मेरी निवेश यात्रा

गिरावट के बाद भी जारी रखी एसआईपी

महामारी के प्रकोप की वजह से बाजार में गिरावट के बावजूद रमेश हतोत्‍साहित नहीं हुए

गिरावट के बाद भी जारी रखी एसआईपी

रमेश की उम्र 40 साल है। वे हैदराबाद में रहते हैं और इन्‍फॉर्मेशन टेक्‍नोलॉजी की फील्‍ड में काम कर रहे हैं। मौजूदा समय में वे सीनियर मैनेजमेंट के रोल में हैं। रमेश की दिलचस्‍पी ह्यूमन साइकोलॉजी और फाइनेंशियल मैनेजमेंट में है।

उन्‍होंने बचपन में ही चाहत और जरूरत के अंतर को समझ लिया था। रमेश कहते हैं कि यह वह समय था जब पांच पैसा भी मायने रखता था। मेरी मां मुझे दुकानदार से पांच पैसा लेने भेजती थी। यह पैसा दुकानदार पर बकाया रहता था। इससे मुझे पैसे की अहमियत समझने में मदद मिली। हालांकि हमारे पास अच्‍छी रकम थी फिर भी हम अपने खर्चो पर नियंत्रण रखते थे। मैं इस सीख को अपने बच्‍चों के साथ साझा करता रहता हूं।

रमेश प्रतिभाशाली छात्र थे। उनको सरकारी स्‍कॉलरशिप भी मिली। दसवीं के बाद उन्‍होंने इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स एंड कम्‍युनिकेशन इंजी‍यनियरिंग में पॉलीटेक्निक कोर्स में दाखिला लिया। उनका कैरियर 1996 में कम सैलरी वाली जॉब के साथ शुरू हुआ। उनको पॉलीटेक्निक के बाद अपनी आगे की पढ़ाई का खर्चा भी खुद उठाना पड़ा इसलिए वे ज्‍यादा बचत नहीं कर पाए। दो वर्ष बाद रमेश ने नौकरी बदली और 1999 में उनके पिता ने उनके लिए पीपीएफ अकाउंअ खुलवाया। रमेश याद करते हैं। मेरे पिता ने कहा कि पीपीएफ निवेश के सबसे सुरक्षित विकल्‍पों में से एक है। हालांकि वे पहले कुछ सालों तक नियमित कंट्रीब्‍यूशन नहीं कर सके।

इक्विटी का अनुभव

रमेश को 2000-01 के आसपास इक्विटी मार्केट का अनुभव मिला। रमेश ने बताया कि ऑफिस में दोस्‍तों के साथ बातचीत में पता चला कि वे स्‍टॉक मार्केट में निवेश करते हैं। इसके बाद मैंने बड़े ब्रोकर के साथ अकाउंट खुलवाया और छोटी रकम निवेश करनी शुरू कर दी और इससे मुझे मुनाफा भी हुआ। उन्‍होंने कहा कि समय के साथ मुझे पता चला कि मुझे डे ट्रेडिंग नहीं करनी चाहिए और बॉय एंड होल्‍ड स्‍ट्रैटेजी अपनानी चाहिए। कुछ खराब फैसलों की वजह से उनको थोड़ी रकम गंवानी पड़ी। रमेश कहते हैं कि कुल मिला कर सीखने के लिहाज से यह काफी अच्‍छा अनुभव था।

इसी समय उन्‍होंने म्‍युचुअल फंड में भी निवेश करना शुरू कर दिया। हालांकि उन्‍होंने सिर्फ एकमुश्‍त निवेश किया था। रमेश ने कहा कि उस समय म्‍युचुअल फंड में निवेश को लेकर मेरी ज्‍यादा दिलचस्‍पी नहीं थी। कुछ हद तक इसका कारण मेरे अंकल का प्रभाव था। उनको स्‍टॉक में निवेश को लेकर काफी ज्‍यादा भरोसा था। और वे म्‍युचुअल फंड में निवेश के खिलाफ थे। रमेश ने 2002 से पीपीएफ में भी नियमित तौर पर निवेश करना शुरू कर दिया।


