बड़े सवाल

सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड इस समय महंगे हैं. गोल्ड में निवेश के दूसरे तरीक़े क्या हैं?

ध्यान रखिए, सोने के गहने या सिक्के इसका जवाब नहीं है

क्या मुझे धनतेरस पर सोना ख़रीदना चाहिए? Should I buy gold this on Dhanteras?AI-generated image

हमारे पुराने पाठकों को पता होगा कि सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGB) सोने में निवेश करने का सबसे अच्छा तरीक़ा है वे सुरक्षित होते हैं, मैच्योरिटी पर टैक्स- फ़्री रिटर्न देते हैं और हर साल 2.5 फ़ीसदी रिटर्न सोने की क़ीमत के ऊपर एक्सट्रा मिलता है.

अब तक तो सब ठीक है. हालांकि, इस समय एक और परेशानी है. चूंकि सरकार ने SGB के नए लॉन्च रोक दिए हैं, इसलिए पहले के बैच का स्टॉक एक्सचेंज पर भारी प्रीमियम पर क़ारोबार हो रहा है.

इससे आपके पास अभी सिर्फ़ दो दूसरे सोने के निवेश विकल्प बचते हैं:

1. गोल्ड ETF (एक्सचेंज-ट्रेडेड फ़ंड)
2. गोल्ड FoF (फ़ंड ऑफ़ फ़ंड).

(हम रख-रखाव के ख़र्च, सुरक्षा और बदले में तुंरत कैश पाने सहित, दूसरी कई वजहों से गहने/ बुलियन/ सिक्कों के तौर पर सोने को निवेश के तौर पर सही नहीं मानते).

तो, आइए गोल्ड ETF और FoF पर नियम लागू करें और तय करें कि कौन सा विकल्प आपके लिए सबसे सही हो सकता है.

गोल्ड ETF क्या हैं?

गोल्ड ETF एक तरह का म्यूचुअल फ़ंड है जो ख़ास तौर से सोना ख़रीदने पर आधारित है.

इस मामले में, फ़ंड हाउस घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बैंकों से सोना ख़रीदते हैं और इसे अपनी तिजोरियों में जमा करते हैं. फिर वे इस सोने को स्टॉक एक्सचेंजों पर ETF के तौर पर लिस्टिड करते हैं, जो भौतिक सोने का प्रतिनिधित्व करने वाली यूनिट्स जारी करते हैं. इसलिए, जब निवेशक ये ETF ख़रीदते हैं, तो वे अनिवार्य तौर से फ़ंड द्वारा सोने का एक हिस्सा ख़रीद रहे होते हैं.

इन फ़ंड्स का कारोबार स्टॉक एक्सचेंजों पर नियमित स्टॉक की तरह ही होता है, जिससे ये भौतिक धातु को रखे बिना सोने में निवेश करने का एक आसान तरीक़ा बन जाता है.

याद रखने लायक़ बात
नए निवेशक अक्सर आश्चर्य करते हैं कि अलग-अलग गोल्ड ETF का नेट एसेट वैल्यू (NAV) अलग-अलग क्यों होता है, जबकि वे सभी सोने में निवेश करते हैं. हालांकि, इस बात से किसी को भी परेशान नहीं होना चाहिए. NAV में अंतर सिर्फ़ हर फ़ंड द्वारा जारी की गई यूनिट्स की संख्या की वजह से होता है, भले ही सोना और उसकी क़ीमत समान रहता है.

ये मिसाल आपको बेहतर तरीक़े से समझने में मदद करेगी: मान लीजिए कि फ़ंड हाउस A और B दोनों ₹50 लाख का सोना ख़रीदते हैं. अगर फ़ंड हाउस A सोने के निवेश को 50,000 यूनिट में बांटता है, तो हर यूनिट का NAV ₹100 (₹50 लाख/ 50,000 यूनिट) होगा. वहीं, अगर फंड B 5 लाख यूनिट जारी करता है, तो उसका NAV ₹10 (₹50 लाख/ 5 लाख यूनिट) होगा.

गोल्ड FoF क्या हैं?

गोल्ड FoF ख़ुद भौतिक सोना रखने के बजाय गोल्ड ETF में निवेश करते हैं. दूसरे शब्दों में, FoF का सोने से सीधा संबंध नहीं होता.

अच्छी ख़बर ये है कि चूंकि गोल्ड ETF की क़ीमत सोने की वास्तविक क़ीमत से बहुत क़रीब से जुड़ी हुई है, इसलिए गोल्ड FoF के जरिए मिलने वाला रिटर्न भी सोने की क़ीमतों के हिसाब से उतार-चढ़ाव करता है. दूसरा, चूंकि FoF नियमित म्यूचुअल फ़ंड की तरह काम करते हैं, इसलिए आपको डीमैट अकाउंट की जरूरत नहीं होती है और आप सीधे फ़ंड हाउस के जरिए निवेश कर सकते हैं.

