SIP में निवेशक अपने बैंक अकाउंट से हर महीने (या किसी और तय अवधि) में एक निश्चित राशि को म्यूचुअल फ़ंड में निवेश करता है. ये राशि निवेशक के चुने गए म्यूचुअल फ़ंड के यूनिट्स में बदल जाती है. ये यूनिट घटती-बढ़ती रहती हैं. इस तरह से निवेशक नियमित रूप से निवेश करते रहते हैं और लम्बे समय में अपने आर्थिक लक्ष्यों को हासिल कर पाते हैं.
SIP में ये नहीं देखा जाता है कि निवेश किए जा रहे फ़ंड के NAV की वैल्यू क्या है या बाज़ार किस स्तर पर है. निवेशक जब अपनी फ़ंड SIP लगातार जारी रखता है तो बाज़ार के गिरने पर उसे ज़्यादा यूनिट मिलती हैं. इससे यूनिट की औसत क़ीमत कम हो जाती है और.निवेशक ऊंचा रिटर्न पाता है.
वहीं अगर आप एक बार में बड़ी रक़म निवेश करते हैं तो आप का निवेश ऐसे समय हो सकता है जब बाज़ार अपने सबसे ऊंचे स्तर पर हो. इसका मतलब है कि आपने ऐसे समय निवेश किया जब NAV की वैल्यू काफ़ी ज़्यादा थी. ऐसे में अगर बाज़ार गिरता है तो आपका रिटर्न कम हो सकता है. SIP के ज़रिए आप लंबी अवधि में ख़रीद क़ीमत का औसत कम कर देते हैं.
SIP में निवेश करने वाले आमतौर पर निवेश लंबे समय तक बनाए रखते हैं. बाज़ार के उतार-चढ़ाव का उन पर ख़ास असर नहीं होता. पर कुछ निवेशक बाज़ार गिरने पर वे निवेश बेच देते हैं और निवेश बंद कर देते हैं. और जब बाज़ार बढ़ता है तो वापस निवेश बढ़ा देते हैं. इसका मतलब हुआ कि निवेशकों को जो करना चाहिए उसका ठीक उलटा करते हैं. SIP में आपको हर महीने नियमित तौर पर निवेश करना होता है. आपको ये नहीं सोचना चाहिए कि कब निवेश करना है और कब नहीं, तभी आपको बेहतर रिटर्न मिलता है.
SIP के फ़ायदे क्या हैं?
छोटी रक़म से शुरुआत: SIP में आप कम से कम ₹500 से शुरुआत कर सकते हैं, जो इसे सभी निवेशकों के लिए आसान बना देता है.
1. रुपए की कॉस्ट एवरेजिंग: हर महीने एक निश्चित राशि के निवेश से जब मार्केट नीचे होता है, तो ज़्यादा यूनिट्स मिलती हैं, और जब मार्केट ऊपर होता है, तो कम यूनिट्स मिलती हैं. इससे निवेश की औसत लागत कम हो जाती है. इसे ही कॉस्ट एवरेजिंग कहते हैं.
2. पॉवर ऑफ़ कम्पाउंडिंग: SIP में नियमित निवेश से कंपाउंडिंग का फ़ायदा मिलता है. समय के साथ आपके निवेश पर मिला रिटर्न भी बढ़ता है, जिससे आप लंबे समय में अच्छा मुनाफ़ा पा सकते हैं.
3. मार्केट को टाइम करने की ज़रूरत नहीं: SIP में नियमित निवेश होने के कारण, बाज़ार में आगे क्या होगा इसका अंदाज़ा लगाने की ज़रूरत नहीं होती (timing the market). आप एक तय तारीख़ पर ही निवेश करते हैं, जो ज़्यादा सुविधाजनक होता है.
4. लंबे समय में बड़ी पूंजी: SIP निवेशकों को लंबे समय के दौरान बड़ी रक़म जुटाने में मदद करती है. अगर आप लंबे समय तक निवेश में बने रहते हैं, तो बाज़ार बढ़ने के साथ-साथ आपका निवेश कई गुना हो सकता है.
