इमरजेंसी जरूरतों के लिए लिक्विड फंड रिकमेंड किए जाते हैं लेकिन इमरजेंसी के हालात पैदा होने तक ये लंबी अवधि के लिए निवेश बना रह सकता है। लिक्विड फंड में तीन माह से अधिक अवधि के लिए निवेश की सलाह नहीं दी जाती है। इस विरोधाभास का समाधान कैसे करें ?
-निहार मायकर
वास्तव में यहां कोई विरोधाभाष नहीं है। निवेश करते हुए आप जानते हैं कि अगर आप जानते हैं कि आपको इस रकम की जरूरत कम से कम एक साल या इससे अधिक समय तक नहीं होगी तो लिक्विड फंड निश्चित तौर पर सबसे उपयुक्त कैटैगरी नहीं है। ऐसे में आपको दूसरे डेट फंड कैटैगरीज में देखना चाहिए जो कि आपकी निवेश अवधि के लिहाज से अधिक उपयुक्त हो।
लेकिन इमरजेंसी कॉर्पस के मामले में यह ऐसी रकम है जिसकी जरूरत आपको कभी भी पड़ सकती है। ऐसे में इस मकसद के लिए रकम अलॉट करते समय आपको रकम की सुरक्षा और लिक्विडिटी पर सबसे ज्यादा गौर करना चाहिए। यह ऐसे मानक हैं जिनको लिक्विड फंड पूरा कर सकता है। निश्चित तौर पर यह रकम काफी लंबे समय तक निवेश में बनी रह सकती है और किसी को भी उम्मीद करनी चाहिए कि इमरजेंसी के हालात कभी न आएं जिससे उसे यह रकम निकालनी पड़े। लेकिन इमरजेंसी प्लानिंग इसीलिए की जाती है क्योंकि आपको नहीं पता होता है कि इमरजेंसी के हालात कब पैदा हो जाएं। तो इसनजरिए से, अगर लिक्विड फंड में रकम काफी लंबे समय तक निवेश में बनी रहती है तो यह ठीक है क्योंकि इस अलॉकेशन से आपका मकसद रिटर्न हासिल करना नहीं है। तो आपको ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि लिक्विड फंड में यह रकम निवेश में बनी रहने से आपका इसका पूरा फायदा नहीं उठा पा रहे हैं। इसका एक विकल्प और है कि आप इस रकम को अपने बैंक अकाउंट में रखे। यहां पर लिक्विड फंड से भी कम रिटर्न मिलने की संभावना काफी अधिक है।
ऐसे में मेरा सुझाव है कि आपको इस विरोधाभास को लेकर भ्रम में नहीं रहना चाहिए। आप इमरजेंसी कॉर्पस की रकम लिक्विड फंड में रखें और निवेश की अवधि की चिंता न करें।