म्यूचुअल फ़ंड में निवेश के लिए आपको किन-किन चीज़ों की ज़रूरत पड़ती है?
How to buy a Mutual Fund: किसी म्यूचुअल फ़ंड स्कीम में निवेश करने के लिए आपके पास PAN और बैंक अकाउंट होना चाहिए, और आपकी KYC (नो योर कस्टमर) भी पूरी होनी चाहिए. और ये बैंक अकाउंट मैग्नेटिक इंक कैरेक्टर रिकॉग्निशन कोड (MICR) और इंडियन फ़ाइनेंशियल सिस्टम कोड (IFSC) डिटेल के साथ निवेशक के नाम पर होना चाहिए. इन जानकारियों का उल्लेख चेक बुक में होता है और किसी एजेंट या डिस्ट्रीब्यूटर द्वारा कैंसिल बैंक चेक मांगना बहुत ही आम बात है.
KYC की प्रक्रिया कैसे पूरी करें?
SEBI द्वारा दिए गए दिशा-निर्देशों के तहत, KYC की प्रक्रिया पूरी करनी ज़रूरी है. मार्केट रेगुलेटर SEBI के ये दिशा-निर्देश प्रिवेंशन ऑफ़ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट, 2002 (PMLA) का अनुपालन करते हैं. इन दिशा-निर्देशों में समय-समय पर बदलाव होता रहता है.
KYC प्रक्रिया निवेशकों के अनुकूल बनाई गई है. ये प्रक्रिया सिक्योरिटीज मार्केट में SEBI द्वारा रेगुलेटेड अलग-अलग इंटरमीडियरी जैसे म्यूचुअल फ़ंड, पोर्टफ़ोलियो मैनेजर, डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट्स, स्टॉक ब्रोकर्स, वेंचर कैपिटल फ़ंड, कलेक्टिव इन्वेस्टमेंट स्कीम (CIS) और अन्य के लिए एक जैसी हैं. इसलिए, सिर्फ़ एक बार KYC की प्रक्रिया कर ली जाए तो इन इंटरमीडियरी से डील करते वक़्त ये प्रक्रिया दोहरानी नहीं पड़ती और निवेशकों का काम आसान हो जाता है.
KYC एप्लीकेशन के साथ इन डॉक्युमेंट्स को भी जमा करना पड़ता है-
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हाल की पासपोर्ट साइज़ फोटो
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पहचान का प्रमाण जैसे PAN कार्ड या UID (आधार) या पासपोर्ट या मतदाता पहचान पत्र या ड्राइविंग लाइसेंस की कॉपी
- निवास प्रमाण जैसे पासपोर्ट या ड्राइविंग लाइसेंस या राशन कार्ड या निवास का रजिस्टर्ड लीज/सेल एग्रीमेंट या लेटेस्ट बैंक अकाउंट स्टेटमेंट या पासबुक या लेटेस्ट टेलीफोन बिल (केवल लैंडलाइन) या हालिया बिजली का बिल या हालिया गैस का बिल, जो कि तीन महीने से ज़्यादा पुराने न हों.
आपको इन डॉक्युमेंट्स की ख़ुद से सत्यापित की हुई कॉपी और वेरिफिकेशन के लिए ओरिजिनल डॉक्युमेंट्स जमा करने होते हैं. यदि वेरिफिकेशन के लिए ओरिजिनल डॉक्युमेंट्स उपलब्ध नहीं हैं, तो डॉक्युमेंट्स की कॉपी अधिकृत संस्थाओं द्वारा सही तरीके से सत्यापित होना ज़रूरी है. यदि आप इन ज़रूरी डॉक्युमेंट्स को जमा नहीं करते हैं, तो KYC प्रक्रिया पूरी होने में देरी हो सकती है.
भारत के निवासी अपने डॉक्युमेंट्स इन लोगों से सत्यापित करा सकते हैं: नोटरी, राजपत्रित अधिकारी, शेड्यूल कमर्शियल या को-ऑपरेटिव बैंक या मल्टीनेशनल फॉरेन बैंक के मैनेजर. ये न भूलें कि कॉपी पर इनका नाम, पदनाम और मुहर लगी हुई हो.
