AI-generated image
वारी एनर्जीज़ के शेयर का सोमवार (28 अक्टूबर, 2024) 55 फ़ीसदी की मजबूती के साथ शेयर बाज़ार में आगाज हुआ, जिससे इसका वैल्यूएशन 54 गुना हो गया. दो महीने पहले लिस्ट हुई प्रीमियर एनर्जीज़ , तब से इसका P/E रेशियो दोगुना से ज़्यादा होकर 190 गुना हो गया है! ये दोनों अब भारत में एकमात्र सार्वजनिक रूप से लिस्टेड सोलर मॉड्यूल या सोलर पैनल मैन्यूफैक्चरिंग हैं.
इन शेयरों में दमदार तेज़ी कोई बेवजह नहीं है. ये दोनों मिलकर घरेलू सोलर पैनल की ज़्यादातर मांग को पूरा करते हैं. ये दोनों सरकारी इंसेंटिव की मदद से डोमेस्टिक सोलर पैनल की बढ़ती ज़रूरतों सहित क्षेत्रीय अनुकूल परिस्थितियों का प्रभावी ढंग से फ़ायदा उठा रही हैं. नतीजतन, पिछले दो वर्षों में उनका प्रॉफ़िट सालाना सालाना तीन से चार गुना बढ़ रह है.
दमदार कमाई
कंपनी | 2 साल में रेवेन्यू में ग्रोथ (%) | 2 साल में प्रॉफ़िट ग्रोथ (%) | 3 साल का एवरेज ROE (%) | 3 साल का एवरेज ROCE (%) |
---|---|---|---|---|
प्रीमियम एनर्जीज़ | 105.7 | 443.2 | 11.9 | 11.7 |
वारी एनर्जीज़ | 99.8 | 304.4 | 34.0 | 30.3 |
ROE: इक्विटी पर रिटर्न ROCE: लगाई गई पूंजी पर रिटर्न |
हालांकि, शेयर की क़ीमतों में जबरदस्त बढ़ोतरी से खतरे की घंटी बजनी चाहिए, क्योंकि ग्लोबल इंडस्ट्री जिन भयावह चुनौतियों से जूझ रही है, वे जल्द ही घरेलू बाज़ार में भी देखने को मिल सकती हैं. भले ही, ग्लोबल इन्वेस्टर्स ने समय रहते इन मुद्दों पर ध्यान दिया है, लेकिन दलाल स्ट्रीट को अभी इनसे जूझना बाक़ी है.
1. चीनी सप्लाई की अधिकता और मूल्य में गिरावट: वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ा सोलर पैनल सप्लायर चीन ग्लोबल डिमांड का 80 फ़ीसदी से ज़्यादा पूरा करता है. ये वैश्विक स्थापित क्षमता का 43 फ़ीसदी हिस्सा है और 2025 तक 200 गीगावाट की विशाल क्षमता जोड़ रहा है, जिससे रॉ मैटेरियल या पॉलीसिलिकॉन जैसे कंपोनेंट की अधिकता हो रही है और वैश्विक कीमतों में तेज़ी से गिरावट आ रही है. सोलर कंपोनेंट और पॉलीसिलिकॉन की क़ीमतें 2023 में क्रमशः 25 और 40 फ़ीसदी गिर गईं और गिरती जा रही हैं.
ज़्यादा आपूर्ति ने वैश्विक स्तर पर प्राइस वार को भी बढ़ावा दिया है, जिससे बड़ी चीनी कंपनियों के मुनाफ़े में कमी आई है, जबकि छोटी कंपनियां दिवालियापन के कगार पर पहुंच गई हैं. वैश्विक बाजारों ने इस घटनाक्रम पर ठीक-ठाक प्रतिक्रिया दी है. कैनेडियन सोलर, ट्रिना सोलर और लॉन्गी ग्रीन जैसी वैश्विक दिग्गज सौर पैनल कंपनियों के शेयरों में पिछले एक साल में छह से 35 फ़ीसदी की गिरावट आई है. जब उनकी तुलना भारतीय कंपनियों का वैल्यूएशन औसतन लगभग 22 गुना ज़्यादा है.
