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पीटर लिंच की 6 स्टॉक कैटेगरी

स्टॉक्स को ठीक से समझने और निवेश के सही फ़ैसलों के लिए पीटर लिंच जैसे प्रसिद्ध फ़ंड मैनेजर किन अलग-अलग कैटेगरी में बांटते हैं अपने स्टॉक्स।

पीटर लिंच की 6 स्टॉक कैटेगरी

प्रसिद्ध फ़ंड मैनेजर पीटर लिंच की क़िताब, ‘वन अप ऑन वॉल स्ट्रीट’ (One up on Wall street) कई स्टॉक मार्केट इन्वेस्टर्स के लिए बाइबिल की तरह है। इस क़िताब में लिंच कहते हैं कि स्टॉक ख़रीदने के दौरान वो किस फेर में पड़ रहे हैं, ये जानने के लिए वो स्टॉक्स को छः कैटेगरी में बांटते हैं। जहां, और बहुत सारे तरीक़े और कैटेगरियां हैं जो बहुत से लोगों ने सुझाई हैं, वहीं पीटर लिंच मानते हैं कि उनकी सुझाई ये छः कैटेगरी ही स्टॉक्स को समझने के लिए और निवेश के सही फ़ैसलों के लिए काफ़ी हैं। इस लेख में हम इन्हीं 6 कैटेगरी की बात करेंगे।
· धीमी ग्रोथ वाली कंपनी (Slow growers): आमतौर पर ये बड़ी कंपनियां होती हैं जो अपने जीवन चक्र (life-cycle) की प्रौढ़ावस्था (mature stage) में होती हैं और देश के GNP (Gross National Product) या GDP (Gross Domestic Product) के बराबर या उससे कुछ ज़्यादा तेज़ ग्रो करती हैं। इनकी शुरुआत तो तेज़ ग्रोथ वाली कंपनियों के तौर पर होती है मगर इंडस्ट्री के स्लो-डाउन की वजह से या सेक्टर में ग्रोथ की गुंजाइश कम होने से इनकी बढ़ने की रफ़्तार धीमी पड़ जाती है। ज़्यादा और लगातार मिलने वाला डिविडेंड इनकी निशानी कही जा सकती हैं क्योंकि इनके लिए अपने मुनाफ़े को फिर से निवेश करने के मौक़े बहुत ज़्यादा नहीं होते। मिसाल के तौर पर Glaxosmithe Pharma ने अपनी कमाई 2.3 प्रतिशत सालाना की दर से बढ़ाई है और इसका पिछले 5 साल का डिविडेंड मीडियम पे-आउट रेशियो 90 प्रतिशत रहा है। और कंपनी की मौजूदा डिविडेंड यील्ड 5.9 प्रतिशत की है।
· मज़बूत कंपनी (Stalwarts): ये कंपनियां मध्यम रफ़्तार से बढ़ती हैं, जिसकी 10-12 प्रतिशत सालाना की दर होती है, यानि, GDP से दो-गुनी। इन स्टॉक्स से निवेशक अपना पैसा दो-गुना, तीन-गुना, या चार-गुना कर सकते हैं, हालांकि इसमें तेज़ ग्रोथ वाली कंपनियों के मुक़ाबले ज़्यादा समय लगता है। पीटर लिंच के मुताबिक़ ये कंपनियां सुरक्षित निवेश हैं। ये मज़ूबूती और लगातार बढ़ती रहती हैं। साथ ही ख़राब समय में सुरक्षित रहती हैं। लिंच के पोर्टफ़ोलियो का 30-40 प्रतिशत इन्हीं स्टॉक्स का होता है। Hindustan Unilever इसका अच्छा उदाहरण है। इस कंपनी की कमाई की सालाना ग्रोथ 14.6 प्रतिशत रही है और पिछले 5 साल में इसने 16 प्रतिशत रिटर्न दिया है। ये डिविडेंड भी अच्छा देती है।
· तेज़ ग्रोथ वाली कंपनी (Fast growers): ये कैटेगरी पीटर लिंच की सबसे पसंदीदा है। ये छोटी और आक्रामक तौर-तरीक़ों वाली कंपनियों होती हैं जिनमें 20-25 प्रतिशत की सालाना ग्रोथ होती है। ज़रूरी नहीं कि ये कंपनियां तेज़ ग्रोथ वाली इंडस्ट्री से ही हों, क्योंकि इनमें से कुछ धीमी ग्रोथ वाली इंडस्ट्री में भी होती हैं। जहां इस कैटेगरी में होने के ज़बर्दस्त फ़ायदे रहते हैं, वहीं इसके नुकसान भी उतने ही बड़े होते हैं। छोटी सी परेशानी आ जाने पर, तेज़ी से ग्रो करने वाली इन कंपनियों के साथ मार्केट का बर्ताव अच्छा नहीं रहता। CDSL , जिसने 29 प्रतिशत सालाना की दर से कमाई की, और पिछले दो साल में 100 प्रतिशत रिटर्न दिए, वो पिछले तीन महीने में 26 प्रतिशत नीचे गिर गई है क्योंकि डीमैट रजिस्ट्रेशन में एक मामूली सी परेशानी आ गई थी।
