₹1 लाख से ज़्यादा के इक्विटी मुनाफ़े पर 10 फ़ीसदी लॉन्ग-टर्म कैपिटल-गेन (LTCG) टैक्स लगाने का नियम 2019 में बनाया गया था. ज़ाहिर सी बात है, ये टैक्स देने वालों को पसंद नहीं आया.
हालांकि, जब भी कोई सरकारी पॉलिसी परेशानियां पैदा करती है, तो उससे निपटने के नए तरीक़े भी खड़े हो जाते हैं. LTCG का टैक्स नियम आने के बाद से ही, कुछ सलाहकार LTCG टैक्स से बचने के लिए टैक्स-हार्वेस्टिंग का ढोल पीटते रहे हैं.
इस लेख में हम आपको बता रहे हैं कि टैक्स-हार्वेस्टिंग क्या है और क्या ये वाकई आपके लिए फ़ायदेमंद है.
टैक्स-हार्वेस्टिंग क्या है?
टैक्स-हार्वेस्टिंग आपके कुल LTCG टैक्स को कम करने के लिए ₹1 लाख की टैक्स-फ़्री विंडो का इस्तेमाल करने के बारे में है. यानी, आप अपने इक्विटी निवेश का एक हिस्सा (जो एक साल से ज़्यादा पुराना यानि लॉन्ग टर्म हो और जिस पर एक वित्त वर्ष में मुनाफ़ा ₹1 लाख या इससे कम हो) निकालें और इसे दोबारा निवेश कर लें. ऐसा करने से, आपका कुल निवेश उतना ही रहता है, पर इससे हर साल ₹1 लाख तक के लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन पर टैक्स बच जाता है. एक तरह से, आपसे ये कहा जाता है कि अगर आप अपना सारा निवेश बेच देंगे, तो आपकी कुल टैक्स देनदारी कम हो जाएगी.
आइये, टैक्स-हार्वेस्टिंग को एक उदाहरण के ज़रिए समझें. मान लें कि एक निवेशक ने मार्च 2001 से मार्च 2018 तक निफ़्टी 50 TRI इंडेक्स फ़ंड में हर महीने ₹5,000 का निवेश किया है. ये मान लेते हैं कि हर साल मार्च के महीने में एक साथ ₹60,000 निवेश किए गए.
टैक्स-हार्वेस्टिंग कितनी फ़ायदेमंद है?
टैक्स-हार्वेस्टिंग से पोस्ट-टैक्स कॉर्पस में बढ़ोतरी होती तो है, पर इससे जुड़ी दिक्कतों के मुक़ाबले ये फ़ायदा काफ़ी कम होता है. नीचे दी गई टेबिल और ग्राफ़ 2001 से 2018 तक हरेक FY की शुरुआत में किए गए ₹60,000 के निवेश पर आधारित है. निवेश को आख़िरकार मार्च 2019 में बेच दिया गया.
टैक्स- हार्वेस्टिंग के बिना | टैक्स- हार्वेस्टिंग के साथ | ||
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निवेश की गई रक़म (₹) | 10,80,000 | 10,80,000 | |
निवेश की वर्तमान क़ीमत (₹) | 51,09,275 | 51,09,275 | |
LTCG (₹) | 40,29,275 | 24,90,425 | |
टैक्स भुगतान (₹) | 4,02,927 | 2,49,043 | |
नेट रिडेम्शन अमाउंट (₹) | 47,06,347 | 48,60,232 | |
टैक्स- हार्वेस्टिंग से टैक्स बचत (₹) | 0 | 1,53,885 | |
नेट रिडेम्सन अमाउंट के % के रूप में बचाया गया टैक्स | 0 | 3.17 | |
रिटर्न रेट (%) | 14.04 | 14.33 | |
कुल निवेश | निवेश की वैल्यू | टैक्स-हार्वेस्टिंग के बिना टैक्सेबल LTCG | टैक्स-हार्वेस्टिंग के साथ टैक्सेबल LTCG |
10,80,000 | 51,09,275 | 40,29,275 | 24,90,425 |
नोट: दिए गए सभी आंकड़े संबंधित FY के आख़िर के हैं. हरेक FY की शुरुआत में निवेश किया गया है. टैक्स हार्वेस्टिंग वाले मामले में, हरेक साल के आख़िर में रिडेम्सन किया गया है. इसलिए, सभी मामलों में सिर्फ़ LTCG ही लागू है. चार्ट और ग्राफ़ में, ₹1 लाख की सीमा को ली पूरी अवधि के लिए LTCG टैक्स से छूट के तौर पर माना गया है और कैपिटल गेन की ग्रैंडफ़ादरिंग को शामिल नहीं किया गया है. |
ये मानते हुए कि अभी का टैक्स नियम हमेशा से ही लागू था, आइए निवेशक के टैक्स ख़र्च को दो नज़रियों से देखें: (1) निवेशक ऊपर बताई गई अवधि के दौरान निवेश जारी रखता है और टैक्स-हार्वेस्टिंग से बचता है और (2) निवेशक सक्रिय रूप से हर साल टैक्स-हार्वेस्टिंग करता है.
