Large-Cap Active Funds: वैनगॉर्ड (Vanguard) के स्वर्गीय फाउंडर और निवेश की दुनिया के दिग्गजों में शुमार जॉन बोगले (John Bogle) को इंडेक्स फ़ंड्स और पैसिव इन्वेस्टिंग की वकालत करने के लिए जाना जाता है. (ये निवेश का एक स्टाइल है, जहां निवेश में सिर्फ निफ्टी या सेंसेक्स जैसे इंडेक्स की नकल की जाती है)
हालांकि, उन्होंने हमेशा महसूस किया कि भारत जैसी इमर्जिंग इकोनॉमीज में एक्टिव फ़ंड्स बेहतर विकल्प थे, क्योंकि देश में कंपनी के डेटा और जानकारियों तक सभी की समान रूप से पहुंच नहीं है. एक्टिव फ़ंड्स का मतलब ऐसे म्यूचुअल फ़ंड्स (mutual funds) से है जो फंड मैनेजर के भरोसे पर स्टॉक्स (Stocks) और डेट इंस्ट्रुमेंट (Debt Instruments) चुनते हैं.
हालांकि, निफ्टी के साथ एक्टिव लार्ज-कैप फ़ंड्स की तुलना करने पर हमने पाया कि कम से कम ब्लू चिप कंपनियों की दुनिया में निवेश के मामले में बोगले के इस नियम पर फिर से विचार करने की ज़रूरत है.
भेड़ की खाल में भेड़िए
किसी एक्टिव लार्ज-कैप फ़ंड पर नजर डालिए. सैद्धांतिक रूप से, ये फ़ंड सबसे अच्छे लार्ज-कैप स्टॉक्स चुनने के लिए फ़ंड मैनेजर की विशेषज्ञता पर निर्भर करते हैं.
लेकिन उनमें से ज़्यादातर निफ्टी 50 इंडेक्स (Nifty 50 index) पसंद करते नजर आते हैं. आंकड़ों में देखें तो 25 एक्टिव फ़ंड में से 18 ने 60 फ़ीसदी से ज़्यादा दांव निफ्टी 50 पर लगाया है. वहीं, कुछ मामलों में ये आंकड़ा 75 फ़ीसदी तक पहुंच गया.
तो, यदि आधे से ज़्यादा फ़ंड एक इंडेक्स जैसा नजर आता है तो सिर्फ इंडेक्स में ही निवेश क्यों नहीं करना चाहिए?
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इस लिहाज से, एक इन्वेस्टर के तौर पर इन एक्टिव फ़ंड्स के मैनेजर्स से एक सीधा सा प्रश्न पूछा जाना चाहिए, "अगर आप निफ्टी से बहुत ज़्यादा अलग नहीं हैं, तो मुझे इन फ़ंड्स की तुलना में इंडेक्स फ़ंड (index fund) में ही क्यों निवेश नहीं करना चाहिए?"
क्या नजर आई उम्मीद की किरण?
अगर आप एक्टिव लार्ज-कैप फ़ंडों का प्रदर्शन देखना चाहते हैं तो कोई फ़ायदा नहीं है.
हमने 25 लार्ज कैप फ़ंड के पिछले पांच साल के प्रदर्शन को देखा. इन फ़ंड्स को सही मौका देने के लिए, हमने कई पहलुओं पर गौर किया, लेकिन कुछ भी संतुष्ट करने वाला नहीं था.
1 जनवरी, 2018 से 31 दिसंबर, 2022 तक पांच साल के दौरान, सिर्फ एक (जी हां, महज एक) एक्टिव लार्ज-कैप फ़ंड निफ्टी-50 इंडेक्स के 12.8 फ़ीसदी रिटर्न को पीछे छोड़ने में सफल रहा. हकीकत में, इनमें से कुछ ने बड़े अंतर के साथ कमजोर प्रदर्शन किया. ये बात नीचे दी गई टेबिल देखने से भी साफ हो जाती है.
अगर आप अलग-अलग कैलेंडर वर्ष के प्रदर्शन पर गौर करें तो सिर्फ चार एक्टिव फ़ंड पांच साल में से तीन साल के दौरान निफ्टी को पीछे छोड़ सके. गंभीर बात ये है कि 10 ऐसे एक्टिव फ़ंड थे जो पांच साल में सिर्फ एक बार ही इंडेक्स को पीछे छोड़ सके.
कभी-कभार आंकड़ों की दुनिया में, आप अपनी कल्पित धारणाओं को सही साबित करने के लिए डेटा को टुकड़ों में देखते हैं. हालांकि, इस मामले में ऐसा कुछ भी काम नहीं आया.
एक्टिव फ़ंड रोलिंग रिटर्न (ये निवेश के टिकाऊ होने का संकेत होता है) के मामले में भी कमज़ोर दिखे. 2020 से पांच साल के रोलिंग रिटर्न यानी जहां आपका निवेश 2015 में शुरू हुआ था, में सिर्फ चार एक्टिव फ़ंड ऐसे मिले जिन्होंने अधिकांश समय इंडेक्स को पीछे छोड़ा.
इससे भी ख़राब स्थिति ये है कि 25 फ़ंड में से 16 तो बमुश्किल एक चौथाई समय ही इंडेक्स को पीछे छोड़ सके.
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कम रिटर्न, ज़्यादा चार्ज
कमज़ोर प्रदर्शन को भूल भी जाएं तो एक और बात आपको हैरान कर देगी. दरअसल, एक्टिव फ़ंड आपसे इंडेक्स फ़ंड्स की तुलना में लगभग 0.8 फ़ीसदी ज़्यादा चार्ज वसूल करते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि कम रिटर्न पाने के लिए आप ज़्यादा भुगतान क्यों कर रहे हैं.
इसके अलावा, माना जाता है कि एक्टिव फ़ंड संदिग्ध कंपनियों से दूरी बनाकर कम क्वालिटी वाले स्टॉक्स फिल्टर करते हैं और बेहतर रिटर्न देते हैं. ऐसे में अदाणी, यस बैंक, रिलायंस कम्युनिकेशंस और सुजलॉन एनर्जी जैसी कंपनियों के नाम दिमाग में आते हैं. इनके चलते, निफ्टी पर दबाव बना और इंडेक्स से इनके बाहर होने में लंबा समय लग गया. साथ ही, कुल रिटर्न को तगड़ा झटका लगा. लेकिन इस कमज़ोरी के बावजूद, सक्रिय लार्ज-कैप फ़ंड इसे भुनाने में असफल रहे.
हमारी राय
इन आंकड़ों से सीधा सा निष्कर्ष ये निकलता है कि लार्ज-कैप एक्टिव फ़ंड अक्षम साबित हुए हैं. वे एक पैसिफ फ़ंड (passive fund) की तरह ज़्यादा दिख रहे हैं, जो ज्यादा चार्ज लेते हैं और आपको कम रिटर्न दिलाते हैं. एक इन्वेस्टर के तौर पर, ये आपके लिए कहीं और विकल्प तलाशने का समय हो सकता है.
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