Anand Kumar
दूसरों को परामर्श देने वाला. ये है कंसल्टेंट शब्द का मतलब. समय के साथ चलने की भावना से, मैंने Chat GPT से सवाल पूछा, "कंसल्टेंट क्या होता है?" जवाब था, "कंसल्टेंट एक प्रोफ़ेशनल होता है जो किसी ख़ास क्षेत्र या उद्योग में व्यक्तियों, संगठनों या व्यवसायों को विशेषज्ञ सलाह, मार्गदर्शन और समाधान देता है. वो ग्राहकों की समस्याओं को सुलझाने, उनमें सुधार करने या उनके लक्ष्यों को पाने में मदद करने के लिए अपना ज्ञान, विशेषज्ञता और अनुभव बांटता है."
सुनने में अच्छा लगा. लगा कि कंसल्टेंट या सलाहकार काम के होते हैं, और जिस तरह से दुनिया काम करती है उसमें शायद ज़रूरी भी होते होंगे. सिवाए, उन लोगों के अनुभव में, जो इन सलाहकारों के साथ काम कर चुके हैं, यानी ऐसे सलाहकारों के साथ जो आम मैनेजमेंट कंसल्टेंट की तरह होते हैं. हाल ही में, मैंने एक बड़ी दिलचस्प क़िताब पढ़ी 'द बिग कॉन: हाऊ द कंसल्टिंग इंडस्ट्री वीकन्स आवर बिज़नसिज़, इनफ़ैन्टिलाइज़ेज़ आवर गवर्मेंट्स और वॉर्पस् आवर इकॉनोमीज़ (The Big Con: How the Consulting Industry Weakens our Businesses, Infantilizes our Governments and Warps our Economies) ये क़िताब मारियाना मत्ज़ुकाटो और रोज़ी कॉलिंग्टन ने लिखी है. क़िताब में लेखक तर्क देते हैं कि बड़े बिज़नस और यहां तक कि सरकारें भी, बाहरी एक्सपर्ट में जो भरोसा दिखाती हैं, वो उनके अपने लक्ष्य गोल हासिल करने की क्षमता को कमज़ोर और कम कर रहा है. किसी बाहरी एक्सपर्ट की असल नतीजों में कोई हिस्सेदारी नहीं होती और वो अपने अच्छी तरह से रटे-रटाए तौर-तरीक़ों से काम का परफ़ॉरमेंस करके अपने पैसे बनाते हैं. कुल मिला कर, मुश्किल ये है कि इन लोगों की नतीजों को लेकर में कोई भागीदारी नहीं होती, यानी वो ख़ुद पूरी तरह से खेल में शामिल नहीं होते.
पूरी तरह से शामिल होना या अंग्रेज़ी में जिसे स्किन इन दे गेम (Skin in the game) कहते हैं, एक ऐसा कॉन्सेप्ट है, जिसका इस्तेमाल अक्सर इस बात पर ज़ोर देने के लिए होता है कि जिन लोगों की काम के नतीजों में हिस्सेदारी होती है वो उसके लिए ज़्यादा प्रतिबद्ध रहते हैं. ये सही लगता है, मगर ये कैसे काम करता है? टूरिस्टों को लेकर टाइटैनिक तक लेकर जाने वाली जो सबमरीन डूबी, उसने अचानक इस सवाल पर ध्यान ला दिया है. सबमरीन बनाने वालों की कम्युनिटी के मुताबिक़ इस सबमरीन के डिज़ाइन और इसे बनाने में कई बड़े शॉर्ट-कट लिए गए थे, कमोबेश यही वजह रही कि ये सबमरीन और इसके यात्रियों का दुखद अंत हुआ. हालांकि, स्टॉक्टन रश, जो इस सबमरीन के चीफ़ आर्किटेक्ट और कंपनी के सीईओ थे, वो भी अपने क्लायंट्स के साथ हादसे का शिकार हो गए. हालांकि, इस काम में उनकी हिस्सेदारी उतनी थी जितनी संभव हो सकती है. या शायद ज़्यादा ही थी, क्योंकि उन्होंने ख़ुद इसमें कई-कई बार गोता लगाया था, इस बात को नज़रअंदाज़ करते हुए कि फ़ाइबर ग्लास का मुख्य हिस्सा (hull) हर गोते के साथ कमज़ोर होता बताया जा रहा था. तो इस केस में स्किन-इन-द-गेम का सिद्धांत कैसे काम करता है? इस आदमी ने ख़ुद ये रिस्क क्यों लिया? इस केस में, जवाब है अक्षमता, अहंकार और अभिमान. उन्हें लगा कि वो ही सबसे बेहतर जानते हैं.
