AI-generated image
पीटर लिंच दुनिया के मशहूर निवेशकों में से हैं. उन्होंने एक बार कहा था, "निवेशकों ने असल में करेक्शन में जितना पैसा गंवाया है उससे कहीं ज़्यादा पैसा करेक्शन की तैयारी या करेक्शन का अनुमान लगाने में गंवा दिया है." अगर आप शेयर बाज़ार की शब्दावली से परिचित नहीं हैं, तो आपका सबसे पहला सवाल होना चाहिए कि शेयर की क़ीमतों में गिरावट को करेक्शन यानी सुधार क्यों कहा जाता है? मेरा मतलब है, अगर शेयर तर्कहीन तरीक़े से गिरते हैं, तो इसे करेक्शन या सुधार नहीं बल्कि एक ग़लती कहना चाहिए. मगर नहीं, गिरावट के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द करेक्शन है, ग़लती या गड़बड़ी नहीं.
ये भी देखिए - क्या नाती-पोतों को गिफ़्ट कर सकते हैं म्यूचुअल फ़ंड?
वैसे भी, निवेशकों के एक बड़े हिस्से में अब करेक्शन आने का डर बढ़ रहा है. कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपने निवेश को बरक़रार तो रखे हैं, लेकिन डरे हुए हैं और पल भर में निवेश से बाहर निकलने के लिए तैयार बैठे हैं. कुछ ऐसे भी हैं जो निवेश के लिए तो तैयार हैं, लेकिन करेक्शन ख़त्म होने के इंतज़ार में हैं. ये कुछ हद तक लोकल ट्रेन के दरवाज़े जैसा है. जब स्टेशन आने वाला होता है, तो अंदर बैठे लोग बाहर निकलने की तैयारी में जुटे होते हैं, जबकि बाहर बैठे लोग अंदर आने के इंतज़ार में होते हैं.
पीटर लिंच ने इस तरह के व्यवहार को देखते हुए जीवन भर बिताया है, और देखा है कि कैसे किसी करेक्शन के आने और जाने के लिए, अपने निवेश को समय देने के लिए, ये लगातार चलने वाला इंतज़ार वास्तविक चुनौती से ध्यान हटा देता है. ये वास्तविक चुनौती है - अच्छे निवेशों की पहचान करना, उनमें नियमित रूप से निवेश करना और उन्हें बनाए रखना. जिस बात को करेक्शन पर नज़र रखने वाले नहीं समझते, वो ये है कि एक लंबे समय का निवेश करने वाला जो म्यूचुअल फ़ंड SIP जैसे सरल आइडिया को फ़ॉलो करता है, उसके लिए करेक्शन के दौरान निवेश जारी रखना एक फ़ायदे की बात है.
जब आप किसी गिरावट के दौरान निवेश जारी रखते हैं, तो ये आपके अंतिम रिटर्न को बढ़ा देता है, चाहे आप गिरावट की परवाह करें या न करें. 2008-2009 के दौरान, जिन कुछ लोगों ने अपना निवेश जारी रखा, उन्हें गिरावट की परवाह न करने का भरपूर फ़ायदा भी मिला. ये ऐसा काम है जिसे ज़्यादा से ज़्यादा निवेशकों को करना चाहिए.
ये भी पढ़िए - समय सर्वोपरि है बाज़ार में