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'सिग्नल' और 'नॉयस' यानी संकेत और शोर इलेक्ट्रॉनिक-इंजीनियरिंग की शब्दावली का हिस्सा हैं जो अब आम इस्तेमाल में आने लगे है, जिसमें निवेश की रिसर्च भी शामिल है. सिग्नल-टू-नॉयस रेशियो पर विकिपीडिया का कुछ इस तरह कहना है:
साइंस और टेक्नोलॉजी में सिगनल-टू-नॉयस रेशियो (Signal-to-noise ratio ; SNR या S/N) का इस्तेमाल चुने हुए सिग्नल से पृष्ठभूमि के शोर को कम करने के स्तर को मापने के लिए किया जाता है ... कभी-कभी अनौपचारिक रूप से किसी बातचीत या आदान-प्रदान में उपयोगी जानकारी और ग़लत या अप्रासंगिक डेटा के रेशियो को संदर्भित करने के लिए इस्तेमाल होता है. उदाहरण के लिए, ऑनलाइन चर्चा के मंचों और दूसरी तरह की ऑनलाइन कम्यूनिटी में, विषय से हटकर की जाने वाली पोस्ट और स्पैम को "शोर" या नॉयस माना जाता है जो उचित चर्चा के "सिग्नल" या संकेत में रुकावट डालता है.
इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का इस्तेमाल करते समय, आप संगीत के पीछे एक धीरे-धीरे लगातार सुनाई देने वाला शोर सुन सकते हैं. निवेश की रिसर्च में, आप इस शोर को न्यूज़, विचार, डेटा और अनालेसिस के तौर पर सुनते हैं जो सुनने में तो प्रासंगिक लगते हैं लेकिन असल में अप्रासंगिक या भ्रामक होते हैं. वास्तविक सिग्नल-टू-नॉयस रेशियो निवेश में बहुत, बहुत ख़राब होता है. ऑडियो उपकरणों में, सिग्नल-टू-नॉयस रेशियो आमतौर पर 1 प्रतिशत से बहुत कम होता है, जिसका मतलब है कि आप जो सुनते हैं वो लगभग प्योर, बिना मिलावट वाला सिग्नल है. इन्वेस्टमेंट अनालेसिस (बिज़नस और आर्थिक मामलों में, आमतौर पर) में, आप भाग्यशाली होंगे अगर आपके पास 90 प्रतिशत से कम शोर हो.
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इसके कई कारण हैं, उनमें से कुछ प्रामाणिक हैं और कुछ कम प्रामाणिक. हालांकि, निवेश के अनालेसिस को जो अलग बनाता है वो ये है कि अगर इसे उपयोगी होना है, तो हमें पूर्वानुमान और भविष्यवाणियां करने के लिए सिग्नल का इस्तेमाल करने की ज़रूरत है. आख़िरकार, अगर आप पिछले फ़ाइनेंशियल डेटा, निकाला गया रेशियो और हरेक लिस्टिड कंपनी के स्टॉक का प्राइस चाहते हैं, तो आप उन्हें ज़ीरो नॉयस या शून्य शोर के साथ पा सकते हैं. ये शोर तब शुरू होता है जब लोग इनका इस्तेमाल ये पता लगाने की कोशिश करने के लिए करते हैं कि भविष्य में उनका क्या मतलब होगा.
वास्तविक दुनिया के डेटा और सूचना में शोर की सार्वभौमिक विशेषताओं में से एक ये है कि जितना ज़्यादा आप इसे क़रीब से देखते हैं, इसका असर उतना ही बुरा होता है. अगर आप मिनट-दर-मिनट स्टॉक की क़ीमतों को देखते हैं, तो ये लगभग पूरा का पूरा ही शोर है. उससे कोई रुझान निकालना असंभव है. हर रोज़ क़ीमतें देखना भी लगभग उतना ही ख़राब होता है. मासिक क़ीमतें थोड़ी बेहतर हैं, तिमाही क़ीमतें और भी बेहतर हैं, और वार्षिक क़ीमतें उससे भी बेहतर होती हैं. पूरी बात का निचोड़ इस तरह समझना आसान है.
लंबी अवधि में स्टॉक की क़ीमत या इंडेक्स की बढ़त के बारे में सोचें. मिसाल के तौर पर, सेंसेक्स पिछले बीस साल में 1,410 प्रतिशत बढ़ा है, जो 30 सितंबर 2004 को 5,584 से बढ़कर 30 सितंबर 2024 को 84,300 हो गया है. ये 14.5 प्रतिशत की सालाना दर है. इन बीस सालों के दौरान, अगर आपने हर दिन सेंसेक्स में बदलाव को देखा होता, तो आपको इस बात का कोई अंदाज़ा नहीं होता कि लंबे समय में इसके बढ़ने की दर क्या थी. इस दौरान, 4,962 कारोबारी दिन थे, जिनमें से 2,278 नेगेटिव और बाक़ी पॉज़िटिव थे. हर रोज़ के बदलावों के पैटर्न में, जब आप अगले दिन देखते हैं कि बाज़ार कहां जा रहा है, तो इसका क्वांटिटेटिव या मात्रात्मक अर्थ बहुत कम होता है.
अब, आइए सालाना प्रतिशत के बदलावों को देखें. ये सीरीज़ इस तरह है: 54.6, 44.2, 38.8, -25.6, 33.2, 17.2, -18.0, 14.0, 3.3, 37.4, -1.8, 6.5, 12.3, 15.8, 6.7, -1.6, 55.3, -2.9, 14.6, 28.1. ये कुछ हद तक भटक रहा है, फिर भी इसमें दिशा का बोध बेहतर है. और यहां पांच-साल की सीरीज़ है, जिसे सालाना रिटर्न के तौर पर व्यक्त किया गया है: 25.1, 9.2, 7.7, 16.9. केवल पांच-साल की सीरीज़ में ही आपको कुछ समझ आती है कि सेंसेक्स असल में कहां जा रहा है.
अगर आप पांच साल में केवल एक बार मार्केट को देखें, तो आपको ये चिंता नहीं होगी कि छोटी अवधि में उसमें क्या-क्या हुआ. आपके लिए शोर लगभग होगा ही नहीं, केवल सिग्नल होगा. ये शोरगुल वाली जगह पर स्पीकर लगाकर म्यूज़िक सुनने और नॉयस-कैंसिलेनशन वाले हेडफ़ोन के ज़रिए म्यूज़िक सुनने के बीच का फ़र्क़ है. यही एक अच्छा इक्विटी निवेशक होने का मनोवैज्ञानिक आधार है, और यही वजह है कि हम कभी भी इस बात पर ध्यान नहीं देते कि छोटी अवधि में शेयरों में क्या हो रहा है.
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