NRIs अपने डॉक्युमेंट्स इन लोगों से सत्यापित करा सकते हैं: भारत में रजिस्टर्ड शेड्यूल कमर्शियल बैंकों की विदेशी शाखाओं के अधिकृत अधिकारी, नोटरी पब्लिक, कोर्ट मजिस्ट्रेट, न्यायाधीश, उस देश में मौज़ूद भारतीय दूतावास (जिस देश में NRI रहता है).
अपना KYC स्टेटस कैसे जांचें?
How to check KYC status: मौज़ूदा निवेशक और वे लोग जिन्होंने आवेदन जमा कर दिए हैं, अपने PAN नंबर का इस्तेमाल करके इन KYC रजिस्ट्रेशन एजेंसी के ज़रिये अपना KYC स्टेटस पता कर सकते हैं:
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https://www.cvlkra.com/
- https://kra.ndml.in/
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https://www.nsekra.com/
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https://camskra.com/
- https://www.karvykra.com/
म्यूचुअल फ़ंड एप्लीकेशन फ़ॉर्म
किसी भी म्यूचुअल फ़ंड स्कीम का एक फ़ॉर्म होता है जिसे निवेशकों को भरना होता है. यदि आप
सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान
(SIP) में निवेश करना चाहते हैं, तो आपको दो फ़ॉर्म भरने होते हैं: पहला फ़ॉर्म म्यूचुअल फ़ंड में अकाउंट खोलने के लिए और दूसरा फ़ॉर्म SIP फ्रीक्वेंसी, मासिक किश्त की रक़म और
SIP निवेश की तारीख
आदि चुनने के लिए.
नाबालिग के नाम पर निवेश
यदि आप किसी नाबालिग के नाम पर निवेश करना चाहते हैं, तो आपको एक थर्ड-पार्टी डिक्लेरेशन फ़ॉर्म भरना होता है.
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केवल माता-पिता को ही अपने बच्चों के नाम पर निवेश करने की अनुमति होती है.
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बच्चे के साथ माता-पिता का संबंध साबित करने वाले डाक्युमेंट्स (पासपोर्ट, जन्म प्रमाण पत्र या कोई अन्य ID प्रूफ) पेश करना ज़रूरी है.
- यदि किसी बच्चे के माता-पिता जीवित नहीं हैं, तो उस बच्चे के नाम पर अदालत द्वारा नियुक्त अभिभावक निवेश कर सकता है, बशर्ते उस अभिभावक और नाबालिग के बीच संबंध साबित करने के लिए ज़रूरी डॉक्यूमेंट प्रूफ पेश किया जाए.
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ग्रोथ, डिविडेंड या डिविडेंड री-इन्वेस्टमेंट
म्यूचुअल फ़ंड में निवेश करते समय आपके पास तीन विकल्प उपलब्ध होते हैं जिनमें आप निवेश कर सकते हैं: ग्रोथ, डिविडेंड और डिविडेंड री-इन्वेस्टमेंट. इन्वेस्टमेंट फ़ॉर्म भरते समय तीन विकल्पों में से एक का चयन करना होता है. हालांकि, अगर आप कोई विकल्प नहीं चुनते हैं, तो फ़ंड हाउस उस डिफ़ॉल्ट विकल्प का चयन कर लेता है जिसका उल्लेख उसके स्कीम इंफॉर्मेशन डॉक्यूमेंट (SID) में होता है. ये डिफ़ॉल्ट विकल्प आम तौर पर 'ग्रोथ' होता है. निवेशक बाद में अपनी इच्छा और सुविधा के अनुसार इस विकल्प को बदल सकते हैं.
ग्रोथ: इस विकल्प में, स्कीम कोई डिविडेंड नहीं देती है, पर ये ग्रो होती रहती है. इसलिए, एक यूनिट होल्डर के रूप में आपको कुछ भी नहीं मिलता है, और आपके पास स्कीम में री-इन्वेस्ट करने के लिए कुछ भी नहीं बचता है. फ़ंड होल्डिंग्स को बेचने के बाद मिले लाभ को स्कीम में वापस निवेश कर दिया जाता है, जिसे स्कीम की NAV (नेट एसेट वैल्यू) में देखा जा सकता है. ये वैल्यू समय के साथ बढ़ती रहती है. हालांकि, निवेशक के पास मौज़ूद यूनिट्स की संख्या वही रहती है.