फाइनेंशियल एडवाइजर की मदद


रमेश ने 2012 में नौकरी बदली। और इनकम बढ़ने के साथ उन्‍होंने अपने निवेश के बारे में प्रोफेशनल एडवाइस लेने पर विचार किया। रमेश ने कहा कि मैंने एक फाइनेंशियल प्‍लानर की मदद ली जिसने स्‍टॉक इन्‍वेस्‍टमेंट के बारे में कुछ चीजें समझने में मदद की और एसआईपी की अहमियत को भी समझाया। इसके अलावा मुझे इन्‍श्‍योरेंस कवर बढ़ाने की सलाह भी दी। फाइनेंशियल प्‍लानर की सलाह पर रमेश ने 2012 से एसआईपी को निवेश का अहम जरिया बना लिया। रमेश ने कहा कि हालांकि वे इस बात पर जोर दे रहे थे कि मुझे उनके प्‍लेटफॉर्म के जरिए निवेश करना चाहिए। लेकिन मैं ऐसा नहीं करना चाहता था। ऐसे में मैंने आगे उनकी सलाह नहीं ली।

अब रमेश वैल्‍यू रिसर्च की प्रीमियम सर्विस में अपने लिए संभावनाएं देख रहे हैं। उनका कहना है कि इस सर्विस के साथ कोई शर्त नहीं जुड़ी है। और जरूरी सलाह की पेशकश करने के साथ मुझे अपना निवेश जारी रखने की छूट देती है।

फंड चुनने में ली वैल्‍यू रिसर्च की मदद

रमेश का कहना है कि वैल्‍यू रिसर्च ने उनकी मनोदशा बदलने और फंड चुनने में मदद की। हालांकि उनको यह अच्‍छी तरह से याद नहीं है कि उनको वैल्‍यू रिसर्च के बारे में पता चला। लेकिन वे उस दिन के शुक्रगुजार हैं। रमेश कहते हैं कि वैल्‍यू रिसर्च मेरा सबसे भरोसेमंद पार्टनर है और म्‍युचुअल फंड से जुड़ी जानकारी का इकलौता सोर्स है। मुझे वैल्‍यू रिसर्च वेबसाइट पर आर्टिकल और हैंगआउट सेशन पसंद है और मैं पोर्टफोलियो ट्रैकर का भी सक्रिय तौर पर इस्‍तेमाल करता हूं।

उनके फंड में एसबीआई ब्‍लूचिप फंड, एसबीआई स्‍माल कैप फंड, इन्‍वेस्‍को इंडिया ग्रोथ आपरच्‍युनिटीज फंड, मीरे असेट इमर्जिंग ब्‍लूचिप फंड, एलएंडटी मिडकैप फंड ओर एलएंडटी इमरजिं बिजनेस फंड के डायरेक्‍ट प्‍लान शामिल हैं। उनके मुनाफे में एसआईपी का योगदान लगभग 50 फीसदी है और जरूरी सुधार के लिए वे समय समय पर पोर्टफोलियो की समीक्षा करते रहते हैं। 2012 के एसआईपी रकम की तुलना में उन्‍होंने एसआईपी में अपना कंट्रीब्‍यूशन लगभग दोगुना कर दिया है।

वे फंड चुनने के लिए अलग अलग समय में प्रदर्शन से जुड़े आंकड़ों का एनॉलिसिस करते हैं। फंड के रिटर्न की तुलना बेंचमार्क से करते हैं और पोर्टफोलियो कंपोजीशन का एनॉलिसिस करते हैं। वैल्‍यू रिसर्च स्‍टार रेटिंग के अलावा वे अपने स्‍टॉक और फंड होल्डिंग में ओवरलैप चेक करते हैं।

रमेश कहते हैं कि समान कैटेगरी के दो फंड में अगर ओवरलैप 30 फीसदी से अधिक है तो मैं इसे खतरे के तौर पर लेता हूं। इसके अलावा मैं हर छह माह में पोर्टफोलियो ओवरलैप देखता हूं या चेक करता हूं कि कोई बड़ा बदलाव तो नहीं हुआ है। इससे उनको सही मायने में डायवर्सीफिकेशन हासिल करने में मदद मिलती है।

स्‍टॉक चुनते हुए वे बिजनेस, मैनेजमेंट की विश्‍वसनीयता, कंपनी की लंबी अवधि की संभावनाओं आदि का आंकलन करते हैं। रमेश कहते हैं कि यह तय करना आसान नहीं होता है कि क्‍या मौजूदा कीमत बाजार में एंटर करने के लिए सही कीमत है। ऐसे में मैं अलग अलग समय पर छोटी छोटी खरीदारी करता हूं।

