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एक नए तरीक़े का म्यूचुअल फ़ंड

उम्मीद है, इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटजी फ़ंड्स संपन्न निवेशकों के लिए काम के साबित होंगे

एक नए तरीक़े का म्यूचुअल फ़ंडAI-generated image

किसी ने मुझसे पूछा कि इस नई तरह के म्यूचुअल फ़ंड के बारे में मेरी क्या राय है, और मैंने वही जवाब दिया जो मुझे लगा कि एकमात्र संभव सही जवाब था, "तीन साल बाद वापस आइए, और मैं आपको बताऊंगा कि मैं उनके बारे में क्या सोचता हूं." ये कोई मज़ाक नहीं, बिल्कुल नहीं. दरअसल, मैं अपने अंदाज़े में कुछ अग्रेसिव ही हो रहा हूं - इन फ़ंड्स के बारे में तर्कसंगत राय बनाने में शायद पांच साल लगेंगे. तो, इस बीच देख लेते हैं कि फ़िलहाल क्या चल रहा है.

सेबी ने एक नए तरीक़े के म्यूचुअल फ़ंड की घोषणा की है जिसे 'इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटजी' नाम दिया है. हालांकि नाम से ज़्यादा कुछ ज़ाहिर नहीं होता, लेकिन ये एक ज़्यादा रिस्क वाला और (उम्मीद है) एक सामान्य म्यूचुअल फ़ंड का ही ज़्यादा रिस्क वाला संस्करण है. जैसा कि सेबी की प्रेस विज्ञप्ति कहती है, ये नए तरीक़े का फ़ंड मौजूदा म्यूचुअल फ़ंड और पोर्टफ़ोलियो मैनेजमेंट सर्विसेज़ (PMSs) के बीच कहीं है. इसके अलावा, ये हमें बताती है कि इस नए तरह के फ़ंड को ज़्यादा लचीलेपन और ज़्यादा रिस्क लेने के लिए डिज़ाइन किया गया है जो ज़्यादा पैसे वाले निवेशकों के लिए है. किसी भी AMC में सभी तरह की इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटजीज़ में कम से कम निवेश की सीमा प्रति निवेशक ₹10 लाख है. ये बैरियर बहुत ऊंचा है ज़्यादातर फ़ंड्स का क़रीब 1,000 गुना! सैद्धांतिक तौर पर, ये फ़ंड्स ऐसे बहुत से निवेशकों के लिए पेश किए गए हैं जो ज़्यादा रिस्क उठा सकते हैं. दूसरी ओर, ये ₹50 लाख का केवल पांचवां हिस्सा है, जो PMS के लिए न्यूनतम निवेश की सीमा है.

इस नई कैटेगरी को शुरू करने का कारण तयशुदा लगता है. सेबी का उद्देश्य निवेश की बिना रजिस्ट्रेशन वाली और अनधिकृत स्कीमों को बढ़ने से रोकना है जो अक्सर बड़े रिटर्न के अवास्तिवक वादों के साथ निवेशकों को लुभाती हैं. सोच ये है कि म्यूचुअल फ़ंड ढांचे के भीतर ही एक पेशेवर और अच्छे तरीक़े से मैनेज और रेग्युलेट किया गया प्रोडक्ट, निवेशों को ज़्यादा जोख़िम भरे और अनियमित रास्तों पर जाने से रोकेगा.

ये ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जहां ये 'इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटजीज़' पोर्टफ़ोलियो बनाने में ज़्यादा लचीलापन देती है, वहीं इसके अपने सुरक्षा उपाय भी मौजूद हैं. सेबी ने सुरक्षा के कई उपाय लागू किए हैं, जिनमें लीवरेज पर प्रतिबंध, ग़ैर-सूचीबद्ध और बिना रेटिंग वाले निवेशों पर प्रतिबंध और डेरिवेटिव एक्सपोज़र पर लगाम लगाना शामिल हैं. ये उपाय रिस्क को कम करते हैं और नए प्रोडक्ट को बहुत ज़्यादा सट्टेबाज़ी की तरफ़ जाने से रोकते हैं. इन्हें देख कर लगता है कि इन सुरक्षा उपायों का आधार अन-रेग्युलेटेड सर्विस और PMS में देखी गई ज़्यादतियां हैं.

हालांकि, अब तक की गई घोषणा से परे नज़र दौड़ाएं तो इस एसेट क्लास की आधी-अधूरी प्रकृति के कारण इसे म्यूचुअल फ़ंड निवेशक और PMS निवेशक (पीड़ित?) विरोधाभासी तरीक़ों से देखेंगे. म्यूचुअल फंड निवेशक के लिए संदेश है: ये एक हाई रिस्क, हाई रिटर्न वाला म्यूचुअल फ़ंड है. अगर आप रिस्क उठाने लायक़ अमीर हैं, तो इसे चुनें. PMS निवेशक के लिए संदेश बहुत अलग है: ये PMS के लिए एक बेहतर-रेग्युलेशन वाला, टैक्स के लिहाज़ से अच्छा, ज़्यादा पारदर्शी, और कम ख़र्चीला विकल्प है. अगर आप PMS चलाने वालों के खोखले वादों से थक और पक चुके हैं, तो इसे आज़माएं. और हां, अगर आप PMS निवेशक हैं, तो दूसरे विवरण को एक बार फिर ध्यान से पढ़ें. अगर सही तरीक़े से डिज़ाइन किया गया, तो ये नया प्रोडक्ट PMS बिज़नस का काफ़ी हिस्सा ख़ाली कर देगा.

हालांकि, इस वक़्त, ये प्रोडक्ट सेबी की प्रेस रिलीज़ में सिर्फ़ कुछ वाक्यों तक ही सिमटा हुआ है. बाक़ी की सारी बातें सिर्फ़ संभावना है, या शायद संभावना भी नहीं है. मेरे हिसाब से, एक ख़तरे का निशान ये है कि कई एसेट मैनेजमेंट कंपनियां ख़ुद पोर्टफ़ोलियो मैंनेजमेंट सर्विस में शामिल हैं, और उन्हें ऐसा विकल्प पेश करते देखना मुश्किल होगा जो उनके अपने बिज़नस के लिए बुरा हो.

इसीलिए मैंने शुरुआत में ही कहा कि ये तय करने में कम से कम तीन साल लगेंगे कि इस नए तरीक़े के फ़ंड में अच्छी वैल्यू मिलेगी या नहीं. कई AMCs जो PMS में बहुत गहरे नहीं उतरी हैं, वे चुनौती स्वीकार करेंगी. उम्मीद है, नई एसेट क्लास कुछ निवेशकों को अपना कुछ पैसा निवेश करने का एक अच्छा विकल्प देगी.


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