डिविडेंड का भुगतान: इस विकल्प में, म्यूचुअल फ़ंड स्कीम से हुए मुनाफ़े का आपको भुगतान किया जाता है. डेट फ़ंड के मामले में ये भुगतान रेगुलर इंटरवल में मासिक, तिमाही, अर्ध-वार्षिक या वार्षिक तौर पर किया जाता है, जबकि इक्विटी फ़ंड के मामले में कभी भी भुगतान किया जा सकता है. लिक्विड फ़ंड के मामले में दैनिक या साप्ताहिक डिविडेंड का विकल्प भी उपलब्ध होता है. हालांकि, आपको पता होना चाहिए कि डिविडेंड की कोई गारंटी नहीं होती है, जिसका मतलब है कि कोई फ़ंड स्कीम डिविडेंड देने के लिए बाध्य नहीं होती है; कोई फ़ंड स्कीम डिविडेंड दे भी सकती है और नहीं भी.
डिविडेंड री-इन्वेस्टमेंट: इस विकल्प में, आपको डिविडेंड देने के बजाय इसे आपकी ओर से अधिक यूनिट्स खरीदकर फ़ंड स्कीम में ही री-इन्वेस्ट कर दिया जाता है.
तीनों विकल्पों में से हर एक के अपने-अपने फ़ायदे और नुक़सान हैं, जो आपकी ज़रूरतों के हिसाब से अलग-अलग तरह के हो सकते हैं. निवेश पर हुए मुनाफ़ों का इस्तेमाल और इन पर लगने वाले टैक्स से ही इन विकल्पों में अंतर नज़र आता है. अगर एक टाइम पीरियड में किसी निवेश से मिलने वाले रिटर्न को देखा जाए तो तीनों विकल्पों में कोई भी अंतर नहीं है. निवेश पर लगने वाले टैक्स ही इन विकल्पों में अंतर पैदा करते हैं.
इसके अलावा, ग्रोथ, डिविडेंड या डिविडेंड री-इन्वेस्टमेंट विकल्पों में से किसी एक को चुनते समय टैक्स के प्रभाव पर गौर करना ज़रूरी है क्योंकि हर एक विकल्प में पोस्ट-टैक्स रिटर्न अलग-अलग होता है. ये अंतर इसलिए होता है क्योंकि लंबी अवधि और छोटी अवधि के निवेश पर अलग-अलग टैक्स लगता है. इक्विटी और डेट फ़ंड पर भी अलग-अलग टैक्स लगता है.
म्यूचुअल फ़ंड से कैपिटल गेन
इक्विटी और इक्विटी-ओरिएंटेड हाइब्रिड फंड्स | |
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शॉर्ट-टर्म होल्डिंग्स (एक साल या उससे कम समय के लिए रखी गई) | लॉन्ग-टर्म होल्डिंग्स (एक साल से ज़्यादा) |
शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन के रूप में टैक्स लागू, वर्तमान में 15% | ₹1 लाख अधिक के लाभ पर 10% टैक्स |
अन्य सभी फंड्स
शॉर्ट-टर्म होल्डिंग्स (तीन साल या उससे कम समय के लिए रखी गई) | लॉन्ग-टर्म होल्डिंग्स (तीन साल से ज़्यादा) |
इनकम स्लैब के अनुसार टैक्स लागू | इंडेक्सेशन के साथ 20% |
फंड्स से डिविडेंड इनकम
निवेश का प्रकार | डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स |
इक्विटी और इक्विटी-ओरिएंटेड हाइब्रिड फंड्स | इनकम स्लैब के अनुसार टैक्स लागू |
अन्य सभी फंड्स | इनकम स्लैब के अनुसार टैक्स लागू |
म्यूचुअल फ़ंड कहां और कैसे खरीदें?