2. भारत पर असर: भारतीय सोलर पैनल मेकर्स ने अभी तक अपने ग्लोबल कंपनियों की तरह क़ीमतों में भारी गिरावट या प्रॉफ़िटेबिलिटी पर असर का अनुभव नहीं किया है. लोकल प्राइस, $0.18 प्रति वाट, ग्लोबल प्राइस $0.11 प्रति वाट से 63 फ़ीसदी प्रीमियम पर बने हुए हैं. इसकी वजह ख़ासकर सरकारी सपोर्ट है जिससे घरेलू खिलाड़ियों को प्रतिस्पर्धी बने रहने में मदद मिल रही है. अप्रूव्ड लिस्ट ऑफ मॉडल्स एंड मैन्यूफैक्चरर्स (ALMM) पॉलिसी ने चीनी आयात के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान की है, जिससे घरेलू कंपनियां अपनी क़ीमतें ज़्यादा रख सकती हैं. ALMM पॉलिसी के तहत ही सरकारी प्रोजेक्ट्स के लिए लोकल मैन्यूफैक्चरर्स की लिस्ट से सौर मॉड्यूल लेना ज़रूरी होता है.
हालांकि, वैश्विक स्तर पर क़ीमतें कम होने के कारण सरकार का समर्थन लंबे समय तक चलने की गारंटी नहीं है. इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए FAME सब्सिडी की तरह, सोलर पैनल प्रोत्साहन को भी कभी भी वापस लिया जा सकता है. असल में, FAME सब्सिडी को इसी साल इंडस्ट्री की पैठ बढ़ने के कारण 40 फ़ीसदी से ज़्यादा घटा दिया गया था.
इससे लोकल मैन्यूफैक्चरर्स सस्ते चीनी मॉड्यूल की वैश्विक भरमार के प्रति संवेदनशील हो जाएंगे. समर्थन वापस लेना इंडस्ट्री के लिए गंभीर रूप से हानिकारक होगा.
इन्वेस्टर्स के लिए
भारत की अग्रणी सोलर ग्लास निर्माता कंपनी बोरोसिल रिन्यूएबल्स की चेतावनी भरी कहानी को याद रखना वारी एनर्जीज़ और प्रीमियर एनर्जीज़ के निवेशकों के लिए अच्छा रहेगा. एक समय लगातार प्रॉफ़िट कमाने वाली ये कंपनी घाटे में चली गई, जब सरकार के 2022 में चीनी आयात पर एंटी-डंपिंग ड्यूटी वापस लेने से से बिक्री मूल्य कम हो गए. इसकी कहानी सोलर इंडस्ट्री के प्लेयर्स के लिए सरकारी सुरक्षा पर निर्भरता के कारण होने वाले नुक़सानों को उजागर करती है.
हमें सोलर एनर्जी इंडस्ट्री के लंबे समय के आउटलुक को लेकर संदेह नहीं है. घरेलू डिमांड में बढ़ोतरी की ही उम्मीद है, इसलिए ग्रोथ की उम्मीदें बनी हुई हैं.
हालांकि, रॉ मैटेरियल की ज़्यादा सप्लाई, प्राइस कॉम्पिटीशन और सस्ती चीनी सप्लाई के पक्ष में सरकारी समर्थन हटने के संभावित खतरों के बावजूद सौर पैनल कंपनियों की वैल्यूएशन मजबूत बनी हुई है.
ग्लोबल इन्वेस्टर्स की तरह, दलाल स्ट्रीट को भी अपनी उम्मीदों को कम करने की ज़रूरत है. प्राइस में करेक्शन ज़रूरी बना हुआ है. इसे बदलने के लिए, लोकल प्लेयर्स को कॉस्ट के लिहाज से प्रतिस्पर्धी बनना होगा और सरकारी समर्थन पर निर्भरता कम करनी होगी.
ये भी पढ़ें- Zomato क्यों जुटा रही है ₹8,500 करोड़?