5. लचीलापन: SIP को किसी भी समय शुरू, बंद किया जा सकता है या रक़म को बढ़ाया/घटाया जा सकता है. ये विकल्प इसे एक लचीला निवेश बनाते हैं.
SIP में निवेश क्यों करना चाहिए?
1. लंबी अवधि में बड़ा रिटर्न: अगर कोई निवेशक अनुशासन के साथ SIP से अपना फ़ंड निवेश करता है, तो वो अपने फ़ाइनेंशियल गोल (जैसे रिटायरमेंट, बच्चों की शिक्षा, घर ख़रीदना) को ज़्यादा आसानी से पूरा कर सकता है.
2. कम रिस्क: SIP में निवेश से मार्केट रिस्क कम किया जा सकता है क्योंकि निवेशक औसत मूल्य पर निवेश करते हैं.
3. नियमित निवेश: SIP निवेशकों को नियमित निवेश की आदत पड़ती है, जिससे वे अपने लक्ष्यों को लेकर प्रतिबद्ध रहते हैं.
SIP एक अनुशासित, लचीला और बाज़ार के उतार-चढ़ाव से सुरक्षा देने वाला निवेश विकल्प है. ये लंबे समय तक अनुशासनपूर्ण निवेश से अच्छा रिटर्न पाने का एक बेहतर तरीक़ा है. SIP के ज़रिए निवेश करने में ग़लतियों की गुंजाइश कम होती है जबकि एकमुश्त रक़म निवेश करने की प्रक्रिया में ग़लतियों की गुंजाइश ज़्यादा है.
SIP निवेश कैसे शुरू करें?
SIP निवेश शुरू करना आसान है. शुरुआत करने के लिए सात आसान स्टेप फ़ॉलो करें:
1. एक प्लेटफ़ॉर्म चुनें: अपनी ज़रूरतों को पूरा करने वाला एक भरोसेमंद ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म चुनें.
2. KYC (अपने ग्राहक को जानें) पूरा करें: PAN, आधार और पते के प्रमाण जैसे दस्तावेज़ अपलोड करें. म्यूचुअल फ़ंड निवेश के लिए KYC अनिवार्य है.
3. अपना बैंक खाता लिंक करें: SIP या एकमुश्त निवेश के लिए बिना रुकावट का ट्रांजैक्शन सुनिश्चित करें.
4. अपना निवेश की तरीक़ा चुनें: डायरेक्ट और रेग्युलर प्लान के बीच फैसला करें.
5. फ़ंड शॉर्टलिस्ट करें: पिछले प्रदर्शन, जोख़िम और उद्देश्यों के आधार पर फ़ंड की तुलना करने के लिए हमारे रिसर्च टूल का इस्तेमाल करें.
6. अपना पहला निवेश करें: अपनी पसंद के आधार पर SIP या एकमुश्त रक़म से शुरुआत करें.
7. निगरानी करें और ज़रूरत पर बदलाव करें: अपने पोर्टफ़ोलियो की नियमित समीक्षा करें और ज़रूरत पड़ने पर उसे संतुलित करें.
ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म ने निवेश को बेहद आसान बना दिया है. आप कुछ ही मिनटों के भीतर अपना पहला निवेश शुरू कर सकते हैं. मगर सही ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म चुनना अच्छे अनुभव के लिए ज़रूरी है. इसके लिए प्लेटफ़ॉर्म के तमाम विकल्पों में आपको क्या देखने की ज़रूरत है.
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SIP के महत्वपूर्ण फ़ीचर क्या हैं
- इस्तेमाल में आसान: आसानी से सभी ज़रूरी जानकारियां देने वाले इंटरफ़ेस प्लेटफ़ॉर्म के अनुभव को सहज बनाते हैं.
- फ़ंड के विकल्प: प्लेटफ़ॉर्म के पास अलग-अलग तरह के म्यूचुअल फ़ंड में निवेश की सुविधा होनी चाहिए.
