतौर पर उसका ठीक उलटा करने से 'आसान पैसा' बनाया जा सकता है. हालांकि, ये बात हमेशा सर्वसम्मति से अलग जाने जैसी नहीं है.." यहां जिस सर्वसम्मति से अलग जाने की बात हो रही है, वो अहम है. दरअसल ज़्यादातर समय, मार्केट न तो बहुत ज़्यादा हाई होते हैं न बहुत ज़्यादा लो. वो उस ज़ोन में होते हैं जिसे 'ओके ज़ोन' कहा जाता है.

एक महत्वपूर्ण बात जिस पर हमें ध्यान देना चाहिए, वो ये कि मार्क्स एक प्रोफ़ेशनल इन्वेस्टमेंट मैनेजर हैं. जब वो निवेशकों के मनोविज्ञान की बात करते हैं और बताते हैं कि वो कैसे उसका फ़ायदा उठाते हैं, तो वो हम जैसे लोगों की बात कर रहे हैं, हमारे मनोविज्ञान की बात कर रहे हैं. वो निवेशक जो मनोवैज्ञानिक ग़लतियां करते हैं अपना पैसा स्मार्ट निवेशकों के हवाले कर बैठते हैं. 'शिकार' एक कड़ा शब्द ज़रूर है, मगर यहां, इस संदर्भ में ये सही बैठता है.

अगर एक एक्सपर्ट और अनुभवी निवेशक कह रहा है कि निवेशकों का मनोविज्ञान समझना अहम है, तो एक आम निवेशक के लिए, ये अहम हो जाता है कि वो ख़ुद अपना मनोविज्ञान समझे. आपका निवेश आपके लिए पैसा बनाएगा या किसी और के लिए पैसा बनाएगा, इस पर निर्भर करता है कि आप ये काम करते हैं या नहीं. अगर हम आम निवेशकों को इससे कोई सबक़ सीखना है, तो वो ये होना चाहिए: शिकार मत बनिए.

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