वॉरेन बफ़ेट जिन्हें ओमाहा के ओरेकल (भविष्यवक्ता) के नाम से भी जाना जाता है, बर्कशायर हैथवे के चेयरमैन हैं। वो इतिहास के सबसे सफल निवेशकों में से गिने जाते हैं। बफ़ेट ने निवेश में अपनी शिक्षा कोलंबिया यूनिवर्सिटी के बेन ग्राहम से पाई। उनके नेतृत्व में बर्कशायर हैथवे ने 1965 से 2020 तक के सालाना रिटर्न 20 प्रतिशत की शानदार दर से हासिल किए। उनके ये रिटर्न एस. एंड पी. 500 के 10.2 प्रतिशत की दर के फ़ायदे, जिसमें डिविडेंट भी शामिल था, उससे कहीं बढ़ कर थे। यहां हम बफ़ेट की 2001 के टैरी कॉलेज में बातचीत के कुछ पहलुओं पर नज़र डाल रहे हैं (https://bit.ly/3iIBLqi)।
ईमानदारी ज़रूरी है
आज की दुनिया में जहां हर तरह की जानकारी पाना आसान है, इसीलिए इंटेलिजेंट और उत्साह से भरे लोग मिलने भी मुश्किल नहीं रह गया है। मगर वो क्या है जो बड़े विजेताओं को कम सफलता वालों से अलग करता है? इसके लिए बफ़ेट कहते हैं कि, “जब हम किसी को अपने साथ रखते हैं तो उनमें तीन खूबियां देखते हैं - इंटेलिजेंस, ज़िम्मेदारी लेने की इच्छा या उत्साह और ईमानदारी। और अगर उनके पास आखिरी खूबी नहीं है तो, पहली दो आपके लिए मारक साबित होंगीं।” और ईमानदारी ही वो खूबी है जो नारायणमूर्ति को नीरव मोदी से अलग करती है।
समझ का दायरा
बफ़ेट राय देते हैं कि निवेशकों के पास अपनी - समझ का दायरा होना चाहिए, जिसका मतलब है, किसी ख़ास सैक्टर या कंपनियों की इकॉनॉमिक्स की गहरी समझ। उनके मुताबिक, “जब मैं ये कहता हूं, तो मेरा मतलब ये नहीं है कि प्रॉडक्ट कैसा है क्या-क्या करता है, मेरा मतलब है, ये समझना कि बिज़नस का इकॉनोमिक्स अब से 10 या 20 साल में कैसा दिखेगा।” हाल के कुछ साल में डी.एच.एफ़.एल., जेट एयरवेज़ जैसे कुछ स्टॉक ने बड़ा उतार-चढ़ाव देखा और बैंक्रप्ट हुए। तो निवेशकों को अगर इन ख़ास परिस्थितियों में निवेश की जानकारी नहीं है तो उन्हें इनसे दूर रहना चाहिए और सिर्फ़ उन्हीं कंपनियों में निवेश करना चाहिए जो उनकी समझ के दायरे में आते हैं।
सनराईज़ सैक्टर का मतलब सनराईज़ रिटर्न नहीं
सनराईज़ या ग्रोथ सैक्टर की कंपनियों में पैसा निवेश करना काफ़ी आकर्षक है, मगर, बफ़ेट इसके खिलाफ़ आगाह करते हैं और इसके लिए वो ऑटोमोबाइल सैक्टर का उदाहरण देते हैं। वो कहते हैं, “20वीं सदी की शुरुआत में, आपने देखा कि ऑटो सैक्टर क्या कुछ करने जा रहा था... मगर उन 2000 ऑटो कंपनियों में से, बुनियादी तौर पर तीन ही बच पाईं, तो आप 2000 में से तीन विजेताओं को कैसे चुनेंगे? ऐसा करना आसान नहीं है।”
भारत के टेलिकॉम सैक्टर में ऐसा ही नतीजा देखने को मिल रहा है। साल 2000 में फ़ोन का इस्तेमाल करने वाले अभूतपूर्व रूप से बढ़े। इस क्षेत्र में नए-नए प्लेयर आए, जिनमें टाटा टेलिसर्विसिज़, रिलायंस कम्यूनिकेशंस आदि हैं। मगर, इस सैक्टर में अब तीन ही प्लेयर बचे हैं, जिनमें से एक का भविष्य अनिश्चित है।
शानदार बिज़नस में निवेश फ़ायदे का सौदा है
हालांकि बफ़ेट ने अपने निवेश करियर की शुरुआत ऐसी ख़राब कंपनियों से की थी जिनका वैल्युएशन बिल्कुल कम हो, मगर जल्द ही उन्हें ये समझ आ गया कि अच्छे बिज़नस में निवेश करना ज़्यादा समझदारी है। इसी विषय पर वो कहते हैं, “आप एक शानदार बिज़नस के साथ इसलिए रहना चाहते हैं, क्योंकि समय एक शानदार बिज़स का मित्र होता है, आप कंपाउंडिंग कर पाते हैं, कंपनी बिज़नस ज़्यादा बढ़ाती रहती है और आप ज़्यादा पैसा कमाते रहते हैं। वहीं, समय एक खराब बिज़नस का दुश्मन होता है।” एक निवेशक के तौर पर, हम खराब बिज़नस में निवेश करने के लालच में पड़ जाते हैं, जैसे कि डी.एच.एफ़.एल., जेट एयरवेज़ आदि। मगर, बेहतर होगा अगर हम एशियन पेंट्स्, एच.डी.एफ़.सी. बैंक और एच.यू.एल. के साथ रहें।
चूकने से बचें
स्टॉक मार्केट में, बहुत से अवसर नहीं होते जब किसी को सही कीमत पर शानदार बिज़नस करने का मौका मिले। मगर जब मिले, तो निवेशक को ये अवसर हाथ से जाने नहीं देना चाहिए। बफ़ेट समझाते हैं, “मेरी सबसे बड़ी गलतियां वो रही हैं जब मैं कुछ करने से चूक गया, न कि तब, जब मैंने कुछ गलत किया। ये चूक उन चीज़ों को ले कर हुई जिनके बारे में मैं अच्छी तरह से जानता था, और ये मेरी समझ के दायरे में थीं, मगर मैं कलम उठा कर लिखने के बजाए अपना अंगूठा चूसने में व्यस्त था।”
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