· उतार-चढ़ाव वाली कंपनी (Cyclicals): ये वो कंपनियां हैं जिनकी बिक्री और मुनाफ़ा अक्सर बढ़ता और घटता रहता है, ज़्यादातर अर्थव्यवस्था के साथ-साथ। जब अर्थव्यवस्था बेहतर होती है, या जब बूम आता है, तब ये स्टॉक खूब फलते-फूलते हैं और जब अर्थव्यवस्था मंद पड़ जाती है, तब ये स्टॉक गिरने लग जाते हैं। मिसाल के तौर पर ऑटोमोबाइल, स्टील, कैपिटल गुड्स जैसे उद्योग में अक्सर ऐसा होता है। इन उतार-चढ़ाव वाली कंपनियों को ख़रीदने की टाइमिंग सही होनी बेहद ज़रूरी है। अगर सायकल के ग़लत पड़ाव पर ये स्टॉक ले लिए, जैसे कि उनके सबसे ऊंचाई पर (all time high) होने के समय, तो पैसा बराबर करने में कई साल लग सकते हैं। SAIL इसकी बेहतरीन मिसाल है। कमॉडिटी के दाम बढ़ने की वजह से और इंफ्रा पर ज़ोर होने की वजह से, इस स्टॉक ने पिछले दो साल में 52 प्रतिशत सालाना का रिटर्न दिया है। मगर आपने इसे पांच साल पहले ख़रीदा होगा, तो केवल 3.7 प्रतिशत सालाना का रिटर्न ही मिला होगा।
· कायापलट करने वाली कंपनी (Turnarounds): ये कंपनियां न तो तेज़ी से बढ़ती हैं, न धीमी ग्रोथ वाली होती हैं। ये वो थके-हारे स्टॉक होते हैं जो कई वजहों से नीचे आ जाते हैं। इस सेग्मेंट में सफलता कम ही देखने को मिलती है। जहां इनमें से कुछ स्टॉक्स की बड़ी कायापलट हो जाती है, वहीं ज़्यादातर पूंजी बर्बाद करने वाले होते हैं। पीटर लिंच, क्रिसलर में अपने निवेश को टर्नअराउंड या कायापलट करने वाले स्टॉक्स की कैटेगरी में डालते हैं, जिसने उन्हें पांच साल में 15-गुना रिटर्न दिए। इस कैटेगरी का भारतीय उदाहरण है, CG Power and Industrials जिसने पिछले दो साल में मुरुगुप्पा ग्रुप के टेकओवर के बाद, शानदार 356 प्रतिशत का रिटर्न दिया। ख़र्च पर क़ाबू, कैश की स्थिति, बिज़नस कंपनी के कामों केंद्र में रहा या नहीं, और क़र्ज़दारों से उसका व्यवहार कैसा रहा - ये सारी बातें क़रीब से देखी जानी चाहिए।
· छुपी हुई परिसंपत्तियों वाली कंपनी (Asset plays): ये वो कंपनियां है जिनकी बैलेंस शीट में कुछ ऐसी क़ीमती चीज़ छुपी हैं जिन्हें मार्केट ने नोटिस नहीं किया है। छुपी हुई चीज़, कंपनी की कैश पोज़ीशन हो सकती है या उसकी रियल इस्टेट होल्डिंग हो सकती है। पीटर लिंच इसे पेबल बीच की गिट्टियों का केस (Pebble Beach's gravel pit) कहते हैं, जहां ट्वेंटीएथ सेंचुरी फ़ॉक्स (Twentieth Century-Fox) ने कंपनी को $72 मिलियन में तब ख़रीदा, जब दो साल पहले उसकी क़ीमत महज़ $25 मिलियन की थी। अचरज वाली बात ये है कि ट्वेंटिएथ सेंचुरी फ़ॉक्स ने पेबल स्ट्रीट की गिट्टियां (जो पेबल की एक परिसंपत्ति) $30 मिलियन में बेच दीं। यानि, सिर्फ़ दो साल पहले ही पूरी कंपनी की वैल्यू उसके पास रखी गिट्टियों से भी कम थी। इस समय, Rashtriya Chemical and Fertiliser एसेट प्ले वाली कंपनी की एक अच्छी मिसाल है। इसका मार्केट कैप ₹4,314 करोड़ है और मैनेजमेंट के मुताबिक़ कंपनी की ज़मीनों की क़ीमत ही क़रीब ₹64,000 करोड़ है।

निवेशकों को याद रखना चाहिए कि इस कैटेगरी के स्टॉक समय-समय पर माइग्रेट कर सकते हैं। एक तेज़ ग्रोथ वाला स्टॉक, स्टॉलवर्ट बन सकता है और एक स्टॉलवर्ट, स्लो-ग्रोअर हो सकता है। पहली तीन कैटेगरी का आधार बिज़नस सायकल हैं जिनका सामना हर कंपनी कभी-न-कभी करती ही है।
हम भी कहना चाहेंगे कि इन उदाहरणों में बताई गई कैटेगरी हमारी सलाह में शामिल नहीं है। निवेश से पहले निवेशकों को इस विषय में पूरी जांच-पड़ताल करनी चाहिए।
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