- कम फ़ीस: प्लेटफ़ॉर्म वही अच्छे हैं जिनमें या तो कोई ट्रांजेक्शन फ़ीस न हो या बहुत कम हो.
- रिसर्च टूल्स: फ़ंड की तुलना और प्रदर्शन की ट्रैकिंग जैसी सुविधाओं पर ध्यान दें.
- डायरेक्ट बनाम रेगुलर प्लान: जांचें कि क्या प्लेटफ़ॉर्म पर फ़ंड्स के डायरेक्ट प्लान में निवेश उपलब्ध हो.
भारत में लोकप्रिय फ़ंड निवेश प्लेटफ़ॉर्म
- AMC की वेबसाइट (डायरेक्ट प्लान).
- ग्रो, ज़ीरोधा कॉइन या पेटीएम मनी जैसे ऐप.
- वैल्यू रिसर्च फ़ंड एडवाइज़र जो फ़ंड के चुनाव और उन्हें मैनेज करने को आसान बनाने वाला एग्रीगेटर है.
SIP के लिए ज़रूरी डॉक्यूमेंट
SIP शुरू करने के लिए, ज़रूरी दस्तावेज़:
1. पैन कार्ड
2. आधार कार्ड (पते और पहचान का प्रमाण)
3. बैंक अकाउंट की जानकारी (अकाउंट नंबर, ब्रांच का नाम, और IFSC कोड)
4. पासपोर्ट साइज़ फ़ोटो
5. चेक बुक
SIP कितनी तरह की है
SIP कई प्रकार की होती है. आइए इनके बरे में चर्चा करते हैं.
1. रेग्युलर (Regular SIP): रेग्युलर या नियमित SIP में निवेश का नियमित अंतराल (आमतौर पर मासिक) होता है. एक तय रक़म हर महीने निवेश की जाती है. इस तरह की SIP में पैसे ऑटोमैटिक तरीक़े से आपके अकाउंट से कट जाते हैं और समय के साथ कंपाउंडिंग का फ़ायदा मिलता हैं.
2. टॉप-अप (Top-up SIP): आप समय-समय पर निवेश की रक़म बढ़ा सकते हैं. अपने निवेश में पहले से तय एक समय अंतराल चुन सकते हैं जिसमें SIP को बढ़ाया जाए. इससे पूंजी को को तेज़ी से बढ़ने में मदद मिलती है.
3. फ़्लेक्सीबल (Flexible SIP): लचीला SIP निवेश आपकी बदलती आर्थिक परिस्थितियों के मुताबिक़ आपको अपने निवेश का समय एडजस्ट करने में मदद करता है. इसमें निवेशक अपनी सुविधा के मुताबिक़ SIP को घटा या बढ़ा सकता है.
4. ट्रिगर (Trigger SIP): निवेशक बाज़ार या फ़ंड के प्रदर्शन के आधार पर पहले से तय किए गए ट्रिगर सेट करता है. इस तरह, बाज़ार की ख़ास परिस्थिति के मुताबिक़ SIP की चालू रखी जा सकती है या रोकी जा सकती है. इस काम को ट्रिगर सेट करके ऑटोमैटिक तरीक़े किया जाता है.
5. पर्पेचुअल (Perpetual SIP): सतत SIP वो है जो शुरू करने के बाद चलती रहती है जब रोकी न जाए या इसमें कोई बदलाव न किया जाए. रेग्युलर SIP में उसके जारी रहने की एक तय अवधि होती है, मगर पर्पेचुल SIP को रिन्यू करने की ज़रूरत नहीं होती. हालांकि, नेशनल ऑटोमैटिड क्लियरिंग हाउस या NACH ने इसे ज़्यादा से ज़्यादा 30 साल के लिए तय कर दिया है (1 अक्तूबर 2023 से प्रभावी) यानि पर्पेचुअल के जारी रहने की भी एक ऊपरी सीमा तय कर दी गई है.
