एक दशक से भी ज़्यादा समय हुआ, जब म्यूचुअल फ़ंड रेग्युलेटर ने सभी फ़ंड्स को डायरेक्ट-टू-कस्टमर का विकल्प देने के लिए मजबूर किया, और अब ज़्यादातर जानकार निवेशक डायरेक्ट फ़ंड के फ़ायदे समझ चुके हैं. अब तक वे जान चुके हैं कि सभी फ़ंड्स में 'मैन्युफ़ैक्चरर से सीधे' ख़रीदने वाला मॉडल होता है, जिसके तहत निवेशक हरेक फ़ंड जैसा एक 'डायरेक्ट' फ़ंड पा सकते हैं. डायरेक्ट फ़ंड इस मायने में सस्ते होते हैं कि म्यूचुअल फ़ंड कंपनी इन्हें मैनेज करने पर कम ख़र्च करती है क्योंकि उसे 'रिटेल सेलर' को भुगतान नहीं करना पड़ता.
तो, सस्ता होने का मतलब हुआ ज़्यादा रिटर्न. डायरेक्ट फ़ंड में कितना ज़्यादा रिटर्न मिलता है? सालाना रक़म के तौर पर तो ये एक छोटी रक़म ही बनती है, लेकिन जैसे-जैसे निवेश के साल बीतते हैं, इसमें कंपाउंडिंग होने से ये बचत बढ़ जाती है. तो, क्या इसका मतलब है कि डायरेक्ट फ़ंड सभी निवेशकों के लिए एक स्वाभाविक विकल्प होना चाहिए? बिल्कुल नहीं. डायरेक्ट और रेगुलर प्लान के बीच रिटर्न का अंतर सालाना 1 प्रतिशत या उससे कुछ ज़्यादा का है, लेकिन इसे बहुत ज़्यादा नहीं कहा जा सकता. कोई इसे डिस्ट्रीब्यूटर की सेवाओं के लिए भुगतान किए गए पैसे के तौर पर देख सकता है क्योंकि असल में ये ऐसा ही है. हमेशा सबसे सस्ता विकल्प चुनने की जल्दबाज़ी कई निवेशकों के लिए अच्छी नहीं होगी, सिवाय उन जानकार लोगों के जो अपना निवेश ख़ुद करते हैं.
म्यूचुअल फ़ंड आपके लिए जो कुछ भी करता है, उसका भुगतान आपके निवेश से काटे गए पैसे से होता है. इक्विटी फ़ंड के लिए, फ़ंड कंपनियां अधिकतम 2.25 प्रतिशत से लेकर न्यूनतम 1.05 प्रतिशत तक के स्लैब की फ़ीस लेती हैं. डिस्ट्रीब्यूटर को दी जाने वाली GST को शामिल करने पर ये ख़र्च काफ़ी बढ़ जाते हैं.
हालांकि इसकी दर सालाना आधार पर दिखाई जाती है, लेकिन हर दिन थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पैसा काटा जाता है ताकि सालाना फ़ीस पूरी राशि में जुड़ जाए. ये पैसा फ़ंड कंपनी को जाता है, जिसमें से कुछ अंततः उस फ़ंड डिस्ट्रीब्यूटर को जाता है जिसने आपको फ़ंड बेचा था. हालांकि ये बहस का विषय है कि म्यूचुअल फ़ंड बहुत ज़्यादा फ़ीस लेते हैं, लेकिन किसी भी म्यूचुअल फ़ंड में सभी निवेशकों के लिए कटौती एक जैसी होती है.
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डायरेक्ट और रेग्युलर निवेश के बीच चुनाव को समझने के लिए, आइए सबसे पहले देखें कि सलाहकार की आदर्श भूमिका क्या हो सकती है. एक पुरानी अमेरिकी फाइनेंस कंपनी द्वारा बनाई गई लिस्ट में, यहां बताया गया है कि सलाहकार को क्या करना चाहिए:
1. विश्वास या विश्वसनीयता का विकास
2. लक्ष्य की प्लानिंग
3. पोर्टफ़ोलियो बनाना
4. पोर्टफ़ोलियो रीबैलेंसिंग
5. चल रहे गोल की प्लानिंग और रिस्क एडजस्टमेंट
6. जब मार्केट नीचे जा रहा हो, तो परामर्श देना भी अहम है.
भले ही ये एक मुश्किल काम लगे, लेकिन ज़्यादातर निवेशकों को इन सभी सेवाओं में से कुछ की ज़रूरत होती है. शुरुआती निवेशकों के लेन-देन को आसान बनाने के लिए सरलता से सुविधा देने वाली सेवाओं की भी ज़रूरत होती है.
इससे भी बडी बात ये है कि नए निवेशकों को निवेश की शुरुआत करने के लिए किसी की ज़रूरत होती है. बैंक में टर्म डिपॉज़िट के उलट, म्यूचुअल फ़ंड निवेश केवल उन सेवाओं का अपने-आप होने वाला विस्तार नहीं है जो आपको पहले से मिल रही हैं. लागत के अंतिम हिस्से पर बहुत ज़्यादा ध्यान केंद्रित करने से हो सकता है कि आप असल में कभी शुरुआत ही न कर पाएं.
तो, किस तरह का निवेशक डाइरेक्ट इन्वेस्टमेंट करने के लिए सही होगा? उसे ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो समझता हो कि अलग-अलग तरह के निवेश की ज़रूरतों के लिए किस तरह के म्यूचुअल फ़ंड उसे चुनने चाहिए. उसे अपने-आप इन पर रिसर्च करने और निवेश करने वाले फ़ंड्स की लिस्ट बनाने में सक्षम होना चाहिए, और फिर बिना किसी मध्यस्थ (इंटरमीडियेरी) की मदद के असल में निवेश करने क़ाबिल होना चाहिए.
हां, अगर निवेश शुरू करने के बाद, बाज़ार में गिरावट आए और निवेश की वैल्यू कम होती दिखाई दे, तो किसी बाहरी स्रोत से निवेशक को सही रास्ते पर बने रहने की सलाह मदद के तौर पर मिल सकती है. यानी, वो अपने लिए सब कुछ कर सके जो किसी सलाहकार का काम होता है.
क्या आप इस तरह के निवेश हैं? अगर ऐसा है, तो आप निश्चित ही डाइरेक्ट फ़ंड्स में निवेश से कुछ ज़्यादा रिटर्न कमा सकते हैं. लेकिन अगर आप नए हैं और निवेश का अनुभव नहीं है, तो रेग्युलर प्लान आपके लिए बेहतर हो सकता है. मगर हां, क्या सही तरह का सलाहकार या एडवाइज़र तलाशना आसान है, लेकिन फिर ये सवाल तो एक अलग ही कहानी है.
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