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NSC पर मिले ब्याज़ पर टैक्स कैसे लगता है?

ये जानने के लिए पहले समझें कि क्या नेशनल सेविंग्स सर्टिफ़िकेट पर मिले ब्याज़ के चलते आप पर टैक्स की देनदारी बनती है

NSC पर मिले ब्याज़ पर टैक्स कैसे लगता है?

Tax on NSC Interest: नेशनल सेविंग्स सर्टिफ़िकेट (NSC) पर मिलने वाला ब्याज़ टैक्सेबल है. टैक्सेशन से जुड़े उद्देश्यों के लिए, इसे हर साल निवेशक की टैक्सेबल इनकम (सिर्फ़ मेच्योरिटी के दौरान नहीं) में जोड़ा जाता है और निवेशक पर लागू स्लैब के अनुसार ही इस पर टैक्स लगाया जाता है. अपना टैक्स रिटर्न फ़ाइल करते समय इसे 'अन्य सोर्सेज से हुई इनकम' के मद में दिखाना पड़ता है.

हालांकि, NSC (National Savings Certificate) पर मिला ब्याज अपने-आप दोबारा निवेश हो जाता है. और हर साल इसे मूलधन (मूल निवेश) में जोड़ दिया जाता है. और इसे इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 80C के तहत टैक्सेबल इनकम से कटौती के रूप में क्लेम किया जा सकता है. लेकिन ये ध्यान चाहिए कि सेक्शन 80C का लाभ ₹1.5 लाख तक ही सीमित है.

इसके अलावा, NSC में पांच साल के लिए निवेश किया जाता है, जबकि शुरुआती चार सालों में मिला ब्याज़ ख़ुद ही री-इन्वेस्ट यानी फिर से निवेश हो जाता है और इसे डिडक्शन रूप में क्लेम भी किया जा सकता है. वहीं, पांचवें वर्ष में मेच्योरिटी के समय ब्याज़ सहित पूरी रक़म निवेशक को दे दी जाएगी. और, अगर इसे री-इन्वेस्ट नहीं किया जाएगा तो इस पर टैक्स की देनदारी बनेगी.

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आइए इसे उदाहरण के तौर से समझते हैं. मान लीजिए कि आपने 6.8 फ़ीसदी के सालाना रिटर्न के साथ NSC में ₹1 लाख का निवेश किया है, तो पहले साल के आखिर में, ₹6,800 का ब्याज़ मिलेगा जो अपने आप री-इन्वेस्ट हो जाएगा. अब, दूसरे साल की शुरुआत में आपका मूलधन ₹1 लाख से बढ़कर लगभग ₹1.7 लाख हो जाएगा. हालांकि ₹6,800 का ये ब्याज टैक्सेबल है, लेकिन इसे सेक्शन 80C के तहत कटौती के रूप में क्लेम किया जा सकता है क्योंकि इसे NSC में री-इन्वेस्ट किया जाता है. ऐसा ही इसे दूसरे, तीसरे और चौथे साल के लिए भी किया जा सकता है. लेकिन 5वें साल के अंत में, जब NSC मेच्योर हो जाती है, तो 5वें साल में मिले ब्याज़ (₹ 8,847) को री-इन्वेस्ट नहीं किया जाएगा. बल्कि इसका भुगतान किया जाता है, इसलिए ये टैक्सेबल रहता है और इस पर डिडक्शन क्लेम नहीं कर सकते हैं.

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