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इंडस टावर्स के मुनाफ़े को लगे झटके से क्या सबक़ लें?

FY23 में इंडस टावर्स के प्रॉफ़िट में भारी गिरावट की वजह कुछ बड़े क्लाइंट्स पर निर्भरता रही है

इंडस टावर्स के मुनाफ़े को लगे झटके से क्या सबक़ लें?

Indus Towers: किसी किराना स्टोर वाले से बात कीजिए. आपको उधारी पर बेचने से जुड़े सभी जोख़िमों के बारे में पता चल जाएगा. साथ ही, ये जानकर आप हैरत में पड़ जाएंगे कि बड़ी कंपनियों पर भी ऐसे ही जोख़िम लागू होते हैं, भले ही उनके क्लाइंट में दिग्गज कारोबारी आते हों.

इंडस टावर्स और उधार बेचने के जोख़िम
इंडस टावर्स भारत की अग्रणी टेलिकॉम इंफ़्रास्ट्रक्चर कंपनी है और उसके क्लाइंट्स में सभी टेलिकॉम कंपनियां शामिल हैं. ये कंपनी टेलिकॉम टावर लगाती है और उन्हें तमाम सर्विस प्रोवाइडरों को लीज़ पर देती है. इसलिए, अगर आप भारती एयरटेल (Airtel), वोडाफ़ोन आइडिया (Vodafone Idea) या रिलायंस जियो (Reliance Jio) के सब्सक्राइबर हैं, तो आप इस बात पर भरोसा कर सकते हैं कि आपके सेल फोन में सिगनल इंडस के किसी टेलिकॉम टावर से ही आ रहे होंगे.

इसलिए, रिलायंस जियो और भारती एयरटेल जैसे दिग्गज क्लाइंट को देखते हुए कोई भी इस बात को आसानी से मान लेगा कि इंडस टावर्स को अपने कस्टमर्स के डिफ़ॉल्ट की चिंता बहुत कम होगी. हालांकि, ये बात हक़ीक़त से काफ़ी दूर है.

प्रॉफ़िट पर चोट

FY23 में ऑपरेटिंग प्रॉफ़िट और नेट प्रॉफ़िट आधे से ज़्यादा कम हो गया है

समय रेवेन्यू में YoY बदलाव (%) ऑपरेटिंग प्रॉफ़िट में YoY बदलाव (%) नेट प्रॉफ़िट में YoY बदलाव (%)
Q1 1.50 -58.00 -66.30
Q2 15.90 -34.80 -44.10
Q3 -2.30 -108.20 -145.10
Q4 -5.10 -21.70 -23.50
FY23 2.40 -54.60 -68.00

फ़ाइनेंशियल ईयर 23 में कंपनी की प्रॉफ़िटेबिलिटी में भारी गिरावट दर्ज की गई. इस साल उसका नेट प्रॉफ़िट मार्जिन घटकर महज़ सात फ़ीसदी रह गया, जो फ़ाइनेंशियल ईयर 22 में 22.5 फ़ीसदी के स्तर पर था.

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इसी वजह से, मार्केट ने स्टॉक को झटका दिया और बीते एक साल के दौरान (5 जून, 2023 तक) इंडस टावर्स का शेयर लगभग 22 फ़ीसदी टूट चुका है. इसकी मुख्य वजह, इसके क्लाइंट्स की कमज़ोर वित्तीय सेहत रही.

भले ही, कंपनी ने अपने क्लाइंट का नाम छिपा लिया, लेकिन उसने सार्वजनिक रूप से कहा कि फ़ाइनेंशियल ईयर 23 में उसके प्रॉफ़िट में गिरावट की मुख्य वजह उसके एक प्रमुख क्लाइंट्स का समय से बकाया चुकाने में नाक़ाम रहना है. इतना ही नहीं, कंपनी ने ये चिंता भी ज़ाहिर की है कि क्लाइंट की कमज़ोर वित्तीय सेहत के चलते वो हाल फ़िलहाल अपना बक़ाया नहीं चुका पाएगी.

नतीजतन, कंपनी को इस क्लाइंट के डिफ़ॉल्ट की स्थिति में होने वाले घाटे की भरपाई के लिए अपने रेवेन्यू का एक बड़ा हिस्सा अलग करना पड़ा था, ये ₹5,308 करोड़ की रकम है, जो फ़ाइनेंशियल ईयर 23 के उसके कुल रेवेन्यू की 18.7 फ़ीसदी है.

ऐसे प्रोविज़न को ख़र्चों के तौर पर दिखाया गया है, जिससे कंपनी की प्रॉफ़िटेबिलिटी को तगड़ा झटका लगा है.

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इन्वेस्टर्स के लिए सबक़
इंडस टावर्स का ज़्यादातर रेवेन्यू उसके मुट्ठीभर क्लाइंट्स की तरफ से आता है
. इसलिए, एक बड़े क्लाइंट की तरफ से रेवेन्यू के प्रभावित होने की स्थिति में कंपनी के फ़ाइनेंशियल्स पर जोख़िम बना रहता है.

साथ ही, टेलिकॉम सेक्टर कमज़ोर वित्तीय सेहत के लिए हमेशा से चर्चित रहा है . यदि आप पिछले दशक पर गौर करेंगे, तो कई सर्विस प्रोवाइडर बैंकरप्सी के कगार पर पहुंच गए या दिवालिया हो गए. इस प्रकार, प्रॉफ़िटेबिलिटी में गिरावट साफ़ नज़र आ रही थी.

इस मामले से ये सबक़ लिया जा सकता है कि इक्विटी इन्वेस्टर्स के तौर पर हमें कंपनियों के क्लाइंट्स की वित्तीय सेहत पर पैनी नज़र रखनी चाहिए. ये बात तब और अहम हो जाती है, जब कोई कंपनी कुछ बड़े क्लाइंट्स से ज़्यादातर रेवेन्यू हासिल करती है.

हम प्रॉफ़िटेबिलिटी के प्रति जोख़िम का आकलन करते समय अक्सर सिर्फ़ क़र्ज़ पर ही ध्यान देते हैं. हालांकि, बड़ी देनदारियां और पेमेंट के डिफ़ॉल्ट के लिए प्रोविज़न में बढ़ोतरी इस बात के संकेत हैं कि कंपनी की प्रॉफ़िटेबिलिटी जोख़िम में है.

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