Anand Kumar
जेसन ज़्वेग, दुनिया के दो या तीन सर्वश्रेष्ठ पर्सनल फ़ाइनांस के लेखकों में से एक हैं. उन्होंने एक बार लिखा था, "मेरा काम साल में 50 से 100 बार एक ही चीज़ को लिखना है, इस तरह से कि न तो मेरे संपादक और न ही मेरे पाठक कभी ये सोचें कि मैं ख़ुद को दोहरा रहा हूं." मैं उनसे पूरी तरह सहमत हूं—मैं ख़ुद दशकों से इसी नाव में हूं.
इस फ़ील्ड में, पूंजी-निर्माण के बुनियादी सिद्धांत शायद ही कभी बदलते हैं—जल्दी शुरू करें, नियमित बचत करें, सावधानी से निवेश करें, इक्विटी पर भरोसा करें, ग़ैर-उत्पादक क़र्ज़ से बचें और लंबे समय की सोच रखें. फिर भी, मैं हर हफ़्ते नए नज़रिए, नए उदाहरणों और मौजूदा समय के संदर्भ के ज़रिए इन स्थायी सत्यों को लोगों से शेयर करने के लिए बैठता हूं जो आज के पाठकों को दिखाई दे सकते हैं. चुनौती नई सच्चाइयों को तलाशने की नहीं है—ये पाठकों को पुराने सत्यों को फिर से खोजने में मदद करने की है ताकि वे उन तरीक़ों से जुड़ सकें जो उनके साथ क्लिक करें और वो पल बनाएं जब दिलचस्पी और ज्ञान असली समझ में बदल जाए.
बेशक़, काम आसान हो जाता है क्योंकि, बुनियादी स्तर पर, पाठकों को भी बार-बार उन्हीं बातों पर ज़ोर देने और बार-बार उन्हीं चेतावनियों की ज़रूरत होती है. उदाहरण के लिए, मार्केट को टाइम करने को लेकर आकर्षण ने मौजूदा बाज़ार में गिरावट को और भी ज़्यादा आकर्षक बना दिया है. कोई भी व्यक्ति इसके ख़िलाफ़ कितनी भी बार चेतावनी क्यों न दे, हरेक मार्केट साइकल निवेशकों की एक नई लहर लाती है जो इस बात से आश्वस्त होते हैं कि वे ख़रीदने या बेचने के लिए सही समय का सटीक पता लगा सकते हैं. या डेरिवेटिव, हॉट टिप्स और क्रिप्टो जैसे निवेश को लेकर घातक आकर्षण के बारे में सोचिए. पैकेजिंग बदल जाती है, लेकिन सट्टे का उन्माद वैसे का वैसा बना रहता है. फ़ाइनांस पर लिखने की चुनौती भरी और पुरस्कृत करने वाली बात ये है कि लोग अपने व्यवहार के पैटर्न में बहुत ही सधे हुए हैं, भले ही वे ख़ुद को ये विश्वास दिलाते हों कि "इस बार ये अलग है." शायद यही कारण है कि सबसे अच्छी फ़ाइनांस पर सलाह अक्सर बताए जाने पर स्पष्ट लगती है और व्यवहार में उसका पालन करना मुश्किल होता है.
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कुछ दिन पहले, जेसन ज़्वेग ने अपने ब्लॉग पर एक इंटरव्यू पोस्ट किया जो उन्होंने 24 साल पहले किया था. इंटरव्यू का शीर्षक था 'वॉल स्ट्रीट का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति' और इसे चार्ली एलिस नामक एक निवेश प्रबंधक ने आयोजित किया था. इंटरव्यू निवेश से जुड़े ज्ञान से भरपूर है. सबसे पहले सवाल का जवाब भारत में हर निवेशक के लिए ध्यान से पढ़ने और सोचने लायक़ है. ये इस तरह है:
सवाल. आपने अक्सर कहा है कि लॉन्ग-टर्म निवेशकों को शेयरों के गिरने का इंतज़ार करना चाहिए, न कि ऊपर जाने का. क्यों?
जवाब. अगर आप कुछ ख़रीद रहे हैं, तो क्या आप ज़्यादा क़ीमत चुकाने के बजाय कम क़ीमत चुकाना पसंद नहीं करेंगे? जब शेयर सस्ते होते हैं, तो ये लॉन्ग-टर्म निवेशक के लिए अच्छी ख़बर क्यों नहीं हो सकती? ऐसे बहुत कम मौक़े होते हैं जब आपको साहसी होना चाहिए, और इतिहास बताता है कि यही वो समय होता है जब आपको सबसे ज़्यादा डरना चाहिए. शेयर गिरने के बाद उन्हें बेचना पागलपन है. इसके बजाय, आपको कहना चाहिए, "आज एक बेहतरीन सौदा है, और मैं ख़रीद रहा हूं."
मुझे ये बड़ी बात लगती है कि एलिस के शब्द आज कितने सामयिक हैं, भले ही वे लगभग एक चौथाई सदी पहले कहे गए हों. जब बाज़ार में 6-7% की गिरावट आती है, जैसा कि अभी हुआ है, तो स्वाभाविक प्रतिक्रिया ख़तरे को देखकर पीछे हटने की होती है. फिर भी यही प्रतिक्रिया बाज़ार के अस्थाई उतार-चढ़ाव को स्थायी व्यक्तिगत नुक़सान में बदल देती है. निवेश का गणित बेहद सरल है - अगर आप बाज़ार में लंबे अर्से के दौरान धन सृजन में भाग लेना चाहते हैं, तो डर के मारे आपके बेचे जाने वाले हरेक शेयर को अंततः ऊंची क़ीमतों पर दोबारा ख़रीदना होगा. यही कारण है कि अनुभवी निवेशक अक्सर कहते हैं कि सबसे अच्छे निवेश के फ़ैसले उस समय असहज महसूस कराते हैं जब वे किए जाते हैं.
इस बात पर सोचें कि 6-7% की गिरावट, सुर्ख़ियों में ध्यान खींचने वाली होने के बावजूद, इक्विटी निवेश की व्यापक योजना में काफ़ी मामूली बात है. परिप्रेक्ष्य में देंखें, तो हमने पिछले दो दशकों में 20, 30 या उससे ज़्यादा प्रतिशत की कई गिरावटों का सामना किया है, जिसमें 2008 और 2020 की भारी गिरावट भी शामिल है. फिर भी हम सभी यहां हैं, बाज़ारों ने तब से हमारी संपत्ति को कई गुना बढ़ा दिया है. एलिस की समझदारी हमें याद दिलाती है कि ये समय-समय पर आने वाली गिरावट सिस्टम की गड़बड़ी नहीं हैं - ये तो ऐसी ख़ूबियां हैं जो अनुशासित निवेशक के लिए मौक़े पैदा करती हैं.
दिवाली की तरह, बाज़ार में गिरावट ख़रीदारी का त्यौहार है, लेकिन केवल ख़रीदने लायक़ स्टॉक ही ख़रीदें. डरें मत.
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