6. मल्टी (Multi SIP): एक ही SIP के भीतर कई म्यूचुअल फ़ंड या एसेट क्लास में निवेश करने की सहूलियत होती है. इसके ज़रिए निवेशक एक साथ कई फ़ंड्स में निवेश करके अपने रिस्क को डाइवर्सिफ़ाई सकते हैं.
7. स्टेप-अप (Step-up SIP): इसमें एक नियमित अतंराल पर (मान लीजिए 10% सालाना) निवेश की रक़म बढ़ाई जाती है. इसे ऑटोमैटिक तरीक़े से किया जा सकता है जिससे समय के साथ ज़्यादा बड़ी पूंजी खड़ी करने में मदद मिले.
8. इक्विटी (Equity SIP): इसमें इक्विटी म्यूचुअल फ़ंड में ही निवेश किया जाता है. ये फ़ंड मुख्य रूप से स्टॉक में निवेश करते हैं जो लंबे समय मे ऊंचा रिटर्न की संभावना बनाते हैं. इक्विटी SIP उनके लिए अच्छी है जो लंबे समय के निवेश से बड़ी पूंजी बनाना चाहते हैं और मार्केट के उतार-चढ़ाव को सहन करने के क्षमता रखते हैं.
9. डेट (Debt SIP): इसमें डेट म्यूचुअल फ़ंड में निवेश किया जाता है. ये फ़ंड मुख्य रूप से बॉन्ड और सरकारी सिक्योरिटीज़ (फ़िक्स्ड इनकम वाले विकल्प) में निवेश करते हैं. इनसमें इक्विटी के मुक़ाबले ज़्यादा स्थिर रिटर्न मिलते हैं. डेट में SIP करना उन निवेशकों के लिए सही है जो कम रिस्क के साथ इनकम और पूंजी की सुरक्षा चाहते हैं.
10. टैक्स-सेविंग Tax Saving SIP): इसमें ELSS (इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम) में निवेश किया जाता है और इनकम टैक्स की धारा 80C के तहत टैक्स में छूट मिलती है. इसमें तीन साल का लॉक-इन पीरियड होता है. ELSS में निवेश से टैक्स भी बचता है और इक्विटी निवेश से पूंजी के तेज़ी से बढ़ने का फ़ायदा मिलता है.
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अपने फ़ाइनेंशियल गोल के मुताबिक़ SIP कैसे चुनें?
SIP शुरू करने से पहले ये पक्का करना बेहद ज़रूरी है कि आपके पास एक ठोस निवेश उद्देश्य हो. यानि, आपको पता होना चाहिए कि आप क्यों निवेश कर रहे हैं, आप क्या हासिल करना चाहते हैं और आपका लक्ष्य कितने समय में पूरा होगा. इससे आपको अपनी SIP को बेहतर ढंग से प्लान करने में मदद मिलेगी.
1. आपके निवेश लक्ष्य की समयावधि: निवेश कितने समय के लिए करना है ये जानना महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे ये तय किया जा सकता है कि आपको किस तरह के फ़ंड में निवेश करना चाहिए. अगर आपका निवेश उद्देश्य छोटी अवधि (1-3 साल) का है, तो इक्विटी में SIP शायद जोख़िम भरा साबित हो सकता है. इसके विपरीत, लंबी अवधि (5 साल या ज़्यादा) के लिए SIP चुनते समय इक्विटी फ़ंड्स अच्छे रिटर्न दे सकते हैं. उदाहरण के लिए, बच्चों की उच्च शिक्षा या अपनी रिटायरमेंट के लिए, जो 10-15 साल बाद ज़रूरी होगा, इक्विटी SIP फ़ायदेमंद हो सकती है.
2. जोख़िम क्षमता और निवेश रिटर्न की अपेक्षाएं: हर निवेशक की जोख़िम उठाने की क्षमता अलग होती है. SIP चुनने से पहले अपनी जोख़िम क्षमता का पता लगाएं. उदाहरण के लिए, अगर आप एक युवा निवेशक हैं और लंबे समय तक निवेशित रह सकते हैं, तो आप ऊंचा रिस्क उठाकर इक्विटी फ़ंड्स में निवेश कर सकते हैं. दूसरी ओर, अगर आप सुरक्षित निवेश पसंद करते हैं और कम रिटर्न भी स्वीकार कर सकते हैं, तो डेट फ़ंड्स आपके लिए सही होंगे.