Where should I buy mutual funds in India: मार्केट में कई म्यूचुअल फ़ंड स्कीम्स उपलब्ध हैं, और कई तरीके हैं जिनके जरिये उनमें निवेश किया जा सकता है. किसी भी डायरेक्ट और रेगुलर स्कीम में ऑनलाइन या ऑफलाइन दोनों तरीक़ों से निवेश किया जा सकता है. अन्य बातों की तरह इन स्कीम्स के भी अपने-अपने अपने दायरे और फ़ायदे हैं, जो हर एक निवेशक के लिए अलग-अलग तरह के हो सकते हैं.
डायरेक्ट प्लान: 1 जनवरी 2013 से, सभी म्यूचुअल फ़ंड कंपनियों ने अपनी सभी मौजूदा फ़ंड स्कीम्स के तहत एक नई स्कीम- डायरेक्ट प्लान की शुरुआत की. ये प्लान उन निवेशकों को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं जो अपने म्यूचुअल फ़ंड निवेश डिस्ट्रीब्यूटर्स के जरिये नहीं करते हैं, और इसलिए AMC की मौजूदा फ़ंड स्कीम्स की तुलना में इनका एक्सपेंस रेशियो कम है.
इसका मतलब ये है कि एक निवेशक के रूप में आपको एक जैसा पोर्टफ़ोलियो होने के बावज़ूद अपने म्यूचुअल फ़ंड से थोड़ा ज़्यादा रिटर्न कमाने का मौका मिलेगा. डायरेक्ट प्लान्स में डिस्ट्रीब्यूटर एक्सपेंस या कमीशन नहीं लगेगा, जिस कारण इन स्कीम्स में एनुअल फ़ीस कम लगेगी; और नतीजतन, रेगुलर स्कीम्स की तुलना में इन प्लान्स का NAV अलग (ज़्यादा) होगा.
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इंटरमीडियरी के जरिये: मार्केट में अलग-अलग तरह के इंटरमीडियरी मौज़ूद हैं. इनमें ज़्यादातर बैंक, राष्ट्रीय या क्षेत्रीय स्तर पर मौज़ूद डिस्ट्रीब्यूटर कंपनियां, कुछ स्टॉक ब्रोकर (ऑनलाइन ब्रोकर सहित) और बड़ी संख्या में व्यक्ति और छोटी फ़ाइनेंशियल एडवाइजरी कंपनियां शामिल हैं. सभी इंटरमीडियरी का एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फ़ंड इन इंडिया (AMFI) में रजिस्टर्ड होना ज़रूरी है. इन इंटरमीडियरी को www.amfiindia.com पर ऑनलाइन सर्च किया जा सकता है. ये वेबसाइट उन इंटरमीडियरी की भी सूची उपलब्ध कराती है जिन्हें निवेशकों के साथ ग़लत जानकारी साझा करने और ठगी करने के लिए बैन किया जा चुका है. AMFI का यह कदम निवेशकों को फ़ाइनेंशियल सुरक्षा प्रदान करता है.
आम तौर पर, इंटरमीडियरी का काम आपको म्यूचुअल फ़ंड एप्लीकेशन फ़ॉर्म उपलब्ध कराना, फ़ॉर्म भरने में आपकी मदद करना, म्यूचुअल फ़ंड ऑफिस में फ़ॉर्म और अन्य डॉक्युमेंट्स जमा करना और कभी-कभी अकाउंट स्टेटमेंट उपलब्ध कराना होता है. लेकिन, ये सभी सुविधाएं आपको फ़ीस देने पर मिलती हैं. आमतौर पर, एजेंट इन सेवाओं के लिए आपसे एक निश्चित फ़ीस लेते हैं.
IFAs के जरिये: IFAs यानी कि इंडिपेंडेंट फाइनेंशियल एडवाइजर ऐसे व्यक्ति होते हैं जो म्यूचुअल फ़ंड निवेश में मदद करने के लिए एजेंट के रूप में काम करते हैं. वे एप्लीकेशन फॉर्म भरने में आपकी मदद करते हैं और इसे AMC में जमा भी करते हैं.