दी गई टेबिल में आप दोनों मामलों में नतीजे देख सकते है (अगर निवेशक मार्च 2019 में आख़िरकार अपना सारा निवेश बेच दें). जैसा कि आप देख सकते हैं, टैक्स-हार्वेस्टिंग अपनाने पर लगभग ₹1,53,885 (₹48,60,232 में से ₹47,06,347 घटाने पर) का ज़्यादा मुनाफ़ा हुआ है.
भले ही ये रक़म आपको ज़्यादा लग रही हो, पर अगर आप होल्डिंग पीरियड के लिए एडजस्ट करें, तो दोनों मामलों के इंटरनल रिटर्न रेट में सिर्फ़ 0.29 फ़ीसदी का ही अंतर है, जो बहुत मामूली है.
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टैक्स-हार्वेस्टिंग के फ़ायदे का दायरा कम क्यों हैं?
ऐसा इसलिए है क्योंकि आप कितनी भी रक़म निवेश करें या उस निवेश की वैल्यू कितनी ही क्यों न बढ़ जाए, पर टैक्स-हार्वेस्टिंग के ज़रिए की गई बचत का दायरा हमेशा सीमित रहेगा. एक साल में एक निवेशक ₹1,00,000 (LTCG टैक्स से छूट की सीमा) पर ज़्यादा से ज़्यादा 10 फ़ीसदी (LTCG टैक्स रेट) टैक्स ही बचा सकता है, यानी ₹10,000. इसका मतलब है कि आप ज़्यादा से ज़्यादा इतनी बचत कर पाएंगे: ₹10,000 x निवेश की कुल अवधि (साल में). उदाहरण के लिए, 25 साल की अवधि में आप ज़्यादा से ज़्यादा ₹2.5 लाख (₹10,000 x 25) या इससे कम की ही बचत कर पाएंगे.
दूसरी परेशानियां क्या हैं?
टैक्स हार्वेस्टिंग में कई परेशानियां सामने आती हैं. जब आप पुरानी यूनिट्स को टैक्स हार्वेस्टिंग के लिए रिडीम करते हैं, तो आपको तुरंत ही इक्विटी फ़ंड में दोबारा निवेश करना पड़ता है ताकि निवेश को जारी रखा जा सके. इसके लिए, आपको अपने बैंक एकाउंट में बड़ी रक़म रखनी पड़ेगी ताकि आप दोबारा निवेश कर सकें. क्योंकि, पुरानी यूनिट्स को बेचने पर जो पैसा आपके एकाउंट में आता है उसमें तीन दिन (विड्राल रिक्वेस्ट वाले दिन को मिलाकर 3 क़ारोबारी दिन) लग जाते हैं. अगर कोई निवेशक दोबारा निवेश के लिए इस रक़म के एकाउंट में आने का इंतज़ार करेगा, तो इसी बीच NAV में उछाल आने पर वो फ़ायदा उठाने का एक बड़ा मौक़ा गंवा सकता है. इसके अलावा, आपको हरेक वित्त वर्ष में अपने निवेश का कुछ हिस्सा बीच-बीच में बेचना भी पड़ता है. इससे कई निवेशकों को बार-बार बेचने की झंझट भी झेलना पड़ता है.
इसलिए, हमें नहीं लगता कि टैक्स हार्वेस्टिंग से होने वाले मामूली फ़ायदे के लिए इतनी परेशानी उठानी चाहिए. ऊपर दिए गए उदाहरण में निवेशक ने नियमित तौर पर छोटी-छोटी रक़म निवेश की और कुल जमा पूंजी के लगभग 3.17 फ़ीसदी बचत की, और ये काम काफ़ी लंबी अवधि में हुआ. एक बड़े निवेशक के लिए तो ऐसी बचत और भी कम हो जाती है, जिससे पता चलता है कि टैक्स-हार्वेस्टिंग एक तरह से बेअसर और झंझट वाली चीज़ है.
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