3. अपने लिए सही फ़ंड चुनें: SIP के लिए सही फ़ंड का चुनाव करना महत्वपूर्ण है. म्यूचुअल फ़ंड्स कई तरह के होते हैं, जैसे इक्विटी फ़ंड्स, डेट फ़ंड्स और हाइब्रिड फ़ंड्स.
1. इक्विटी फ़ंड्स (Equity Funds): इक्विटी फ़ंड्स मुख्य रूप से शेयर बाज़ार में निवेश करते हैं. ये फ़ंड ऊंचे रिस्क वाले होते हैं लेकिन लंबे समय में अच्छे रिटर्न देने की क्षमता रखते हैं. अगर आप लंबे समय के वित्तीय लक्ष्य जैसे बच्चों की उच्च शिक्षा या रिटायरमेंट के लिए निवेश कर रहे हैं, तो इक्विटी में SIP एक अच्छा विकल्प हो सकता है.
2. डेट फ़ंड्स (Debt Funds): डेट फ़ंड्स उन निवेशकों के लिए सही होते हैं जो सुरक्षित और स्थिर रिटर्न चाहते हैं. डेट फ़ंड्स का निवेश सरकारी बॉन्ड्स, कॉर्पोरेट डिबेंचर्स और दूसरे डेट इंस्ट्रूमेंट्स में होता है. ये उन निवेशकों के लिए अच्छा विकल्प है जिनकी रिस्क लेने की क्षमता कम है और जिन्हें निकट भविष्य में पैसे की ज़रूरत हो सकती है.
3. हाइब्रिड फ़ंड्स (Hybrid Funds): हाइब्रिड फ़ंड्स, इक्विटी और डेट का मिश्रण होते हैं. ये फ़ंड निवेशकों को इक्विटी की ग्रोथ और डेट की स्थिरता का संतुलन देते हैं. उदाहरण के लिए, अगर आप मध्यम अवधि के लिए निवेश करना चाहते हैं और सीमित जोख़िम उठाना चाहते हैं, तो हाइब्रिड फ़ंड्स एक अच्छा विकल्प हो सकते हैं.
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रेग्युलर और डायरेक्ट प्लान में कैसे निवेश करें?
म्यूचुअल फ़ंड के रेग्युलर प्लान में आप म्यूचुअल फ़ंड डिस्ट्रीब्यूटर, ब्रोकर या बैंकर के ज़रिए निवेश कर सकते हैं.
डायरेक्ट प्लान में निवेश करने के लिए आप सीधे फ़ंड कंपनी (AMC), या किसी ऑनलाइन एग्रीगेटर प्लेटफ़ॉर्म के ज़रिए निवेश कर सकते हैं. डायरेक्ट प्लान में निवेश के लिए फ़ंड डिस्ट्रीब्यूटर या ब्रोकर की ज़रूरत नहीं होती.
अपना प्लान चुनने के पहले आपको कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए जो इस तरह से हैं:
1. फ़ंड के प्रदर्शन पर नजर डालें: SIP चुनने से पहले फ़ंड के प्रदर्शन का मूल्यांकन करना बहुत महत्वपूर्ण है. इसके तहत आपको पिछले प्रदर्शन, बेंचमार्क से तुलना और मार्केट अस्थिरता का पता लगाना चाहिए.
2. पिछले प्रदर्शन की समीक्षा: पिछले प्रदर्शन का अनालेसिस या समीक्षा आपको फ़ंड की स्थिरता और उसके रिटर्न के बारे में जानकारी देती है. हालांकि, ज़रूरी नहीं है कि एक फ़ंड का पिछले प्रदर्शन भविष्य में भी वैसा ही हो, लेकिन इससे फ़ंड की क्वालिटी और मैनेजमेंट की क्षमता का अंदाज़ा मिलता है.