असेट अलॉकेशन

आज रमेश के ओवरआल अलॉकेशन में 50-60 फीसदी इक्विटी है। इसमें म्‍युचुअल फंड और स्‍टॉक्‍स शामिल हैं। 30-35 फीसदी डेट और 15-20 फीसदी गोल्‍ड, एनपीएस, आदि शामिल हैं। उनको डेट एक्‍सपोजर प्रमुख तौर पर ईपीएफ, पीपीएफ, सुकन्‍या समृद्धि योजना, कुछ एफडी और कुछ डेट फंड में बंटा हुआ है।

लाइफ इन्‍श्‍योरेंस के लिए उनके पास दो टर्म प्‍लान हैं। इन दोनों का कंबांइड कवर लगभग 1.5 करोड़ रुपए है। रमेश के पास अपना खुद खरीदा हुआ और कंपनी की ओर से मुहैया कराया गया हेल्‍थ कवर है। इसके अलावा उन्‍होंने होम इन्‍श्‍योरेंस और एक्‍सीडेंटल इन्‍श्‍योरेंस भी लिया हुआ है। हालांकि वे यूलिप के फैन नहीं हैं लेकिन 2006 में उन्‍होंने बहुत ज्‍यादा सोच विचार किए बिना एक यूलिप खरीदा था। बाद में उनको यूलिप की जटिलता समझ में आ गई और इसके बाद उन्‍होंने किसी और यूलिप में निवेश नहीं किया।

रमेश अपने गोल के बारे में बताते हैं कि मैंने अपने कई गोल के लिए जरूरी रकम का लगभग 50 फीसदी जुटा लिया है। मैं अपने खर्चो पर अंकुश रखना जारी रखूंगा और वैल्‍यू रिसर्च की मदद से समझदारी के साथ निवेश करना जारी रखूंगा। मैं यह भी प्रार्थना करूंगा कि महंगाई मेरी रकम को उससे ज्‍यादा नुकसान न पहुंचाए जितनी मैंने प्‍लानिंग की है।


सीखा यह सबक

रमेश महसूस करते हैं कि एसआईपी के जरिए देर से निवेश शुरू करना सही फैसला नहीं था। अब कोविड के बीच भी रमेश ने इसे जारी रखने का फैसला किया। वे अपने भरोसे के लिए 2008 की बड़ी गिरावट को श्रेय देते हैं। रमेश का कहना है कि मैं बाजार में गिरावट और फिर उछाल कुछ सालों के बाद देखी। उस समय में उतना निवेश नहीं कर पाया जितना करना चाहिए था। अब मैंने पोर्टफोलियो वैल्‍यू में थोड़ी गिरावट के बाद भी एसआईपी में निवेश और छोटी रकम के साथ स्‍टॉक्‍स की खरीद जारी रखी है। सफल निवेशकों जैसे वारेन बफेट के बारे में पढ़ने से निवेश को लेकर जो समझ उन्‍होंने हासिल की है शायद उनके इस फैसले की यही वजह है।

अगर आप रमेश से उनकी निवेश यात्रा को संक्षेप में बताने के लिए कहें तो रमेश बताते हैं कि मेरी राय में पौधा लगा दिया गया है और यह पेड़ बन कर फल देना शुरू करे। इसके लिए मुझे इंतजार करना होगा। अ‍निश्चित मौसम फलों की संख्‍या को प्रभावित कर सकता है लेकिन पेड़ इस अनिश्चितता का सामना कर सकता है। रमेश आगे कहते हैं कि पेड़ लंबा और मजबूत बने इसके लिए मैं पौधे की देखभाल करता रहूंगा। मैं उम्‍मीद करता हूं कि मैं इस पेड़ के नीचे आराम कर सकूंगा। मैं इसके फल खाउंगा और दूसरों को भी दूंगा। हालांकि मैं अपनी निवेश यात्रा में और पेड़ लगा सकता था। फिर भी मैं महसूस करता हूं जो बीत गया वह बीत गया।

रमेश से हम क्‍या सीख सकते हैं


-अपने खर्चे नियंत्रण में रखें
-अपने बच्‍चों को पैसे की कीमत बताएं। उनके लिए खुद उदाहर बनें।
-इक्विटी में एकमुश्‍त नहीं एसआईपी के जरिए निवेश करें।
-निवेश से पहले गहराई से रिसर्च करें।
-जरूरी सुधार के लिए समय समय पर अपने पोर्टफोलियो की समीक्षा करें।


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