सीधे AMC के जरिये: आप सीधे AMC के जरिये भी म्यूचुअल फ़ंड स्कीम में निवेश कर सकते हैं. यदि आप पहली बार किसी म्यूचुअल फ़ंड में निवेश कर रहे हैं, तो आपको AMC के ऑफिस जाना पड़ सकता है. इसके बाद, आप अपने फोलियो नंबर का उपयोग करके उसी AMC की अलग-अलग फ़ंड स्कीम्स में ऑनलाइन (बशर्ते ये सुविधा AMC द्वारा दी जाती हो) या ऑफ़लाइन निवेश कर सकते हैं. कुछ AMCs आपको एजेंट भी उपलब्ध कराते हैं ताकि एप्लीकेशन फॉर्म भरने, चेक लेने और पावती भेजने में आपकी मदद कि जा सके.
ऑनलाइन पोर्टल के जरिये: ऐसे कई थर्ड-पार्टी ऑनलाइन पोर्टल हैं जिनके जरिये आप AMCs की अलग-अलग म्यूचुअल फ़ंड स्कीम्स में निवेश कर सकते हैं. निवेश करते समय आसान फ़ंड ट्रांसफर सुविधा देने के लिए ज़्यादातर पोर्टल ने बैंकों के साथ हाथ मिलाया हुआ है. ये पोर्टल शुरुआत में आपसे फ़ीस लेते हैं ताकि आपका अकाउंट खोला जा सके और आपको आसानी से निवेश करने और अपने निवेश को रिडीम करने की ऑनलाइन सुविधा दी जा सके.
अपने बैंक के जरिये: बैंक भी एक इंटरमीडियरी की तरह काम करते हैं और अलग-अलग AMCs की फ़ंड स्कीम्स को डिस्ट्रीब्यूट करते हैं. आप अपनी बैंक शाखा के जरिये सीधे फ़ंड स्कीम्स में निवेश कर सकते हैं.
डीमैट और ऑनलाइन ट्रेडिंग अकाउंट के जरिये: यदि आपके पास डीमैट अकाउंट है, तो आप इस अकाउंट के जरिये म्यूचुअल फ़ंड स्कीम्स में निवेश कर सकते हैं.
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इलेक्ट्रॉनिक मनी ट्रांसफर
एक बैंक अकाउंट से दूसरे बैंक अकाउंट में पैसे ट्रांसफर करने का पारंपरिक तरीका चेक लिखना और फिर उसे जमा करना है. लेकिन टेक्नोलॉजी के आने के बाद अब किसी को ऐसी कठिन प्रक्रिया से गुजरने की ज़रूरत नहीं पड़ती है. पिछले कुछ सालों में RBI ने कई कदम उठाए हैं जिसके कारण इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर (EFT) के जरिये पैसों का पेपरलेस ट्रांसफर मुमकिन हुआ है. ऐसे कई अन्य शब्द हैं जो हमें अक्सर सुनाई देते हैं, खासकर तब जब हम ऑनलाइन या RTGS, NEFT, IMPS और ECS जैसे इलेक्ट्रॉनिक क्लीयरेंस के जरिये पैसे ट्रांसफर करते हैं. इनमें से हर एक तरीका यह पक्का करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है कि आपका निवेश सही तरीके से हो और निवेश करते समय आप समय बर्बाद न करें. इनमें से हर एक विकल्प म्यूचुअल फ़ंड में आपके निवेश करने के तरीके पर प्रभाव डालता है.
इलेक्ट्रॉनिक क्लियरिंग सर्विस (ECS): ECS उन ग्राहकों के लिए लेनदेन का एक इलेक्ट्रॉनिक विकल्प है जिन्हें बार-बार पैसे ट्रांसफर या रिसीव करने की ज़रूरत पड़ती है. यही कारण है कि SIP के जरिये निवेश करते समय ECS सबसे पसंदीदा और उपयोगी विकल्प माना जाता है. मुख्य रूप से, ECS एक बैंक अकाउंट से कई बैंक अकाउंट में बड़े पैमाने पर पैसे ट्रांसफर करने की सुविधा प्रदान करता है.
