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ITR Filing: टैक्स बचाने के लिए इन्श्योरेंस ख़रीदना घाटे का सौदा है?

लाइफ़ इन्श्योरेंस से टैक्स तो बचता है लेकिन लंबे समय में ये आपकी जेब पर भारी पड़ता है

ITR Filing: टैक्स बचाने के लिए इन्श्योरेंस ख़रीदना घाटे का सौदा है?

ITR Filing: इन दिनों इनकम टैक्स रिटर्न फ़ाइलिंग को लेकर ख़ासी चर्चा हो रही है. दरअसल, 31 जुलाई रिटर्न फ़ाइल करने की आख़िरी तारीख़ है. ऐसे में टैक्स बचाने के लिए कई डॉक्यूमेंट इकट्ठा करना अहम हो जाता है. इसके लिए लाइफ़ इन्श्योरेंस प्रीमियम की रिसीद की ज़रूरत भी होती है. पुरानी टैक्स रिज़ीम में अभी भी आप इसका फ़ायदा ले सकते हैं. हालांकि, ऐसे में सवाल उठता है कि क्या टैक्स बचाने के लिए इन्श्योरेंस कराना अभी भी फ़ायदे का सौदा है? यहां हम इसी सवाल का जवाब दे रहे हैं.


ITR Rule on Insurance Premium: दरअसल, लोग टैक्‍स बचाने के लिए लाइफ़ इन्श्योरेंस पॉलिसी ख़रीदते हैं. और कंपनियों के पास जीवन बीमा के नाम पर अलग-अलग तरह की पॉलिसी होती हैं. आपकी शादी हो गई है तो उसके लिए पॉलिसी, अगर बेटा हुआ है तो उसके बेहतर भविष्‍य के लिए अलग पॉलिसी और अगर बेटी है तो उसकी शादी के लिए अलग पॉलिसी. और इन सारी पॉलिसी ख़रीदने पर आपको टैक्‍स छूट मिलती है.

इस लुभावने जाल से कैसे बचेंगे
जीवन के अलग अलग दौर के लिए बीमा बेचने वालों के पास अलग-अलग पॉलिसी होती हैं. ऐसे में एक आम आदमी के लिए जीवन बीमा के आकर्षण से बचना मुश्किल होता है. एजेंट जो जीवन बीमा पॉलिसी आपको बेचते हैं, वो आमतौर पर पारंपरिक जीवन बीमा पॉलिसी होती है. यानी इसमें जीवन बीमा और निवेश दोनों का कॉम्बिनेशन होता है. आपको लगता है कि आपको जीवन बीमा के साथ निवेश पर रिटर्न कमाने का मौक़ा भी मिल रहा है. इसके अलावा इस तरह की पॉलिसी में मेच्‍योरिटी पर एक तय रक़म की गारंटी भी होती है.

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लाइफ़ इन्श्योरेंस कितना फ़ायदेमंद
लेकिन क्‍या कभी ग़ौर किया है कि पारंपरिक जीवन बीमा पॉलिसी में आपको कितनी रक़म का बीमा मिल रहा है? और इस पर मिलने वाला रिटर्न कितना है? इसके अलावा, इसके प्रीमियम पर आपका कितना पैसा ख़र्च होगा? अक्‍सर पारंपरिक जीवन बीमा पॉलिसी में बीमे की रक़म परिवार की ज़रूरतों को पूरा करने के लायक़ भी नहीं होती है.

आमतौर पर इस तरह की पॉलिसी में रिटर्न 6 फ़ीसदी से ज़्यादा नहीं होता. मान लेते हैं कि आपने आज ₹10 लाख की जीवन बीमा पॉलिसी 20 साल के लिए ली, तो क्‍या, आपके न रहने की सूरत में ₹10 लाख से परिवार की ज़रूरतें पूरी हो जाएंगी? या इस पर आपको जो रिटर्न मिल रहा है, वो आपको महंगाई से बचा पाएगा. अगर, औसत महंगाई दर 6 फ़ीसदी मानें और जीवन बीमा पॉलिसी पर रिटर्न 6 फ़ीसदी मिल रहा है, तो आपका रियल रिटर्न शून्‍य है. यानी, आपका निवेश महंगाई के असर से तो लड़ पा रहा है लेकिन आपको कोई वास्‍तविक रिटर्न नहीं दे रहा है. इसका मतलब है कि आपका पैसा तो बढ़ रहा है लेकिन उसी रफ़्तार से महंगाई भी बढ़ रही है.

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ना बीमा काफ़ी, न ही रिटर्न
आसान शब्‍दों में कहें, तो पारंपरिक जीवन बीमा से न तो आपको ज़रूरत लायक़ जीवन बीमा मिल रहा है और न निवेश पर अच्‍छा रिटर्न. इसके अलावा पारंपरिक जीवन बीमा पॉलिसी का प्रीमियम भी काफ़ी ज़्यादा होता है. इसके लिए आपको हर साल मोटी रक़म प्रीमियम के तौर पर जमा करानी होती है. तो अगर आप सिर्फ़ टैक्‍स बचाने के लिए जीवन बीमा ख़रीद रहे हैं तो आप लंबी अवधि में अपना बड़ा नुक़सान कर रहे हैं.

आपको सिर्फ़ टर्म इन्‍श्‍योरेंस की ज़रूरत
सिर्फ़ टैक्‍स बचाने के लिए जीवन बीमा ख़रीदने की सोच ठीक नहीं है. अगर आप परिवार में अकेले कमाने वाले हैं और परिवार अपनी आर्थिक ज़रूरतों के लिए आप पर निर्भर है, तो आपको हर हाल में जीवन बीमा ख़रीदना चाहिए. जीवन बीमा कवर की रक़म इतनी होनी चाहिए जिससे आपके न रहने की सूरत में परिवार की ज़रूरतें पूरी हो पाएं.

टर्म इन्‍श्‍योरेंस प्‍लान के ज़रिए आप ऐसा कर सकते हैं. टर्म इन्‍श्‍योरेंस पारंपरिक जीवन बीमा की तुलना में काफ़ी सस्‍ता होता है. मसलन एक 35 साल का स्‍वस्‍थ व्‍यक्ति ₹1 करोड़ के जीवन बीमा कवर वाला प्‍लान, लगभग ₹12,000 सालाना प्रीमियम में पा सकता है. इसके अलावा टर्म प्‍लान के प्रीमियम के भुगतान पर भी टैक्‍स छूट का फ़ायदा मिलता है. टर्म प्‍लान में पॉलिसी धारक की मौत हो जाने पर जीवन बीमा कवर का पूरा पैसा परिजनों को मिल जाता है. हालांकि, अगर पॉलिसी धारक प्‍लान की अवधि तक जीवित रहता है तो कुछ नहीं मिलता है.

बचत से बना सकते हैं बड़ी रक़म
अगर आप पारंपरिक जीवन बीमा प्‍लान से तुलना करें, तो आप टर्म इन्‍श्‍योरेंस प्‍लान लेकर काफ़ी रक़म हर साल बचा सकते हैं. और आप यही रक़म हर साल SIP के ज़रिए इक्विटी में निवेश कर सकते हैं. लंबी अवधि में इक्विटी महंगाई दर से ऊपर रिटर्न दे सकती है. इस तरह से इक्विटी SIP में हर महीने छोटी-छोटी रक़म निवेश करके लंबी अवधि में आप बड़ा पैसा बना सकते हैं.

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