क्रिप्टो के बॉस भी ठीक इसी तरह के हैं. उन्होंने दूसरों को बरबाद कर दिया, हालांकि कई लोग (पर ज़्यादा नहीं) ख़ुद उसी नाव में सवार थे और ख़ुद बरबाद भी हुए. जैसा कि नस्सीम निकोलस तालेब कहते हैं, खेल में ख़ुद शामिल होना तब काम नहीं करता जब जादुई तरीक़े से उनकी क़ाबिलियत को बढ़ा दिया जाए जो ख़ुद रिस्क के दायरे में हैं. इंसेटिव व्यवहार को बेहतर बनाते हैं, मगर इसका भरोसेमंद तरीक़ा है कि नकारा लोगों को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाए कि स्टॉक्टन रश अब कोई सबमरीन नहीं बनाएगा.
ऐसा लगता है कि गहरे समंदर में गोता लगाने के संदर्भ में, प्रकृति ने यही नतीजा दिया है, मगर बचत और निवेश में नकारा लोगों को खेल से बाहर करने का तरीक़ा अलग तरह से काम करता है. ये हम अपने आस-पास होते हुए देखते हैं. ख़राब तरह से चलाई जाने वाली कंपनियां बंद हो जाती हैं, और ग़लत तरीक़े से चलने वाले म्यूचुअल फ़ंड्स के साथ भी यही होता है, मगर उनके साथ क्या होता है जो आपको सलाह देते हैं? जब कोई आपको फ़ाइनेंशियल सलाह देता है, तब वहां स्किन-इन-द-गेम का प्रिंसिपल कैसे काम करता है?
अपनी क़िताब 'स्किन इन दे गेम', में तालेब ने इन्वेस्टमेंट एडवाइज़रों के लिए एक दिलचस्प सलाह दी है. "मुझे मत बताओ क्या करना है, बस अपना पोर्टफ़ोलियो दिखा दो," ये बात, वो उन लोगों के लिए कहते हैं जो दूसरों को सलाह देते हैं कि उन्हें कहां निवेश करना चाहिए. ये उन सभी इन्वेस्टमेंट एडवाइज़रों के लिए एक सीधी-सादी अमल करने वाली बात होगी कि वो अपने पोर्टफ़ोलियो का पब्लिक रिकॉर्ड रखें. क्या ये हो सकता है? ये बात असलियत से दूर लगती है. पर इसका कोई सीधा-सीधा हल भी नहीं है, सिवाए इसके कि सलाह मांगने वालों की तरह, कोई सलाह देने वाला भी इस तरह भरोसे का ट्रैक रिकॉर्ड दिखाए, तो उसकी सलाह को गंभीरता से लिया जा सकता है.
सभी फ़ाइनेंशियल इंटरमीडियेरी, जैसे कि फ़ंड डिस्ट्रीब्यूटर, एडवाइज़र, और यहां तक कि बैंकों के आला अधिकारी और उनके 'रिलेशनशिप मैनेजर' जो निवेश के लिए दिन-रात आपका पीछा करते हैं, उन सभी को लेकर, निवेशकों के लिए ये जानना फ़ायदेमंद होगा कि वो अपना पैसा भी वहीं लगाते हैं जहां दूसरों के लगाने के लिए कहते हैं या नहीं. यानी, क्या वो ख़ुद भी वही करते हैं जो करने के लिए कहते हैं? अगली बार जब आप सलाह के लिए किसी से मिलें, तो ये बात पूछने में हिचकिचाइएगा मत. आपके इस सवाल का जवाब आपको काफ़ी कुछ बता देगा.
ये भी पढ़ें: ज्ञानी बहुतेरे पर ज्ञान नाक़ाफ़ी