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देनदारियों पर रखें नजर

कंपनी की देनदारियों का आकलन करने से कई डिटेल पता चल सकती हैं

देनदारियों पर रखें नजर


जिस तरह से बैलेंस शीट के असेट साइड को करेंट और नॉन करेंट असेट्स में वर्गीकृत किया जाता है उसी तरह से देनदारियों को भी कंपनी की मौजूदा देनदारियां और गैर-मौजूदा देनदारियों में वर्गीकृत किया जाता है। अगर कोई देनदारी 12 माह या कंपनी की नियमित ऑपरेटिंग साइकल के अंदर ड्यू है तो इसे मौजूदा देनदारी के तहत वर्गीकृत किया जाता है। कोई भी दूसरी देनदारी जो कंपनी की मौजूदा देनदारी की कैटेगरी में नहीं आती है उसे गैर-मौजूदा देनदारी के तौर पर वर्गीकृत किया जाता है।

एक सामान्‍य नियम यह है कि कंपनी के पास अपनी मौजूदा देनदारियों को कवर करने के लिए जरूरी संसाधन होना चाहिए। एक और फायदेमंद सिद्धांत यह है कि कंपनियों के लिए बेहतर है कि कुल डेट कम से कम हो, लेकिन कम अवधि के डेट की तुलना में लंबी अवधि का डेट बेहतर होता है क्‍योंकि इसमें निकट भविष्‍य में कम रकम का भुगतान करना होता है।

असेट्स की तरह कभी-कभी देनदारी को भी सटीक तौर पर दो बकेट में वर्गीकृत करना मुश्किल होता है। यह हो सकता है कि डेट पेमेंट काफी समय के बाद ड्यू हो, लेकिन कुछ खास घटनाओं की वजह रीपेमेंट शेड्यूल में तेजी आ सकती है। ऐसे मामलों में बैलेंस शीट का वर्गीकरण मौजूदा और गैर मौजूदा में करना गुमराह करने वाला हो सकता है।

इस मामले पर गौर करें: स्‍पाइसजेट

स्‍पाइसजेट ने मार्च, 2017 में 2,470 करोड़ रुपये की मौजूदा देनदारी दर्ज की। सितंबर 2021 में यह आंकड़ा तेज उछाल के साथ 9,403 करोड़ रुपए हो गया। कोविड की वजह से आने वाली बाधाएं एयरलाइंस सहित सर्विसेज सेक्‍टर की कंपनियों के लिए काफी खतरनाक साबित हुईं। इस बात की संभावना है कि मौजूदा देनदारियां और बढ़ेंगी और ये एयरलाइंस के सरवाइवल पर सवाल खड़ा करेंगी।


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