3. बेंचमार्क से तुलना: हर फ़ंड का एक बेंचमार्क होता है, जो दिखाता है कि फ़ंड का प्रदर्शन मार्केट की औसत से कैसा रहा है. अगर फ़ंड का प्रदर्शन उसके बेंचमार्क से लगातार बेहतर रहा है, तो ये फ़ंड अच्छे प्रबंधन का संकेत देता है. उदाहरण के लिए, अगर आपका फ़ंड BSE सेंसेक्स को मात दे रहा है, तो ये फ़ंड की क्वालिटी दिखाता है.
4. मार्केट में अस्थिरता: म्यूचुअल फ़ंड्स मार्केट के उतार-चढ़ाव से प्रभावित होते हैं. फ़ंड के प्रदर्शन की समीक्षा करते समय देखें कि वो मार्केट अस्थिरता में कैसा प्रदर्शन कर रहा है. एक अच्छा फ़ंड वो है जो मुश्किल समय में भी स्थिर प्रदर्शन बनाए रखता है.
5. एक फ़ंड हाउस चुनें: SIP में निवेश करते समय फ़ंड हाउस का चुनाव महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि ये फ़ंड हाउस की प्रतिष्ठा, प्रबंधन टीम का अनुभव और फ़ंड हाउस की दूसरी स्कीमों पर निर्भर करता है.
6. फ़ंड हाउस की प्रतिष्ठा: फ़ंड हाउस की प्रतिष्ठा बहुत मायने रखती है. आप जिस फ़ंड हाउस को चुनते हैं, उसके पास अच्छा ट्रैक रिकॉर्ड और निवेशकों में भरोसेमंद छवि होनी चाहिए. एक प्रतिष्ठित फ़ंड हाउस आपके निवेश की सुरक्षा का भरोसा देता है.
7. प्रबंधन टीम का अनुभव: फ़ंड के प्रदर्शन में प्रबंधन टीम का अनुभव एक बड़ी भूमिका निभाता है. अनुभवी प्रबंधक मार्केट की स्थिति को समझते हैं और मुश्किल समय में भी निवेश को सुरक्षित रखने की कोशिश करते हैं. इसलिए, किसी फ़ंड में SIP करने से पहले मैनेजमेंट टीम की योग्यता का मूल्यांकन करें.
8. व्यय अनुपात (Expense Ratio): एक्सपेंस रेशियो वो फ़ीस है जो फ़ंड हाउस निवेशकों से लेता है. ये फ़ीस फ़ंड के प्रबंधन, प्रशासन और दूसरे ख़र्चों के लिए होती है. एक्सपेंस रेशियो आपके रिटर्न पर सीधे असर करता है. अगर किसी फ़ंड का एक्सपेंस रेशियो ज़्यादा है, तो आपके लाभ में कमी हो सकती है. इसलिए, SIP करते समय कम व्यय अनुपात वाले फ़ंड चुनना बेहतर रहता है. हालांकि ये फ़ीस कम ही होती है मगर एक लंबी अवधि के निवेश में ये बड़ा असर कर सकती है.कम एक्सपेंस रेशियो वाले फ़ंड का चुनाव करने से आपके निवेश का एक बड़ा हिस्सा रिटर्न में बदलता है. उदाहरण के लिए, अगर दो फ़ंड्स का रिटर्न समान है, लेकिन एक का एक्सपेंस रेशियो कम है, तो आपको ज़्यादा फ़ायदा होगा.
निष्कर्ष
सही SIP का चुनाव और नियमित निवेश आपके वित्तीय लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करता है. ये एक ऐसा तरीक़ा है जो अनुशासन, धैर्य और लंबी अवधि में निवेश का फ़ायदा देता है. चाहे आपके लक्ष्य छोटे हों या बड़े, SIP एक प्रभावी तरीक़ा है अपने वित्तीय उद्देश्यों को पाने का.
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