पिछले तीन दशकों के दौरान, वैल्यू रिसर्च में हमने भारतीय म्यूचुअल फ़ंड इंडस्ट्री को बहुत क़रीब से बढ़ते हुए देखा है। इस लंबे अर्से में जहां हमने म्यूचुअल फ़ंड स्कीमों को ट्रैक किया और उनके हिस्से में आए मार्केट के उतार-चढ़ावों को देखा, वहीं इस अनुभव ने कई तरह के फ़ंड्स को एनेलाइज़ करने की हमारी क्षमता को बढ़ाया और बेहतर किया है। हमें एक ऐसा फ़्रेमवर्क तैयार करने में मदद की है, जो कई कैटेगरी के म्यूचुअल फ़ंड में निवेश करने और इनके बीच फ़र्क करने में मदद करता है। ये हर किसी के लिए सही फ़ंड का चुनाव करने के लिए ज़रूरी है।
इतने साल में, कई एसेट मैनेजमेंट कंपनियां (AMCs) आई और गईं, कई नए तरह के फ़ंड आए और बहुत से रेग्युलेटरी बदलाव भी हुए। मगर आश्चर्यजनक रूप से सफल म्यूचुअल फ़ंड निवेशक बनने की बुनियादी बातें नहीं बदली।
पहली बार है, जब हम सात हिस्सों में आपके साथ वो सारी जानकारी शेयर कर रहे हैं जो फ़ायदेमंद म्यूचुअल फ़ंड निवेश करने के लिए आपको जानने की ज़रूरत है।
ख़ुद को पहचानिए
अगर हम पूरे मानव इतिहास को देखें तो ये ख़ुद को पहचानने की बात है। अपने-आप को जानने की इच्छा कई जातियों, आध्यात्म और वैज्ञानिक सोच के ज़रिए हमारी संस्कृति और परंपरा के ताने-बाने का हिस्सा सदा से रही है। पर्सनल फ़ाइनांस की दुनिया में भी ये फ़िलॉसफ़ी अहम रोल अदा करती है, यहां तक की ये आपके आर्थिक सफ़र का नतीजा भी तय कर सकती है। इसी ‘ख़ुद को पहचानने’ की प्रक्रिया को फ़ाइनांशियल एडवाइज़री इंडस्ट्री में - ‘रिस्क मैनेजमेंट’ (risk management) कहा जाता है।
इस प्रक्रिया में व्यक्ति के अलग-अलग एसेट क्लास में निवेश को लेकर उसके स्वभाव का अंदाज़ा लगाया जाता है और उसकी प्राथमिकता तय की जाती है। ये प्राथमिकता कम-से-कम उतार-चढ़ाव से लेकर (सुरक्षित), बहुत उतार-चढ़ाव वाले, मगर सबसे ज़्यादा रिटर्न देने वाले निवेश के विकल्पों के बीच कहीं भी हो सकती है। आमतौर पर इन निवेश की प्राथमिकताओं का आकलन कुछ सवालों के ज़रिए किया जाता है।
हालांकि, अगर आप अपने निवेश के सफ़र में आने वाले सभी रिस्क का आकलन करना चाहते हैं, तो इसे सरलता से कर सकते हैं। इसके लिए पहले ख़ुद से ये सवाल करें - अगर आज ही मार्केट 30 प्रतिशत गिर जाए तो आप क्या करेंगे? अब पीछे मुड़ कर देखिए कि जब ऐसा ही कुछ हुआ था तब असल में आपने क्या किया था। क्या आपकी अब की ‘सोच’ में और पहले जो आपने ‘किया’ उसमें कोई अंतर है?
तब आपने क्या किया था जब मार्केट 2008-09 में तेज़ी से 61 प्रतिशत गिर गया था? और अगर आप नए निवेशक हैं, तो आपने मार्च 2020 में क्या किया था, जब मार्केट में बड़ी गिरावट आई थी और जब कुछ ही हफ़्तों में आपका निवेश 35 प्रतिशत से ज़्यादा ग़ायब हो गया था? क्या आपने SIP की किश्तें रोक दी थीं? या अपने इक्विटी निवेश को रिडीम कर लिया था?
अगर आपने इनमें से कोई भी काम किया था, तो आप अपने बारे में चाहे कुछ भी सोचते हों, आप एक कंज़रवेटिव इन्वेस्टर हैं, जिसकी नुकसान सहने की क्षमता कम है। वहीं दूसरी तरफ़, जब मार्केट तेज़ी से गिरना शुरु हुआ, और आपने बिना किसी डर के इक्विटी में निवेश जारी रखा था, तो इक्विटी में ज़्यादा पैसा लगाने के लिए आप एक सही कैंडिडेट हैं।
यहां ये कहना भी ज़रूरी है कि कंज़रवेटिव इन्वेस्टर धीरे-धीरे अनुभवी और जानकार निवेशक बन जाते हैं। जैसे-जैसे आपको म्यूचुअल फ़ंड में निवेश का अनुभव हो जाता है, ख़ासतौर पर इक्विटी के कंज़रवेटिव-हाइब्रिड फ़ंड में छोटे उन्वेस्टमेंट के साथ, तब आप कुछ ही साल में सीख जाएंगे कि आप अपने पोर्टफ़ोलियो में इक्विटी का ज़्यादा एलोकेशन बुद्धिमानी से कैसे कर सकते हैं।
मुद्दे की बात ये है कि हर निवेश का आकलन, आपके असल व्यवहार पर आधारित होना चाहिए। असल-दुनिया की परिस्थितियों में आपको रास्ता दिखाने वाली रोशनी, आपके स्वभाव के अनुसार होनी चाहिए, न की केवल रिस्क को सहन करने के किसी बौद्धिक टेस्ट के आधार पर, जिसका आजकल काफ़ी चलन हैं। आपके रिस्क लेने की क्षमता का बौद्धिक आकलन और अपने स्वभाव को समझने की प्रैक्टिकल अप्रोच, आपकी निवेश यात्रा में, अपने पोर्टफ़ोलियो का सही आकलन करने में बहुत मदद कर सकती है।
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2. नतीजे की समझ के साथ शुरुआत करें