ECS मुख्य रूप से दो प्रकार होते हैं: ECS क्रेडिट और ECS डेबिट. ECS क्रेडिट का उपयोग किसी संस्था द्वारा यूजर इंस्टीट्यूशन के बैंक अकाउंट में सिंगल डेबिट कर के, ECS केंद्र के अधिकार क्षेत्र के अंदर अलग-अलग जगहों पर बैंक शाखाओं वाले बड़ी संख्या में लाभार्थियों को क्रेडिट प्रदान करने के लिए किया जाता है. ECS क्रेडिट सेवा के जरिये, यूजर इंस्टीट्यूशन बड़ी संख्या में लाभार्थियों को डिविडेंड, ब्याज, वेतन, पेंशन आदि का वितरण आसानी से कर सकता है.
ECS डेबिट का उपयोग किसी संस्था द्वारा यूजर इंस्टीट्यूशन के बैंक अकाउंट में सिंगल क्रेडिट के लिए, ECS केंद्र के अधिकार क्षेत्र के अंदर अलग-अलग जगहों पर बैंक शाखाओं वाले बड़ी संख्या में अकाउंट से डेबिट करने के लिए किया जाता है. म्यूचुअल फ़ंड SIP के भुगतान के लिए ECS डेबिट सेवा बहुत उपयोगी है, क्योंकि ये भुगतान एक निश्चित अवधि में बार-बार होते हैं और बड़ी संख्या में निवेशकों द्वारा यूजर इंस्टीट्यूशन को देय होते हैं.
नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फ़ंड ट्रांसफर (NEFT): भुगतान का ये तरीका पूरे देश में प्रचलित है जो एक अकाउंट से दूसरे अकाउंट में फ़ंड ट्रांसफर की सुविधा देता है. इस सुविधा के तहत, कोई भी व्यक्ति, फर्म और कॉर्पोरेट किसी भी बैंक शाखा से देश की किसी भी अन्य बैंक शाखा में अकाउंट रखने वाले व्यक्ति, फर्म या कॉर्पोरेट को इलेक्ट्रॉनिक रूप से पैसे ट्रांसफर कर सकता है. जिन व्यक्तियों के पास बैंक अकाउंट नहीं है (वॉक-इन ग्राहक) वे NEFT-सक्षम शाखाओं में इस सेवा का उपयोग करके पैसे ट्रांसफर (नकद ₹50,000 तक) कर सकते हैं. NEFT सेवा 24*7 उपलब्ध रहती है.
इलेक्ट्रॉनिक फ़ंड ट्रांसफर (EFT): ये एक पेपरलेस तरीक़ा है जिसके द्वारा चेक या करेंसी नोटों के बिना एक बैंक अकाउंट से दूसरे बैंक अकाउंट में पैसा ट्रांसफर किया जाता है. ये लेनदेन बैंक ATM या क्रेडिट कार्ड या डेबिट कार्ड का उपयोग करके किया जाता है. RBI-EFT सिस्टम के तहत आपको अपने बैंक अकाउंट से दूसरे बैंक अकाउंट या बेनिफिशियरी अकाउंट में पैसे ट्रांसफर करने के लिए बैंक को इजाज़त (authorize) देनी पड़ती है. इस सेवा का उपयोग करके किसी भी बैंक की किसी भी शाखा से किसी भी अन्य बैंक की अन्य शाखा (इंटर-सिटी और इंट्रा-सिटी दोनों) में फंड ट्रांसफर किया जा सकता है. RBI पैसे भेजने वाले के बैंक (जिसे रेमिटिंग बैंक कहा जाता है) और रिसीवर बैंक के बीच मीडिएटर का काम करता है और इस ट्रांसफर को कंट्रोल करता है. EFT के तहत, फ़ंड को रिसीवर के अकाउंट में उसी दिन या अधिकतम चार दिनों के अंदर जमा कर दिया जाता है, जो कि इस बात पर निर्भर करता है EFT किस वक़्त किया गया है और लाभार्थी का अकाउंट किस शहर में रजिस्टर्ड है. आमतौर पर, दिन के फर्स्ट हॉफ में किए गए लेनदेन को दिन सेकंड हॉफ में किए गए लेनदेन की तुलना में प्राथमिकता दी जाती है.
रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (RTGS): रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट एक इंस्टेंट फंड-ट्रांसफर सुविधा है, जिसमें तुरंत उसी वक़्त पैसा ट्रांसफर किया जाता है. इस सुविधा की एक शर्त ये होती है कि आपको ₹2 लाख या उससे ज़्यादा पैसा ट्रांसफर करना होता है और ₹2 लाख से कम के लेनदेन पर बैंकों द्वारा ग्राहकों को NEFT करने का निर्देश दिया जाता है. RTGS का उपयोग मुख्य रूप से ज़्यादा धनराशि के लेनदेन के लिए किया जाता है. RTGS सुविधा 24*7 उपलब्ध रहती है.
इंटरबैंक मोबाइल पेमेंट सर्विस (IMPS) सुविधा: IMPS नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) द्वारा दी गयी एक सुविधा है. IMPS मौज़ूदा यूनिट होल्डर्स को मोबाइल टेक्नोलॉजी/उपकरणों की मदद से अपना बैंक अकाउंट एक्सेस करने और आसान और सुरक्षित तरीके से इंटर-बैंक लेनदेन की सुविधा देता है. ये सुविधा मोबाइल फोन के माध्यम से 24*7 उपलब्ध रहती है.
ये सुविधा कैसे काम करती है?
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यूनिट होल्डर को अपने बैंक में मोबाइल बैंकिंग के लिए रजिस्ट्रेशन कराना होता है
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बैंक एक यूनिक MMID (मोबाइल मनी आइडेंटिफ़ायर) जारी करता है जो कि यूनिट होल्डर के बैंक अकाउंट और बैंक कोड को मिलाकर बनाया जाता है; और साथ ही एक M-PIN (सीक्रेट पासवर्ड) भी जारी करता है.
- इसके बाद यूनिट होल्डर अपने बैंक द्वारा दी गई मोबाइल बैंकिंग एप्लिकेशन या SMS/USSD सुविधा का उपयोग करके लेनदेन कर सकता है. उदाहरण के लिए: यदि यूनिट होल्डर मोबाइल एप्लिकेशन का उपयोग करके म्यूचुअल फ़ंड स्कीम में ₹10,000 निवेश करना चाहता है, तो उसे नीचे दिए गए निर्देशों का पालन करना होगा.
मोबाइल एप्लिकेशन में इन चीज़ों को दर्ज करें:
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स्कीम की MMID
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म्यूचुअल फ़ंड फोलियो नं.
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निवेश/ट्रांसफर की राशि
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बैंक द्वारा इश्यू किए गए MPIN के जरिये बैंक यूनिटहोल्डर के अकाउंट की डिटेल और डेबिट की पुष्टि करता है. ये NPCI के माध्यम से बेनेफीशियरी पार्टी (इस मामले में AMC) को आगे जानकारी भेजता है.
- AMC द्वारा, विवरणों को सत्यापित करने के बाद, फ़ोलियो/ स्कीम अकाउंट में उचित यूनिट्स क्रेडिट कर दी जाती हैं और यूनिट होल्डर को इस क्रेडिट की सूचना एक SMS/ ईमेल द्वारा भेजी जाती है.
यूनिट होल्डर इस बात का ध्यान रखे कि IMPS सुविधा के लिए बैंक में रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर और फ़ोलियो के लिए म्यूचुअल फ़ंड में रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर एक ही हों.
IFSC
IFSC (इंडियन फाइनेंशियल सिस्टम कोड) एक अल्फा-न्यूमेरिक कोड है जो NEFT सिस्टम से जुड़ी हुई बैंक-शाखा की यूनिक तरीके से पहचान करता है. यह 11 अंकों का एक कोड है जिसमें पहले 4 अल्फाबेट बैंक को दर्शाते हैं और अंतिम 6 अंक (न्यूमेरिकल्स) शाखा को दर्शाते हैं. अल्फाबेट के बाद पहला अंक 0 (शून्य) होता है. NEFT सिस्टम द्वारा IFSC का उपयोग पैसे भेजने वाले बैंक और रिसीव करने वाले बैंक या उनकी शाखाओं की पहचान करने और लेनदेन संबंधी जानकारी को बैंकों या शाखाओं तक सही तरीके से भेजने के लिए किया जाता है.
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