AI-generated image
नवंबर का महीना भारतीय स्टॉक मार्केट में ड्रामा, सस्पेंस और कॉमेडी का मिक्स पुलाव था, जैसे शर्मा जी ब्रोकिंग ( पहले "बाबाजी फ़ाइनेंशियल्स" नाम था) की रिपोर्ट में बताया गया. चलिए, उनकी खोजबीन का एक कटाक्षों से भरा लेख पढ़ते हैं, जिसके कोने-कतरे में आपको फंसी हुई हंसी भी मिल सकती है!
SIP: मिडल क्लास इंडिया का दमदार हीरो
मंथली SIP कंट्रिब्यूशन ने लगातार दूसरे महीने में ₹25,300 करोड़ का रिकॉर्ड पटक कर तोड़ दिया. इतने पैसे में तो IPL टीम ख़रीदी जा सकती है और आप कोई बॉलीवुड फ़िल्म स्पॉन्सर कर सकते हैं, और उसके बाद भी इतने पैसे बचेंगे कि स्टेशन पे वडा-पाव खा लेंगे. ये देख कर लगता है जैसे रिटेल इन्वेस्टर कह रहे हैं कि "चाहे आए महंगाई या ग्लोबल त्राहि-त्राहि, हम तो SIP करेंगे!"
फ़ाइनेंशियल ईयर 25 के पहले नौ महीने में SIP कंट्रिब्यूशन ने पिछले साल के कुल कंट्रिब्यूशन का 93% पार कर लिया है. सुरेश चमटकार, जो ख़ुद को SIP का उपदेशक समझते हैं, उनके मुताबिक़, "ये इस बात का सबूत है कि भारतीय मिडल क्लास इन्वेस्टरों के पास दो शाश्वत सत्य होते हैं: हर सुबह चाय की प्याली और हर महीने SIP की तारीख़."
FPIs: बॉलीवुड खलनायकों की कहानी में झोल
फ़ॉरेन पोर्टफ़ोलियो इन्वेस्टर्स (FPIs) इस महीने में क्लासिक बॉलीवुड विलन बन गए - कैसा भी गदर मचाने वाले और सरासर ड्रामाई, और हां, ग़लतफ़हमियों के शिकार. उन्होंने अक्तूबर और नवंबर में सेकंडरी मार्केट से ₹1,15,629 करोड़ निकाल लिए. इतना पैसा मार्केट से उठाने में तो भारतीय स्टार्टअपों की चूं बोल जाती!
लेकिन एक मसाला फ़िल्म के ट्विस्ट की तरह, FPIs की दिसंबर की शुरुआत में फिर से भारतीय मार्केट में वापसी हुई, और उन्होंने ₹24,454 करोड़ उड़ेल दिए. ये उतनी ही तेज़ी से हुआ जितने में आप कहेंगे, "हां, ले लो पैसे वापस". ग्लोबल माहौल के सुधरने और अमेरिकी फ़ेडरल रेट कटने की अफ़वाहों से NRIs (Non-Responsible Investors) फिर से मार्केट में आ गए.
ये भी पढ़ें: SIP में 'लॉन्ग-टर्म' क्या होना चाहिए?
सेक्टर-दर-सेक्टर: एक कॉमेडी ग़लतियों की
1. इंफ़ॉर्मेशन टेक्नोलॉजी: FPIs का डार्लिंग बना
IT सेक्टर बना हाई स्कूल का "पढ़ाकू टॉपर", हमेशा अच्छा परफ़ॉर्म कर रहा है. FPIs ने नवंबर के दूसरे हिस्से में ₹2,429 करोड़ डाले, जबकि पहले हिस्से में ₹3,087 करोड़ का निवेश किया था. एनेलिस्ट रजिंदर टिकड़मल ने मज़ाक किया, "बंगलूरू से अच्छा रिटर्न और कहां मिलेगा?".
2. फ़ाइनेंशियल सर्विस: उल्टे बांस बरेली
अक्तूबर और नवंबर की शुरुआत में FPIs ने फ़ाइनेंशियल सर्विस सेक्टर को गच्चा दे दिया था (₹7,092 करोड़ के आउटफ़्लो के साथ), लेकिन फिर नवंबर के आख़िर में उन्होंने पलटी मारी और ₹9,597 करोड़ डाल दिए. और, ये सेक्टर एक बार फिर बेसहारा से अचानक FPI पोर्टफ़ोलियो की आंख का तारा हो गया.
3. ऑयल एंड गैस: सीरियल ब्रेकअप का शिकार
ऑयल एंड गैस सेक्टर ने बिकवाली की क्रूरता का दर्द झेला और FPIs ने ₹13,346 करोड़ निकाल लिये और ऐसा सिर्फ़ नवंबर में ही हो गया. अब ये सेक्टर मार्केट का अरिजीत सिंह बना गा रहा है - "फिर से ऑफ़लोड किया, क्यों किया?" हम बस उम्मीद करते हैं कि दिसंबर में थोड़ी रोमांटिक वापसी हो जाए.
4. ऑटोमोबाइल: मोड़ पर हुए ब्रेक फ़ेल
ऑटोमोबाइल सेक्टर को भी भारी-भरकम आउटफ़्लो का सामना करना पड़ा और नवंबर के दूसरे हिस्से में इसमें से ₹3,053 करोड़ निकल गए. FPIs को लगता है कि वो इस सेक्टर का क्रैश कर-कर के वो हाल करेंगे जैसा मेरे भाई ने पुरानी मारुति कार का किया है. टोटल आउटफ़्लो कितना रहा? पूरे ₹7,464 करोड़! FPIs मानते हैं कि EVs का मतलब "Exit Vehicles" है.
ड्रामे के क्लाइमैक्स के बाद
इस फ़ाइनेंशियल मेलोड्रामा से एक बात तो साफ़ है: भारतीय मार्केट भावनाओं से सराबोर एक नाटक है जो कभी निराश नहीं करता. SIPs की सहन करने की क्षमता हो या FPIs की ड्रामाई एग्ज़िट और एंट्री का सिलसिला, हर महीने एक नया प्लॉट ट्विस्ट ला रहा है.
और अगर आप एक इन्वेस्टर हैं जो सोच रहे हैं कि इस दुनिया में क्या करना चाहिए, तो बस याद रखिए बाबा लक्ष्मी प्रसाद (व्हाट्सएप फ़ॉरवर्ड्स के गुरूघंटाल) का कहना है: "जब तक मार्केट चले, SIP चलाओ."
डिस्क्लेमर: ये स्टोरी बाज़ार भारद्वाज ने अंग्रेज़ी में गढ़ी है, जो एक कॉमेडियन, सैटायरिस्ट और वैल्यू रिसर्च के नॉन-सीरियस एनेलिस्ट हैं. कहानी असली घटनाओं से प्रेरित ज़रूर है, लेकिन हर बात आपके चेहरे पर मुस्कुराहट लाने के लिए बढ़-चढ़ा कर कही गई है. अगर आपने इसे सीरियसली लिया है, तो... आपको बेहतर सलाह की ज़रूरत है!
ये भी पढ़ें: निवेश कैसे शुरू करें?