बुरी ख़बर? FoF महंगे हो सकते हैं. वे आम तौर पर दो तरह की फ़ीस लेते हैं: एक FoF के मैनेजमेंट के लिए और दूसरा अंतर्निहित ETF के लिए जिसमें यह निवेश करता है.

कौन सा बेहतर है?

ये निर्भर करता है. गोल्ड ETF उन लोगों के लिए काम आ सकता है जिनके पास डीमैट खाता है और जो कभी-कभार सोने में निवेश करना चाहते हैं.

दूसरी ओर, चूंकि गोल्ड FoF नियमित म्यूचुअल फ़ंड की तरह काम करते हैं, इसलिए वे SIP निवेश की इजाज़त देते हैं, जो उन्हें उन लोगों के लिए एक आसान विकल्प बनाता है जो नियमित रूप से सोने में निवेश करना चाहते हैं और जिनके पास डीमैट खाता नहीं है.

लेकिन इससे पहले कि आप अपनी मेहनत की कमाई को गोल्ड ETF या FoF में डालें, आपको तीन बातों पर ग़ौर करना चाहिए:

1. एक्सपेंस रेशियो

कम एक्सपेंस रेशियो वाले ETF और FoF की तलाश करें.

ज़्यादा एक्सपेंस रेशियो लंबे वक़्त में किसी फ़ंड या ETF के रिटर्न को ख़ास तौर से प्रभावित कर सकता है.

2. लिक्विडिटी (सिर्फ़ ETF के लिए लागू)

हाई लिक्विडिटी वाले ETF चुनें. आप उनके ट्रेडिंग वॉल्यूम की जांच करके उनकी लिक्विडिटी की पहचान कर सकते हैं. हाई लिक्विडिटी वाले ETF निवेशकों को ETF को आसानी से खरीदने और बेचने की अनुमति देते हैं, जिससे देरी या अप्रत्याशित मूल्य उतार-चढ़ाव का जोख़िम कम हो जाता है.

3. NAV पर प्रीमियम/छूट (सिर्फ़ ETF के लिए लागू)

किसी ETF की क़ीमत उसके NAV से निम्न कारणों से अलग हो सकती है:

  • कीमत मांग और आपूर्ति पर निर्भर करती है. अगर विक्रेताओं के मुक़ाबाले ख़रीदार ज़्यादा हैं, तो ये NAV के मुक़ाबले में प्रीमियम पर कारोबार करेगा. इसके उलट, अगर ज़्यादा निवेशक ETF बेच रहे हैं, तो कीमत NAV से नीचे गिर सकती है और छूट पर कारोबार कर सकती है.
  • बाज़ार के बढ़े हुए उतार-चढ़ाव के समय ETF की क़ीमत में उनके NAV के मुक़ाबले बड़े उतार-चढ़ाव हो सकते हैं.
  • ETF की क़ीमतें पूरे कारोबारी दिन में ऊपर-नीचे होती रहती हैं. वक़्त में ये अंतर NAV और मार्केट प्राइस के बीच अस्थायी बेमेल पैदा कर सकता है. इसलिए, आमतौर पर ऐसे ETF में निवेश करना सही होता है, जिनकी बाज़ार क़ीमतें उनके NAV के साथ क़रीब से जुड़ी हों.

ये जांचने के दो तरीक़े हैं कि कोई ETF अपने NAV के कितने क़रीब ट्रेड करता है. पहला तरीका फ़ंड हाउस की वेबसाइट पर जाकर iNAV (इंडिकेटिव नेट एसेट वैल्यू) चेक करना है. जो लोग नहीं जानते, उनके लिए बता दें कि iNAV मार्केट ऑवर के दौरान ETF के नेट एसेट वैल्यू का वास्तविक समय का अनुमान है. दूसरा विकल्प वैल्यू रिसर्च ऑनलाइन पर जाना, अपने चुने हुए ETF को खोजना और 'रिटर्न' टैब पर जाना है. वहां, आप पिछले कुछ सालों में ETF की कीमत और NAV के बीच के अंतर को देख सकते हैं।

आख़िर में

  • सोना एक उत्पादक निवेश विकल्प नहीं है.
  • अगर आप अभी भी सोना ख़रीदने पर ज़ोर देते हैं, तो सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड पर विचार करें.
  • हालांकि,SGB काफी प्रीमियम पर कारोबार कर रहे हैं.

इसलिए, अपनी ज़रूरत के हिसाब से और ऊपर दिए गए सेक्शन में बताए गए तीन कारकों (मौजूदा बाज़ार मूल्य, लिक्विडिटी और ख़र्च) पर विचार करने के बाद गोल्ड ETF या गोल्ड FoF में से किसी एक को चुनें.

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